भितरवार एरिया में इस साल क्षेत्र में धान की बोवनी अधिक हुई तो धान पर रोगों की आपदा भी जमकर आई। जहां एक और कम बारिश ने अंचल के किसानों को दुविधा में डाला। जैसे तैसे नहरों और निजी ट्यूबवेलो के सहारे धान की फसल खेतों में लगा दी गई। उसके बाद कीट और बीमारियों ने फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू किया तो किसानों ने महंगी महंगी दवाओं का छिड़काव करके जैसे तैसे अपनी फसल को रोग व्याधि से बचाया। अब जब धान की फसल पकने वाली है तब काला तेला नाम की बीमारी ने हमला बोल दिया, जिससे फसल सूख रही है। किसानों की मुसीबत यह है कि, इस बीमारी पर कोई कीटनाशक काम नहीं कर रहा है, इससे खेतों में बीमारी बढ़ती जा रही है।
धान की फसल में बालियां आ चुकी है। फसल पकने की कगार पर है, इसी बीच काला तेला जिसे कृषि विभाग ब्लैक सुपर बीपीएच के नाम से जाना जाता है, यह रोग धान की फसल में बढ़ता जा रहा है इस रोग में मच्छर जैसे छोटे छोटे काले रंग के कीड़ों का झुंड धान के पौधों के नीचे तने में चिपकता है। इस कीड़े के कारण 4 से 5 दिन में पौधा जड़ से सूख जाता है। पौधे पर पहले काले काले धब्बे होते हैं फिर सुख कर जमीन पर गिर पड़ता है। चीनौर और भितरवार क्षेत्र के कई ग्रामों में इस रोग का प्रकोप कई खेतों में दिख रहा है। यह रोग खेत के किनारे से शुरू होता है और बढ़कर बीच में पहुंच जाता है। इसका असर ऐसा होता है कि खेत में बीचो-बीच धान के पौधे सूख रहे हैं। धान में यह बीमारी हवा के साथ बढ़ रही है।
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