इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड में राज्यपाल के आदेश पर उम्रकैद से समय पूर्व रिहा हुए भाजपा के पूर्व विधायक Udaybhan Karwariya और सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब तलब किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह प्रथम की अदालत ने सपा विधायक विजमा यादव की याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रेम प्रकाश यादव और अभिषेक यादव को सुनकर दिया है।
विजमा ने पति जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित समेत चार लोगों की सरेराह हत्या के दोषी पाए गए Udaybhan Karwariya को राज्यपाल की ओर से समय पूर्व रिहाई के दिए गए आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। 13 अगस्त 1996 को सिविल लाइंस में सरेराह सपा के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित और उनके तीन साथियों पर एके 47 से गोलियां बरसा कर निर्मम हत्या की गई थी।
जवाहर पंडित के भाई सुलाकी यादव की तहरीर पर उदयभान करवरिया, बसपा के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी को इस हत्याकांड का आरोपी बनाया गया। चार नवंबर 2019 को इसमें फैसला आया। चारों दोषियों को सश्रम उम्रकैद और 7.20 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद से करवरिया बंधु जेल की सलाखों में कैद चल रहे थे। हालांकि, उदयभान एक बार पैरोल पर बाहर भी आया था। लेकिन, समय पूरा होने के बाद फिर जेल जाना पड़ा था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की सुनवाई: पूर्व विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड में विवाद और राजनैतिक परिदृश्य
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक जवाहर पंडित हत्याकांड में भाजपा के पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की समय पूर्व रिहाई के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। इस आदेश के तहत राज्यपाल द्वारा दी गई उम्रकैद की सजा से समय पूर्व रिहाई को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता और न्यायमूर्ति सुरेंद्र सिंह की अदालत ने सपा विधायक विजमा यादव की याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रेम प्रकाश यादव और अभिषेक यादव की सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया है।
हत्याकांड का संदर्भ
13 अगस्त 1996 को इलाहाबाद के सिविल लाइंस इलाके में एक अत्यंत नृशंस हत्याकांड हुआ था। समाजवादी पार्टी (सपा) के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित और उनके तीन साथियों को एके-47 से गोलियों से भून दिया गया था। यह हत्या राजनीति और अपराध के मेलजोल को स्पष्ट करती है, और इसने पूरे प्रदेश में गहरा आक्रोश पैदा किया था।
समय पूर्व रिहाई का विवाद
राज्यपाल द्वारा दी गई समय पूर्व रिहाई की अनुमति पर विवाद ने राजनैतिक और न्यायिक परिदृश्य को जटिल बना दिया है। सपा विधायक विजमा यादव ने राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि इस निर्णय ने न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित किया है। उनका कहना है कि हत्यारों की रिहाई से पीड़ित परिवार को न्याय नहीं मिलेगा और यह निर्णय समाज में गलत संदेश जाएगा।
राजनीतिक संदर्भ और प्रभाव
उदयभान करवरिया की रिहाई का मामला केवल एक कानूनी विवाद नहीं है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की राजनीति और न्याय व्यवस्था की जटिलताओं को उजागर करता है। उत्तर प्रदेश में राजनीति और अपराध का गहरा रिश्ता रहा है, और यह मामला इसी रिश्ते का एक उदाहरण है। भाजपा और सपा के बीच के राजनीतिक मतभेद इस विवाद को और भी पेचिदा बना रहे हैं।
कानून और न्याय की चुनौतियाँ
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश ने न्यायिक प्रणाली के सामने एक नई चुनौती पेश की है। कानून और न्याय के दृष्टिकोण से, यह मामला न्यायिक स्वतंत्रता और राजनीतिक हस्तक्षेप के बीच की सीमाओं को परीक्षण में डालता है। यह भी दिखाता है कि कैसे एक महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय राजनीति के प्रभाव में आ सकता है।
उत्तर प्रदेश में अपराध और राजनीति
उत्तर प्रदेश में अपराध और राजनीति के बीच का संबंध लंबे समय से विवादित रहा है। कई बार अपराधी और राजनेता एक-दूसरे के संपर्क में होते हैं, और इससे न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं। इस केस में भी यह साफ नजर आता है कि कैसे एक राजनीतिक घटना ने न्याय प्रक्रिया को प्रभावित किया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है जो न्याय की प्रक्रिया को सही दिशा में ले जाने की कोशिश कर रहा है। यह मामला केवल एक व्यक्ति की रिहाई तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तर प्रदेश की राजनीति, न्याय प्रणाली और अपराध के रिश्ते को भी दर्शाता है। भविष्य में ऐसी घटनाओं के प्रति सतर्कता और न्याय की प्रक्रिया की पारदर्शिता की आवश्यकता है ताकि समाज में विश्वास बना रहे और अपराधियों को उचित सजा मिले।
जवाहर पंडित के भाई सुलाकी यादव की तहरीर पर उदयभान करवरिया, बसपा के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी को इस हत्याकांड का आरोपी बनाया गया। 4 नवंबर 2019 को अदालत ने सभी चार आरोपियों को सश्रम उम्रकैद और 7.20 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसके बाद से करवरिया बंधु जेल में बंद थे, हालांकि उदयभान करवरिया को एक बार पैरोल पर बाहर आने की अनुमति मिली थी, लेकिन समय पूरा होने के बाद उसे फिर से जेल जाना पड़ा।