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उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मामले में पैरवी के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा वाद मित्र बनाए जाने के अनुरोध को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत ने सोमवार को खारिज कर दिया। इसके अलावा ज्ञानवापी परिसर की खोदाई एवं पुरातात्विक सर्वेक्षण कराए जाने संबंधी आवेदन पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने 15 मार्च की तिथि नियत की। सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत में वर्ष 1991 से लंबित प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लॉर्ड विश्वेश्वर ज्ञानवापी मामले में पैरवी के लिए वाद मित्र बनाए जाने के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कोर्ट में आवेदन किया था। अदालत में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से कहा गया था कि वह लॉर्ड विश्वेश्वर की तरफ से वाद मित्र बनकर कुछ महत्वपूर्ण साक्ष्य पांडुलिपियां और ऐतिहासिक किताबें प्रस्तुत करना चाहते हैं।
यह भी कहा गया था कि राम जन्मभूमि मंदिर मामले में भी वह पक्षकार रहे और निर्णय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इस आवेदन का लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने विरोध करते हुए कहा कि 30 साल के बाद कोर्ट में उपस्थित होकर पक्षकार बनने का अनुरोध गलत है। एक वाद मित्र के रहते दूसरा नहीं रखा जा सकता।इसके अलावा इस मामले में लॉर्ड विश्वेश्वर की तरफ से पक्षकार बनाए गए अंजुमन इंतजामियां मसाजिद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से भी विरोध किया गया। अदालत में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विस्तृत आदेश में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के आवेदन को खारिज कर दिया गया।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मामले में पैरवी के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद द्वारा वाद मित्र बनाए जाने के अनुरोध को सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत ने सोमवार को खारिज कर दिया। इसके अलावा ज्ञानवापी परिसर की खोदाई एवं पुरातात्विक सर्वेक्षण कराए जाने संबंधी आवेदन पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने 15 मार्च की तिथि नियत की।
सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत में वर्ष 1991 से लंबित प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लॉर्ड विश्वेश्वर ज्ञानवापी मामले में पैरवी के लिए वाद मित्र बनाए जाने के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कोर्ट में आवेदन किया था। अदालत में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से कहा गया था कि वह लॉर्ड विश्वेश्वर की तरफ से वाद मित्र बनकर कुछ महत्वपूर्ण साक्ष्य पांडुलिपियां और ऐतिहासिक किताबें प्रस्तुत करना चाहते हैं।
यह भी कहा गया था कि राम जन्मभूमि मंदिर मामले में भी वह पक्षकार रहे और निर्णय कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। इस आवेदन का लार्ड विश्वेश्वर के वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने विरोध करते हुए कहा कि 30 साल के बाद कोर्ट में उपस्थित होकर पक्षकार बनने का अनुरोध गलत है। एक वाद मित्र के रहते दूसरा नहीं रखा जा सकता।
इसके अलावा इस मामले में लॉर्ड विश्वेश्वर की तरफ से पक्षकार बनाए गए अंजुमन इंतजामियां मसाजिद और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से भी विरोध किया गया। अदालत में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद विस्तृत आदेश में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के आवेदन को खारिज कर दिया गया।
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