वाराणसी की एक अदालत ने काशी विश्वनाथ मंदिर के निकट स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश जारी कर दिया है। कोर्ट के इस आदेश को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने संविधान की आत्मा और उपासना स्थल कानून 1991 के विरुद्ध बताया है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जल्द ही इस आदेश के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करेगा।बोर्ड का कहना है कि राममंदिर आंदोलन से सत्ता के केंद्र तक पहुंच चुकी भाजपा इस समय कठिन चुनौतियों से घिरी हुई है। आर्थिक मोर्चे से लेकर कोरोना से निबटने तक कई मोर्चों पर वह असफल साबित हुई है और अगले चुनाव में जनता के सामने जाने के लिए उसके पास ठोस मुद्दे नहीं हैं। लिहाजा वह इस तरह के भावनात्मक मुद्दों को हवा देकर यूपी विधानसभा चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मुफ्ती एजाज काशमी ने कहा कि कोर्ट का यह आदेश उपासना स्थल कानून 1991 के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन है। कानून में देश में मौजूद सभी धर्मस्थलों की 15 अगस्त 1947 को जो भी स्थिति थी, उसे यथास्थिति बरकरार रखने की बात कही गई है। इतने स्पष्ट कानून के बाद भी किसी कोर्ट द्वारा इस तरह का आदेश जारी करना गहरी साजिश की ओर इशारा करता है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कोर्ट के आदेश का अध्ययन कर इसके विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की जाएगी।
चुनावी एजेंडा बना रही भाजपा
मुफ्ती एजाज काशमी ने कहा कि मुसलमानों ने अयोध्या का फैसला चुपचाप स्वीकार कर लिया था जिससे कि देश के अंदर शांति बनी रहे। इतने बड़े फैसले के बाद भी देश में कहीं कोई विरोध नहीं हुआ, लेकिन अब एक और विवाद खड़ा कर एक साजिश के तहत देश का माहौल खराब करने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि मुसलमान इस फैसले का हर स्तर पर विरोध करेंगे।
विहिप ने कहा- इन 500 मंदिरों पर भी करें बात
वहीं, विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने कोर्ट के इस आदेश का स्वागत किया है। विहिप के जॉइंट जनरल सेक्रेटरी डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि उपासना स्थल कानून 1991 के बनने के समय भी विहिप ने इसका पुरजोर विरोध किया था और वे अब भी इस कानून का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा कि इस कानून में सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बरकरार रखने की बात कही गई है तो यह बात जम्मू-कश्मीर के उन 500 मंदिरों पर भी लागू होनी चाहिए जिन्हें 1989-90 के दौरान हिन्दुओं को कश्मीर से भगाए जाने के दौरान तोड़ दिया गया।
कानून को सुप्रीम कोर्ट में किया है चैलेंज
वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने अक्तूबर 2020 में उपासना स्थल कानून (The Places of Worship (Special Provision Act) 1991 को असंवैधानिक बताते हुए सर्वोच्च न्यायलय के सामने एक याचिका दाखिल कर इसे खारिज करने की मांग की थी। उन्होंने कोर्ट के सामने दलील दी थी कि यह कानून तत्कालीन केंद्र सरकार ने अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर बनाया था, लिहाजा इसे रद्द किया जाना चाहिए।अश्विनी उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायलय के सामने यह दलील दी है कि चूंकि देश के अंदर धार्मिक पूजा स्थल संबंधी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों का होता है, इसलिए केंद्र सरकार का इस विषय पर कानून बनाना उचित नहीं था।उन्होंने कोर्ट के सामने यह दलील भी दी है कि उपासना स्थल कानून 1991 में किसी व्यक्ति को किसी अन्य पूजा स्थल के विषय में न्याय पाने के लिए कोर्ट जाने से भी रोका गया है। इस प्रकार यह न्याय पाने के अधिकार को वंचित करता है जो संविधान के अनुसार गलत है क्योंकि किसी को न्याय पाने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता।बाद में, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी इस वाद में स्वयं को एक पक्षकार बनाने की अनुमति मांगी थी जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच के सामने यह मामला चल रहा है। कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में अपना पक्ष रखने को कहा है।
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