prayagraj news : भारती भवन पुस्तकालय।
– फोटो : prayagraj
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शहर का भारती भवन पुस्तकालय जिसमें कभी पंडित महामना मदन मोहन मालवीय और जवाहर लाल नेहरू जैसी महान विभूतियां ज्ञानार्जन के लिए आती थीं वह आज किताबों की कत्लगाह बना हुआ है। संसाधन नहीं होने से किताबें खराब हो रही हैं। एक दशक से करीब दो लाख अनुदान राशि दी जा रही है। इसे बढ़ाने की सरकार से मांग की गई है।पुस्तकालयाध्यक्ष स्वतंत्र पांडेय बताते हैं कि जिस जगह पर यह भवन है, उस जमीन को ब्रज मोहन लाल भल्ला ने दिया था। साथ ही एक लाख रुपये निर्माण कार्य के लिए भी दिए थे। पुस्तकालय की स्थापना पंडित महामना मदन मोहन मालवीय और बाल कृष्ण भट्ट के संयुक्त प्रयास से हुई थी। यह प्रदेश का सबसे पुराना पुस्तकालय है। ट्रस्ट के प्रथम अध्यक्ष पंडित महामना मदन मोहन मालवीय थे।
वर्तमान में इनके पौत्र न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय अध्यक्ष हैं। पुस्तकालय में ब्रजमोहन व्यास, पंडित बालकृष्ण भट्ट, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, केशव देव मालवीय, महादेवी वर्मा, संपूर्णानंद, कमला नेहरू, पंडित जवाहन लाल नेहरू और पंडित महामना मदन मोहन मालवीय जैसी हस्तियां ज्ञानार्जन के लिए आती थीं। इसके अलावा यह पुस्तकालय आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र भी था। चंद्रशेखर आजाद भी यहां आते थे और रणनीति बनाते थे। यहां से पुस्तकें क्रांतिकारियों के पढ़ने के लिए नैनी जेल भेजी जाती थीं। बताते हैं कि दान की किताबों से पुस्तकालय का संचालन शुरू हुआ था।
पुस्तकालयाध्यक्ष ने बताया कि यहां पर करीब 1145 पांडुलिपियां, कुछ ताड़पत्र और तकरीबन 1762 का उत्तरकांड, 1784 का किषकिंधा कांड, आदि ग्रंथ भी हैं। वर्तमान में 61 हजार पुस्तकें हैं। जो वर्तमान में अनदेखी की वजह से धूल फांक रही हैं। करीब 5500 पुस्तकें उर्दू में हैं। रामायण, श्रीमद् भागवत गीता आदि भी उर्दू में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रतिवर्ष एक से डेढ़ लाख रुपये की पुस्तकें बतौर भेंट दी जा रही हैं।एक दशक से पुस्तकालय को 2 लाख रुपये अनुदान राशि दी जा रही है। राशि को 10 लाख किए जाने की सरकार से मांग की गई है। नगर निगम ने भी दो दशक से मदद राशि बंद कर दी। पुस्तकों को सूचीबद्ध करने के लिए पुस्तकालय को कंप्यूटरीकृत करने का काम चल रहा है। पुस्तकालय में जल्द ही वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध होगी। 2014 के बाद पुस्तकालय को केंद्रीय सूची में रखा गया है।
शहर का भारती भवन पुस्तकालय जिसमें कभी पंडित महामना मदन मोहन मालवीय और जवाहर लाल नेहरू जैसी महान विभूतियां ज्ञानार्जन के लिए आती थीं वह आज किताबों की कत्लगाह बना हुआ है। संसाधन नहीं होने से किताबें खराब हो रही हैं। एक दशक से करीब दो लाख अनुदान राशि दी जा रही है। इसे बढ़ाने की सरकार से मांग की गई है।
पुस्तकालयाध्यक्ष स्वतंत्र पांडेय बताते हैं कि जिस जगह पर यह भवन है, उस जमीन को ब्रज मोहन लाल भल्ला ने दिया था। साथ ही एक लाख रुपये निर्माण कार्य के लिए भी दिए थे। पुस्तकालय की स्थापना पंडित महामना मदन मोहन मालवीय और बाल कृष्ण भट्ट के संयुक्त प्रयास से हुई थी। यह प्रदेश का सबसे पुराना पुस्तकालय है। ट्रस्ट के प्रथम अध्यक्ष पंडित महामना मदन मोहन मालवीय थे।
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वर्तमान में इनके पौत्र न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय अध्यक्ष हैं। पुस्तकालय में ब्रजमोहन व्यास, पंडित बालकृष्ण भट्ट, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, केशव देव मालवीय, महादेवी वर्मा, संपूर्णानंद, कमला नेहरू, पंडित जवाहन लाल नेहरू और पंडित महामना मदन मोहन मालवीय जैसी हस्तियां ज्ञानार्जन के लिए आती थीं। इसके अलावा यह पुस्तकालय आजादी की लड़ाई में स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र भी था। चंद्रशेखर आजाद भी यहां आते थे और रणनीति बनाते थे। यहां से पुस्तकें क्रांतिकारियों के पढ़ने के लिए नैनी जेल भेजी जाती थीं। बताते हैं कि दान की किताबों से पुस्तकालय का संचालन शुरू हुआ था।
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पुस्तकालयाध्यक्ष ने बताया कि यहां पर करीब 1145 पांडुलिपियां, कुछ ताड़पत्र और तकरीबन 1762 का उत्तरकांड, 1784 का किषकिंधा कांड, आदि ग्रंथ भी हैं। वर्तमान में 61 हजार पुस्तकें हैं। जो वर्तमान में अनदेखी की वजह से धूल फांक रही हैं। करीब 5500 पुस्तकें उर्दू में हैं। रामायण, श्रीमद् भागवत गीता आदि भी उर्दू में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रतिवर्ष एक से डेढ़ लाख रुपये की पुस्तकें बतौर भेंट दी जा रही हैं।
एक दशक से पुस्तकालय को 2 लाख रुपये अनुदान राशि दी जा रही है। राशि को 10 लाख किए जाने की सरकार से मांग की गई है। नगर निगम ने भी दो दशक से मदद राशि बंद कर दी। पुस्तकों को सूचीबद्ध करने के लिए पुस्तकालय को कंप्यूटरीकृत करने का काम चल रहा है। पुस्तकालय में जल्द ही वाई-फाई की सुविधा उपलब्ध होगी। 2014 के बाद पुस्तकालय को केंद्रीय सूची में रखा गया है।
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