जोधपुर, 25 अगस्त। जोधपुर के रक्षा मंत्रालय और अनुसंधान संगठन डीआरडीओ ने देशों के दस्तावेजों को सुरक्षित करने के लिए चीफ टेक्नीक को ना सिर्फ विकसित किया है, बल्कि उत्पादन का आकलन भी किया है। अब भारत में इस तकनीक के लिए विदेशी कंपनी को मंजूरी नहीं है। जोधपुर के रक्षा प्रयोजन में देश के रेडियो की वार्षिक एक लाख कार्टेज की मंजिल को पूरा करने के लिए शेफ प्रोडक्शन प्लांट लगाया गया है। यह जानकारी बुधवार को मीडिया कलाकारों को देते हुए डीआरडीओ के डायरेक्टर्स फोटोग्राफर कुमार ने बताया कि यहां नेवी के शेफ डेकॉर का उत्पादन भी किया जाएगा। पहले इस उत्पाद के लिए अरबों डॉलर के टिकट खरीदे जाते थे, लेकिन अब यह जोधपुर में ही तैयार हो जाएगा
इससे भारत की विदेशी मुद्रा बचेगी और रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। उन्होंने बताया कि यह एक ऐसी तकनीक है, जो फाइटर प्लेन को दुश्मनों के दिमाग से बचाती है। होगा। चीफ व्युत्पत्ति क्लाउड तैयार करता है और मिसाइल को ओर डायवर्ट करता है। यह लड़ाकू विमान वहां से लापता होने का समय मिल जाता है और वो सुरक्षित अपना मिशन पूरा कर वापस लौट सकता है।
उन्होंने बताया कि भारत में पहले इस तकनीक का प्रयोग होने वाले चीफ कार्टेज के लिए विदेशी कंपनी को मंजूरी दी गई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने जिन डायग्नोस्टिक्स के उत्पादन पर रोक लगा दी, उस सूची में प्रमुख भी थे। बाद में इस टेक्नोलॉजी में काम आने वाले थे सऊदी अरब को जोधपुर के रक्षा अनुसंधान में रेलवे माइक्रोबायोलॉजी स्टूडियो प्रशांत ने विकास किया और इसके उत्पादन का प्लांट भी स्थापित किया।
बाल से चार ग्लूकोज़ सबसे अलग
चीफ़ बालों से भी चार गुप्तांगों में गांठें होती हैं, जो एक कार्टेज में भर जाती हैं। डीओ डीआरओ फ्लोरिडावेज़ कुमार ने बताया कि विदेश से आने वाला चैफ एल्युमीनियम कोटेड ग्लास में होता था। लेकिन पूर्ण रूप से स्वदेशी चैफ त्रिआक्रोफोबिक कोटिंग से निर्मित है, इसकी एफएसआईएन्सी एक चौथाई मात्रा में है। यह तेजी से फेल कर वर्चुअल क्लाउड तैयार करता है। साथ ही यह एनवायरनमेंट फ्रेंडली और सस्ता भी है।