उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के सामने नई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। राज्य में इस समय पंचायत चुनाव चल रहे हैं और इसी समय किसानों का कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर धरना और विरोध प्रदर्शन भी चल रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनावों को लेकर वहां किसानों से भाजपा का विरोध करने की अपील की थी। अब उत्तर प्रदेश के प्रमुख किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन ने राज्य के पंचायत चुनावों में भाजपा के विरोध करने का निर्णय किया है। किसानों की विशाल आबादी वाले इस राज्य में किसानों की इस अपील से भाजपा को नुकसान हो सकता है।
भारतीय किसान यूनियन के नेता युद्धवीर सिंह ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि उनका संगठन पूरी तरह अराजनैतिक है। इसका यह अर्थ है कि वे स्वयं चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। लेकिन विधानसभा चुनावों की तरह वे उत्तर प्रदेश के किसानों से भी अपील कर रहे हैं कि वे भाजपा को वोट न दें क्योंकि किसानों के खिलाफ लाये गये इस कानून की जड़ वही है। अगर भाजपा को किसानों का वोट लेना है तो उसे इस मुद्दे पर किसानों का साथ देना पड़ेगा और उसे अपनी ही सरकार से यह अपील करनी पड़ेगी कि ये कानून तुरंत वापस लिए जाएं।
यहां हो सकता है गहरा असर
हालांकि, किसानों की यह अपील राज्यों के लिए नई नहीं है। इसके पहले भी संयुक्त किसान मोर्चा के किसान नेताओं ने पश्चिम बंगाल सहित पांच चुनावी राज्यों में किसानों से भाजपा के आलावा बाकी किसी भी दल को वोट देने की अपील की थी। लेकिन किसानों की इस अपील का कितना असर हुआ है, इस पर अभी से कुछ कहा नहीं जा सकता। पांचों ही चुनावी राज्यों में किसान आन्दोलन की बहुत प्रभावी भूमिका नहीं है, इसलिए किसानों की इस अपील के प्रभाव को लेकर आशंकाएं जताई जा रही हैं।लेकिन ठीक यही बात उत्तर प्रदेश के संदर्भ में नहीं कही जा सकती है। 26 नवंबर 2020 से शुरू हुए किसान आन्दोलन को पंजाब में पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों ने तेज करने का काम किया था तो उत्तर प्रदेश में इस आन्दोलन को धार देने का काम भारतीय किसान यूनियन ने ही किया है। इस संगठन का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी अच्छा असर बताया जाता है। यही कारण है कि माना जा रहा है कि किसानों की इस अपील का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गहरा असर पड़ सकता है और इस कारण भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।वहीं, भारतीय किसान यूनियन ने नेता पूर्वांचल के इलाकों में भी लगातार प्रवास कर किसानों को अपने साथ जोड़ने की अपील कर रहे हैं। किसान आंदोलन को कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से भी सहयोग मिल रहा है, जो पिछले कुछ चुनावों से बैक फुट पर चल रहे हैं। अगर ये समीकरण अपना असर दिखाने में एकजुट हो जाते हैं तो भाजपा को पश्चिम के साथ-साथ पूर्वांचल के इलाकों में भी नुकसान हो सकता है।
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