हाइलाइट्स:आम्रपाली योजना में कोर्ट रिसीव के वेबसाइट पर सिर्फ 16000 बायर्स का पूरा डेटा आयाकई ने अपना आधा-अधूरा डेटा भरा तो 15000 बायर्स अभी तक नहीं आए सामनेखरीदारों ने फ्लैट के लिए डेटा नहीं दिया तो हाथ से जाएगी प्रॉपर्टीडेटा न आने से फ्लैट्स के कई नामी और बेनामी लोगों की प्रॉपर्टी होने की आशंकानोएडाआम्रपाली के फ्लैट खरीदार कस्टमर डेटा भरें अन्यथा प्रॉपर्टी से हाथ धोना पड़ सकता है। जानकारी के अनुसार, नोएडा में ऐसे खरीदारों की लिस्ट तैयार की जा रही है जो कस्टमर डेटा भरने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। इनमें सैंकड़ों ऐसे हैं जो कि फ्लैट में रह रहे हैं लेकिन उनके पास न तो कागज हैं और न ही आम्रपाली को पेमेंट करने का कोई पुख्ता सबूत है। ऐसे लोगों की प्रॉपर्टी फंस सकती है।करीब 6 महीने पहले कोर्ट रिसीव की वेबसाइट पर सभी 40 हजार फ्लैट खरीदारों को कस्टमर डेटा भरने के लिए आमंत्रित किया गया था। अभी सिर्फ 16 हजार बायर्स का पूरा डेटा भरा गया है। कुछ ने आधा अधूरा डेटा भरा है।15 लोगों ने नहीं भरा डेटाकरीब 15 हजार ऐसे हैं जिन्होंने डेटा भरने में कोई रुचि नहीं ली है और इनमें सैंकड़ों फ्लैट ऐसे हैं जिनमें बड़े नामी गिरामी लोगों के परिवार व रिश्तेदार रह रहे हैं। वहीं कोर्ट रिसीवर की टीम के पास जो डेटा पहले से उपलब्ध है उनमें मौजूदा रहने वाले लोगों का कोई रेकॉर्ड नहीं है। सामने यह आ रहा है कि इनमें तमाम लोग पोल खुलने के डर से डेटा नहीं भर रहे हैं क्योंकि डेटा भरने के साथ ही फ्लैट खरीदने का सबूत भी देना पड़ेगा।कई अफसरों को पोल खुलने का डरइनमें तमाम ऐसे भी हैं जिन्होंने 5-10 लाख रुपये में बड़े बड़े फ्लैट लिए हैं। ऐसे लोग रेकॉर्ड में आने से बचना चाहते हैं। इसी के चलते अब ऐसे फ्लैटों की लिस्ट बनाकर इन्हें इंवेंट्री वाले फ्लैटों की लिस्ट में बेचने के लिए डालने पर विचार किया जा रहा है। इनमें ऐसे अफसर भी शामिल हैं, जिन्हें आम्रपाली ने कई वजहों से मुफ्त में फ्लैट दिए थे। अब वे कैसे क्लेम करेंगे। उनके पास तो कोई पेमेंट स्लिप नहीं।एनबीसीसी को मिले 700 करोड़अभी तक एनबीसीसी को 700 करोड़ रुपये काम कराने के लिए मिले हैं। इनमें 300 करोड़ रुपये बायर्स ने बकाया राशि जमा कराई है। अब यह 15 हजार बायर ऐसे हैं जो कि न तो अपने फ्लैट का क्लेम करने के लिए रजिस्ट्री का वेरिफिकेशन कराने कोर्ट रिसीवर के पास जा रहे हैं और न ही डेटा में एंट्री करने में रुचि ले रहे हैं। हालांकि इनमें तमाम ऐसे भी हैं जिनके सारे कागज पुख्ता हैं और निश्चिंत हैं जब नंबर आएगा तब रजिस्ट्री करा लेंगे।क्या कहते हैं बायरबायर असोसिएशन से जुड़े केके कौशल का कहना है कि आम बायर को बेवजह रजिस्ट्री के समय छोटी-छोटी चीजों की वजह से परेशान करना गलत है। जिन्होंने नंबर दो का पैसा आम्रपाली में निवेश किया है और उनके पास कोई रेकॉर्ड नहीं उनसे हर सवाल पूछा जाना चाहिए। बायर असोसिएशन से जुड़े अभिषेक का कहना है कि आम बायर्स को राहत देने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट ने इस ग्रुप की जिम्मेदारी के लिए कोर्ट रिसीवर को जिम्मेदारी दी। अब यदि उन्हें ही धक्के खाने पड़ेंगे तो फिर इतने बड़े फैसले का फायदा क्या होगा।इन लोगों की बढ़ सकती है मुश्किल-ऐसे व्यापारी व कंपनियां जो कि आम्रपाली को सीमेंट, ईंट, लोहा व अन्य तरह की सर्विस उपलब्ध कराती थीं। आम्रपाली पर उनकी करोड़ों की देनदारी थी। ऐसे लोगों को बिल्डर ने पैसा न देकर फ्लैट दे दिए। उनके पास ऐसा कोई बैंक स्टेटमेंट नहीं है जिससे पैसा रिलीज हुआ हो।-ऐसे बायर जिन्होंने प्लैट का पजेशन समय पर न मिलने की वजह से बिल्डर पर पेनल्टी क्लेम कर रखी थी और बिल्डर ने उस पेनल्टी को बकाया पेमेंट में एडजस्ट करके उन्हें फ्लैट दे दिया। अब वह रजिस्ट्री के लिए परेशान हैं क्योंकि डेटा में पेनल्टी एडजस्टमेंट अपडेट नहीं है।-ऐसे बायर जिनसे बिल्डर ने ग्रुप से जुड़ी किसी दूसरी कंपनी के नाम का चेक लेकर फ्लैट दे दिया।-कोर्ट रिसीवर के पास जो डेटा है वो वर्षों पुराना है। उसके बाद जो फ्लैट बिल्डर ने बेचे हैं उनका उस डेटा में रेकॉर्ड नहीं हैं। उन्हें रजिस्ट्री के लिए बी और सी लिस्ट में डाल दिया गया है।-जिन बायर ने बिल्डर से इंवेंट्री वाले रॉ फ्लैट (जिनमें प्लास्टर, फ्लोरिंग, इलेक्ट्रिकल वर्क, किचन, टॉयलेट आदि का कुछ काम नहीं था) उनका रेट जाहिर है कि सामान्य फ्लैटों से 10-15 लाख रुपये कम होगा। ऐसे फ्लैट को बायर्स ने खुद पैसा लगाकर पूरा कराया है। अब ऐसे फ्लैटों के वेरिफिकेशन के दौरान बायर्स से कई तरह के सवाल किए जा रहे हैं।सांकेतिक तस्वीर
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