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10 फरवरी 2006, स्थान : हंडिया की बगहा रेलवे क्रासिंग। सुल्तानपुर से आया संत ज्ञानेश्वर वर्ष 2006 के माघमेला में अंतिम स्नान के बाद अपने पूरे काफिले के साथ वाराणसी के लिए निकल पड़ा था। कोई नहीं जानता था कि आगे मौत खड़ी इंतजार कर रही है। स्वचालित हथियारों से लैस शूटरों ने चंद पलों में ही ज्ञानेश्वर की गाड़ी को निशाना बनाते हुए दो सौ से अधिक गोलियां दाग दी थीं।ज्ञानेश्वर के साथ उसकी चार शिष्याओं और तीन सेवादारों के जिस्म बेजान हो गए थे। पांच शिष्याएं गंभीर रूप से घायल हुई थीं। शहर के इतिहास में कभी भी एक साथ आठ लोगों की हत्या नहीं हुई थी। शहर हक्का-बक्का था। लोग हतप्रभ थे। हालांकि कुछ ही समय में मामला साफ हो गया। संत ज्ञानेश्वर के भाई ने सुल्तानपुर के पूर्व विधायक सोनू सिंह और उनके भाई समेत चार लोगों को नामजद करा दिया था। बाद में पता चला कि आश्रम की जमीन को लेकर संत ज्ञानेश्वर और सोनू सिंह के परिवार में सालों से खूनी रंजिश चल रही थी।
बाराबंकी के सिद्धौर आश्रम के सर्वेसर्वा ज्ञानेश्वर हर साल की तरह 2006 में भी अपने शिष्यों के साथ माघ मेले में आया था। यहां उसका बड़ा शिविर लगा था। 10 फरवरी को माघमेला में अंतिम स्नान के बाद वह अपनी शिष्याओं और शिष्यों के साथ वाराणसी जा रहा था, बगहा रेलवे क्रासिंग हंडिया के पास उसके काफिले को रोक दिया गया। हमलावरों ने ज्ञानेश्वर की गाड़ी पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। गाड़ी में बैठे ज्ञानेश्वर समेत आठ लोग मारे गए थे। इसमें चार महिला शिष्य और तीन सेवादार भी शामिल थे। पांच लड़कियां गंभीर रूप से घायल हुई थीं।आठ लोगों की हत्या से इलाहाबाद में हाहाकार मच गया, क्योंकि जिले में कभी भी एकसाथ इतनी हत्याएं नहीं हुईं थीं। ज्ञानेश्वर के भाई इंद्रदेव तिवारी ने पुरानी अदावत के आधार पर सुल्तानपुर में इसौली क्षेत्र के विधायक चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू, उनके भाई यशभद्र सिंह उर्फ मोनू, विजय यादव और अखिलेश सिंह को नामजद करा दिया। इस मामले में सबसे पहले सोनू सिंह की गिरफ्तारी हुई। फिर एक-एक करके मोनू, विजय और अखिलेश को भी गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने सोनू सिंह, मोनू सिंह, अखिलेश सिंह और विजय यादव के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। हालांकि गवाहों के पलटने से आरोपियों को बरी कर दिया गया था। अब मामला हाईकोर्ट में है।
जमीन के एक टुकड़े से शुरू हुई थी अदावत
सदानंद तिवारी उर्फ ज्ञानेश्वर ने सुल्तानपुर के कूड़ेभार थाना क्षेत्र के मझवारा गांव में 1994 में आश्रम बनाना शुरू किया था। गांव के चौकीदार रामजस यादव ने अपनी जमीन देने का विरोध किया। ज्ञानेश्वर के शिष्यों ने रामजस की हत्या करा दी। चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू के पिता इंद्रभद्र सिंह उस समय इसौली के विधायक थे। उन्होंने रामजस के परिवार वालों का साथ दिया। वहां जनसमूह ज्ञानेश्वर के आश्रम के खिलाफ हो गया। भीड़ ने आश्रम को उखाड़ फेंका। इसके बाद से ही ज्ञानेश्वर और इंद्रभद्र में ठन गई। हालांकि बाद में ज्ञानेश्वर ने वहां आश्रम बनवा लिया। 21 जनवरी 1999 को इंद्रभद्र की हत्या कर दी गई। इसमें ज्ञानेश्वर के एक तथाकथित शिष्य दीनानाथ समेत पांच लोग आरोपी बनाए गए। ज्ञानेश्वर के खिलाफ भी धारा 12-बी के तहत हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया था।
जरायम से भगवे तक का सफर
