कभी चंबल अंचल के बीहड़ों में खौफ का पर्याय रहे पंचम सिंह ने १९७२ मेें हथियार पुलिस को सौंपकर आत्मर्पण कर दिया था। करीब ९५ वर्ष की आयु में एक बार फिर प्रशासन के खिलाफ पूर्व दस्यु पचंम सिंह ने मोर्चा खोल दिया है, लेकिन इस बार संघर्ष का तरीका गांधीवादी है। वह लहार नगर पालिका स्थित भवन में संचािलत प्रजापति ब्रह्मकुमारी गकीता पाठशाला (आश्रम) को ढहाने की योजना के खिलाफ आमरण अनशन करने का मना बना चुके हैं। बागी पंचम सिंह चौहान पर हत्या, लूट, डकैती, अपहरण जैसे सौ से अधिक प्रकरण दर्ज थे। १९७२ में गांधीवादी विचारक समाजसेवी डॉ. एसएन सुब्बाराव की पहल पर महात्मा गांधी सेवा आश्रम जौरा-मुरैना में उन्होंने अपने साथियों के साथ आत्मसर्पण किया था। इस दौरान उन्हें पचमेड़ा तिराहा पर आठ बीघा जमीन भी दी गई थी। जेल में रहने के दौरान वह अध्यात्म से जुडकर ब्रह्मकुमारी संस्था के सदस्य बन गए। जेल से निकलकर १९८१ में लहार नगर के मेन बाजार स्थित मां मंगला देवी मंदिर के बगल में नपा की जमीन पर प्रजापति ब्रह्मकुमारी आश्रम की स्थापना की। हालांकि नपा ने आश्रम हटाने का नोटिस जारी किया था आखिर में एक अनुबंध हुआ, जिसमें नपा ने दुकान क्रमांक १८४ को एक रुपये प्रति माह किराया तय कर उन्हें आवंटित किया था
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