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Reservation in jobs: मध्‍य प्रदेश में अधिकारियों ने 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक दिया नौकरियों में आरक्षण

01 08 2024 reservation in jobs 202481 195045

सरकारी नौकरियों में आरक्षण। – प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

HighLights

कई विभागों ने 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण दिया 50 प्रतिशत की संवैधानिक सीमा पार दीं नियुक्तियां MPPSC से 5 साल में ओबीसी आरक्षण से नहीं चयन

राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। बिहार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट भी कर दिया है पर मध्य प्रदेश में अधिकारियों ने कई विभागों की नियुक्तियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देकर 50 प्रतिशत की उक्त सीमा पार कर दी। इससे सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों का नुकसान तो हुआ ही, 13 प्रतिशत ओबीसी के वो प्रत्याशी नौकरी में आ गए, जो पात्र नहीं थे।

वर्ष 2019 में कमल नाथ के मुख्यमंत्रित्व वाली राज्य की कांग्रेस सरकार के समय ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया था। इसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई तो कई भर्ती परीक्षा परिणाम रोक दिए गए। बाद में 13 प्रतिशत पद रोककर परीक्षा परिणाम जारी किए गए लेकिन अधिकारियों ने खेल यह किया कि जिन पदों की भर्ती को लेकर मामले विचाराधीन थे, उसे छोड़कर बाकी में 27 प्रतिशत आरक्षण के हिसाब से नियुक्ति दे दी।

इससे आरक्षण का अनुपात गड़बड़ा गया। अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग को 20, अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को 16 और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल गया जो 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से 13 प्रतिशत अधिक है। इससे सीधे-सीधे अनारक्षित वर्ग के हित प्रभावित हो रहे हैं।

वोट बैंक की राजनीति के चलते कोर्ट के निर्णय के विपरीत कर दी व्यवस्था प्रदेश में ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है। मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड, विंध्य और मध्य क्षेत्रों में सबसे अधिक 51 प्रतिशत ओबीसी मतदाता हैं।

वोट बैंक की राजनीति के चलते ही मध्य प्रदेश में कोर्ट के निर्णय के विपरीत जाकर ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई। जो अब कोर्ट में विचाराधीन है। ओबीसी आरक्षण का मामला पांच साल से 27 प्रतिशत या 14 प्रतिशत पर अटका हुआ है।

इस दौरान मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) से ओबीसी वर्ग की एक भी नियुक्ति नहीं हुई है। कांग्रेस सरकार में शुरू हुए इस मामले को भाजपा सरकार ने सुलझाने का कोई प्रयास भी नहीं किया। वोट बैंक के इस पूरे खेल में एमपीपीएससी के प्रभावित अभ्यर्थी 90 प्रतिशत युवा हैं, जो सरकार की राजनीति का शिकार हुए हैं।

मध्य प्रदेश के एक्ट में 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रविधान किया हुआ है। उसी के अनुरूप भर्ती में आरक्षण दिया जा रहा है। वैसे भी यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है। शासन अपना पक्ष रख भी रहा है। फिर जो भी निर्णय कोर्ट से होगा वह सर्वमान्य होगा।

– मनीष रस्तोगी, प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग

सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन तय कर दी है कि 50 प्रतिशत से अधिक जातिगत आरक्षण नहीं होना चाहिए। एससी और एसटी के लिए पहले से आरक्षण है, 10 प्रतिशत आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए है और 27 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी वर्ग को दिया हुआ है। यह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के विपरीत है। किसी को नियुक्त किया जाना है तो योग्य व्यक्ति का ही चयन किया जाएगा लेकिन आरक्षण की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि इससे गुणवत्ता और मेरिट प्रभावित होता है और योग्य व्यक्ति नहीं मिल पाता हैं। यह भी सीमा तय होनी चाहिए कि एक व्यक्ति अधिकतम एक या दो पीढ़ी तक आरक्षण का लाभ लेकर प्रगति कर अपर क्लास के बराबर हो जाए तो उसे आरक्षण का लाभ न दिया जाए।

– अजय मिश्रा, पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता, मध्य प्रदेश