मूल रूप से बिहार के गोपालगंज जिले के रहने वाले सदानंद तिवारी उर्फ ज्ञानेश्वर ने एलएलबी की डिग्री ली थी। वह छात्र जीवन से ही आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था। गोपालगंज के डीएम की हत्या में तमाम लोगों के साथ ज्ञानेश्वर भी नामजद था। बाद में वह सुप्रीम कोर्ट से छूटा। इसके अलावा एक मुस्लिम महिला हशीमन की हत्या में भी ज्ञानेश्वर का नाम आया। इसके अलावा हत्या के प्रयास तथा अन्य कई गंभीर आपराधिक मामले में उसपर दर्ज थे। पुलिस से बचने के लिए ही उसने भगवा चोला ओढ़ा। जल्द ही उसने बाराबंकी में सिद्धौर आश्रम बनवाया और उसका सर्वेसर्वा बन बैठा। वाराणसी, अयोध्या समेत छह धार्मिक शहरों में एक के बाद एक आश्रम खुलते चले गए। बताया जाता है कि ज्ञानेश्वर का एक समय इतना जलवा था कि वह जिस जिले में रहता था, बड़े से बडे अधिकारी उसे सलाम करते थे। ज्ञानेश्वर का दौर तब खराब शुरू हुआ, जब 1999 में इंद्रभद्र सिंह की हत्या हुई। इसके बाद से ही सोनू सिंह और ज्ञानेश्वर के बीच खूनी रंजिश शुरू हुई। इस रंजिश में अब तक कई लोग मारे जा चुके हैं।
कातिलों को पता थी ज्ञानेश्वर की गाड़ी
ज्ञानेश्वर के काफिले में उस दिन पांच गाड़ियां थीं। ज्ञानेश्वर की गाड़ी बीच में थी, लेकिन कातिल जानते थे कि कौन सी गाड़ी में ज्ञानेश्वर है। गाड़ी ज्ञानेश्वर की एक शिष्या ड्राइव कर रही थी।
ये लोग मारे गए
1-ज्ञानेश्वर
2-पुष्पा
3- पूजा
4-नीलम
5-गंगा
6-ओमप्रकाश
7-रामचंद्र
8-मिथिलेश
पांच लड़कियां हुईं थीं घायल
1-दिव्या
2-मीरा
3-संतोषी
4-अनीता
5-मीनू
ज्ञानेश्वर के आस पास रहती थीं लेडी कमांडो
ज्ञानेश्वर उस वक्त एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसके इर्द गिर्द लेडी कमांडो का घेरा रहता था। वह अपनी शिष्याओं में तेज तर्रार लड़कियों को बॉडीगार्ड के रूप में चुनता था। इन बाडीगार्ड को आश्रम से जुड़े पुलिस में कार्य कर चुके लोग कमांडो की ट्रेनिंग देते थे। सिर्फ बाडीगार्ड ही नहीं ज्ञानेश्वर की पर्सनल गाड़ी की ड्राइवर भी महिला ही होती थी। अपनी गाड़ी में ज्ञानेश्वर एक दो करीबी सेवादारों को भी रखता था।
10 फरवरी 2006, स्थान : हंडिया की बगहा रेलवे क्रासिंग। सुल्तानपुर से आया संत ज्ञानेश्वर वर्ष 2006 के माघमेला में अंतिम स्नान के बाद अपने पूरे काफिले के साथ वाराणसी के लिए निकल पड़ा था। कोई नहीं जानता था कि आगे मौत खड़ी इंतजार कर रही है। स्वचालित हथियारों से लैस शूटरों ने चंद पलों में ही ज्ञानेश्वर की गाड़ी को निशाना बनाते हुए दो सौ से अधिक गोलियां दाग दी थीं।
ज्ञानेश्वर के साथ उसकी चार शिष्याओं और तीन सेवादारों के जिस्म बेजान हो गए थे। पांच शिष्याएं गंभीर रूप से घायल हुई थीं। शहर के इतिहास में कभी भी एक साथ आठ लोगों की हत्या नहीं हुई थी। शहर हक्का-बक्का था। लोग हतप्रभ थे। हालांकि कुछ ही समय में मामला साफ हो गया। संत ज्ञानेश्वर के भाई ने सुल्तानपुर के पूर्व विधायक सोनू सिंह और उनके भाई समेत चार लोगों को नामजद करा दिया था। बाद में पता चला कि आश्रम की जमीन को लेकर संत ज्ञानेश्वर और सोनू सिंह के परिवार में सालों से खूनी रंजिश चल रही थी।
prayagraj news
– फोटो : prayagraj
बाराबंकी के सिद्धौर आश्रम के सर्वेसर्वा ज्ञानेश्वर हर साल की तरह 2006 में भी अपने शिष्यों के साथ माघ मेले में आया था। यहां उसका बड़ा शिविर लगा था। 10 फरवरी को माघमेला में अंतिम स्नान के बाद वह अपनी शिष्याओं और शिष्यों के साथ वाराणसी जा रहा था, बगहा रेलवे क्रासिंग हंडिया के पास उसके काफिले को रोक दिया गया। हमलावरों ने ज्ञानेश्वर की गाड़ी पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं। गाड़ी में बैठे ज्ञानेश्वर समेत आठ लोग मारे गए थे। इसमें चार महिला शिष्य और तीन सेवादार भी शामिल थे। पांच लड़कियां गंभीर रूप से घायल हुई थीं।आठ लोगों की हत्या से इलाहाबाद में हाहाकार मच गया, क्योंकि जिले में कभी भी एकसाथ इतनी हत्याएं नहीं हुईं थीं। ज्ञानेश्वर के भाई इंद्रदेव तिवारी ने पुरानी अदावत के आधार पर सुल्तानपुर में इसौली क्षेत्र के विधायक चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू, उनके भाई यशभद्र सिंह उर्फ मोनू, विजय यादव और अखिलेश सिंह को नामजद करा दिया। इस मामले में सबसे पहले सोनू सिंह की गिरफ्तारी हुई। फिर एक-एक करके मोनू, विजय और अखिलेश को भी गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने सोनू सिंह, मोनू सिंह, अखिलेश सिंह और विजय यादव के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। हालांकि गवाहों के पलटने से आरोपियों को बरी कर दिया गया था। अब मामला हाईकोर्ट में है।
