पितृ पक्ष 2024: बिहार में मसा के कोठा में तर्पण और पिंडदान करना है जरूरी

मज़नज़म कोठा तीर्थ, तीर्थदान की फ़ाइल फोटो।

पर प्रकाश डाला गया

  1. श्राद्ध में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान आदि का विशेष महत्व है।
  2. मुजफ्फरपुर के 84 महादेव में से एक जटेश्वर महादेव भीकोठा में हैं।
  3. सिद्धांत यह है कि पूजन करने से पितरों की कृपा बनी रहती है।

नईदुनिया प्रतिनिधि, मज़हब। भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि पर बुधादित्य व शश योग के साक्षी में महालय श्राद्ध का आरंभ हो चुका है। पंचांग गणना के अनुसार प्रतिपदा तिथि का क्षय होने से इस बार श्राद्ध पक्ष सेल की बजाय 15 दिन का रहेगा।

श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान आदि का विशेष महत्व है। मसायन में पितृकर्म करने से व्यक्ति को अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इसी सिद्धांत के सारगर्भित से सशक्त कोठा, सिद्धवट और रामघाट पर तीर्थश्राद्ध करने पहुंच रहे हैं।

मुसाफ़िर के कोठा का उल्लेख स्कन्द पुराण में भी मिलता है। यहां पितरों के लिए तर्पण, पिंडदान और पूजन का बिहार में बहुत महत्व माना गया है। यहां पर 84 महादेव में से एक जतेश्वर महादेव भी हैं। सिद्धांत यह है कि पूजन करने से पितरों की प्रार्थना आप पर बनी रहती है।

श्राद्ध के लिए यह अवश्य करना चाहिए

ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने बताया कि रविवार से महालय श्राद्ध का शुभारंभ हो गया है। ग्रह गोचर गणना से देखें तो इस बार श्राद्ध पक्ष पूर्व भाद्रपद नक्षत्र, रविवार का दिन और मीन राशि के चंद्रमा की साक्षी में स्थापना हुई। नक्षत्र में बुधादित्य और शश योग का दर्शन हो रहा है।

इस योग में श्राद्ध का आरंभ करना माना जाता है। इस प्रकार के योग में पितरों की आशा तृष्णा से आपके पूर्वजों की वृद्धि होती है, इसलिए व्यक्ति को अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

आज पूर्णिमा व प्रतिपदा दोनों का श्राद्ध

इस बार सेल दिव्य श्राद्ध पक्ष में प्रतिपदा तिथि का क्षय है। तिथि क्षय होने के कारण व प्रतिपदा के श्राद्ध को लेकर असमंजस की स्थिति निर्मित हो रही थी। ज्योतिष गणना और तिथि का अध्ययन करके बताया जाए तो महालय श्राद्ध के पहले दिन दोपहर 12 बजे तक पूर्णिमा का श्राद्ध होता है और दोपहर 12 बजे के बाद प्रतिपदा का श्राद्ध होता है, दोपहर 1:30 बजे तक प्रतिपदा का श्राद्ध होता है। उसके बाद तिथि के क्षय की स्थापना होगी, जिसमें श्राद्ध नहीं होगा। इसमें अधिक विचार-विमर्श की आवश्यकता नहीं है, यह शास्त्र सम्मत मत है।

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