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UP Panchayat Chunav : यूपी पंचायत चुनाव-2021 की बदल जाएगी तस्वीर, जानिए हाईकोर्ट ने आदेश में क्या-क्या कहा

हाइलाइट्स:कोर्ट ने 25 मई तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न कराने का आदेश दियायाचिका कर्ता ने कहा-वर्ष 2015 को बेस मानकर आरक्षण लागू होकोर्ट ने अंतिम रूप देने की कार्रवाई पर 15 मार्च तक के लिए रोक लगा दी थीलखनऊउत्तर प्रदेश त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए 27 मार्च तक आरक्षण प्रक्रिया को फाइनल करने के आदेश दिए हैं। यूपी पंचायत चुनाव पर हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2015 को बेस मानकर आरक्षण लागू हो। राज्य सरकार की इस पर सहमित के बाद न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने 25 मई तक त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न कराने का आदेश दिए हैं। बता दें कि ऐसा अगर होता है तो यूपी पंचायत चुनाव-2021 की तस्वीर बदल जाएगी। 25 मई तक चुनाव संपन्न कराने के आदेशसरकारी मशीनरी से लेकर चुनाव में दावेदारी ठोंक चुके लोगों को इस फैसले का बेसब्री से इंतजार था। आरक्षण की अंतिम सूची जारी होने के बाद आई आपत्तियों का निस्तारण कर जिला प्रशासन को अंतिम सूची जारी करनी थी। इस बीच लखनऊ हाईकोर्ट ने आधार वर्ष का मुद्दा उठाने वाली एक याचिका पर त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सीटों के आरक्षण और आवांटन को अंतिम रूप देने की कार्रवाई पर 15 मार्च तक के लिए रोक लगा दी थी।सरकार ने माना आरक्षण प्रक्रिया में हुई गलतीसरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने माना कि सरकार से आरक्षण प्रक्रिया लागू करने में गलती हुई है। यह तथ्य सामने आने के बाद अदालत ने पंचायत चुनाव को 25 मई तक पूरा करने के आदेश दिए हैं। इसके साथ ही 27 मार्च तक संशोधित आरक्षण सूची जारी करने के भी निर्देश दिए हैं। प्रदेश सरकार इससे पहले 17 मार्च को ही आरक्षण की संशोधित सूचित जारी करने की तैयारी में थी। इससे पहले इलाहाबाद की एक डिवीजन बेंच ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को 15 मई तक पूरा करने के निर्देश दिए थेUP Panchayat Chunav Reservation list Verdict: हाई कोर्ट ने बदला योगी सरकार का फैसला, अब 2015 के बेस से लागू होगी आरक्षण प्रक्रियाअजय कुमार की याचिका पर कोर्ट ने सुनाया फैसलायाची अजय कुमार ने प्रदेश सरकार के 11 फरवरी 2011 के शासनादेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि इस बार की आरक्षण सूची 1995 के आधार पर जारी की गई, जबकि 2015 को आधार वर्ष बनाकर आरक्षण सूची जारी की जानी चाहिए। इस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अंतिम आरक्षण सूची जारी किए जाने पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि साल 1995 के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था से जहां सामान्य सीट होनी चाहिए थी, वहां पर ओबीसी कर दी गई और जहां ओबीसी होनी चाहिए, वहां एससी के लिए आरक्षित कर दी गई है। इससे चुनाव लड़ने वालों में निराशा है। लिहाजा शासनादेश को रद्द कर वर्ष 2015 के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।