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जमीन के एक टुकड़े से शुरू हुई थी अदावत
सदानंद तिवारी उर्फ ज्ञानेश्वर ने सुल्तानपुर के कूड़ेभार थाना क्षेत्र के मझवारा गांव में 1994 में आश्रम बनाना शुरू किया था। गांव के चौकीदार रामजस यादव ने अपनी जमीन देने का विरोध किया। ज्ञानेश्वर के शिष्यों ने रामजस की हत्या करा दी। चंद्रभद्र सिंह उर्फ सोनू के पिता इंद्रभद्र सिंह उस समय इसौली के विधायक थे। उन्होंने रामजस के परिवार वालों का साथ दिया। वहां जनसमूह ज्ञानेश्वर के आश्रम के खिलाफ हो गया। भीड़ ने आश्रम को उखाड़ फेंका। इसके बाद से ही ज्ञानेश्वर और इंद्रभद्र में ठन गई। हालांकि बाद में ज्ञानेश्वर ने वहां आश्रम बनवा लिया। 21 जनवरी 1999 को इंद्रभद्र की हत्या कर दी गई। इसमें ज्ञानेश्वर के एक तथाकथित शिष्य दीनानाथ समेत पांच लोग आरोपी बनाए गए। ज्ञानेश्वर के खिलाफ भी धारा 12-बी के तहत हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज किया गया था।
हत्या
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जरायम से भगवे तक का सफर
मूल रूप से बिहार के गोपालगंज जिले के रहने वाले सदानंद तिवारी उर्फ ज्ञानेश्वर ने एलएलबी की डिग्री ली थी। वह छात्र जीवन से ही आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था। गोपालगंज के डीएम की हत्या में तमाम लोगों के साथ ज्ञानेश्वर भी नामजद था। बाद में वह सुप्रीम कोर्ट से छूटा। इसके अलावा एक मुस्लिम महिला हशीमन की हत्या में भी ज्ञानेश्वर का नाम आया। इसके अलावा हत्या के प्रयास तथा अन्य कई गंभीर आपराधिक मामले में उसपर दर्ज थे। पुलिस से बचने के लिए ही उसने भगवा चोला ओढ़ा। जल्द ही उसने बाराबंकी में सिद्धौर आश्रम बनवाया और उसका सर्वेसर्वा बन बैठा। वाराणसी, अयोध्या समेत छह धार्मिक शहरों में एक के बाद एक आश्रम खुलते चले गए। बताया जाता है कि ज्ञानेश्वर का एक समय इतना जलवा था कि वह जिस जिले में रहता था, बड़े से बडे अधिकारी उसे सलाम करते थे। ज्ञानेश्वर का दौर तब खराब शुरू हुआ, जब 1999 में इंद्रभद्र सिंह की हत्या हुई। इसके बाद से ही सोनू सिंह और ज्ञानेश्वर के बीच खूनी रंजिश शुरू हुई। इस रंजिश में अब तक कई लोग मारे जा चुके हैं।
कातिलों को पता थी ज्ञानेश्वर की गाड़ी
ज्ञानेश्वर के काफिले में उस दिन पांच गाड़ियां थीं। ज्ञानेश्वर की गाड़ी बीच में थी, लेकिन कातिल जानते थे कि कौन सी गाड़ी में ज्ञानेश्वर है। गाड़ी ज्ञानेश्वर की एक शिष्या ड्राइव कर रही थी।ये लोग मारे गए1-ज्ञानेश्वर2-पुष्पा3- पूजा4-नीलम5-गंगा6-ओमप्रकाश7-रामचंद्र8-मिथिलेशपांच लड़कियां हुईं थीं घायल1-दिव्या2-मीरा3-संतोषी4-अनीता5-मीनू
ज्ञानेश्वर के आस पास रहती थीं लेडी कमांडो
ज्ञानेश्वर उस वक्त एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसके इर्द गिर्द लेडी कमांडो का घेरा रहता था। वह अपनी शिष्याओं में तेज तर्रार लड़कियों को बॉडीगार्ड के रूप में चुनता था। इन बाडीगार्ड को आश्रम से जुड़े पुलिस में कार्य कर चुके लोग कमांडो की ट्रेनिंग देते थे। सिर्फ बाडीगार्ड ही नहीं ज्ञानेश्वर की पर्सनल गाड़ी की ड्राइवर भी महिला ही होती थी। अपनी गाड़ी में ज्ञानेश्वर एक दो करीबी सेवादारों को भी रखता था।
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