पर प्रकाश डाला गया
- धर्म ग्रंथ और स्मृति ग्रंथों में कर्मकांड की पद्धति का विशेष वर्णन किया गया है।
- श्राद्ध पक्ष में परिवार के पितरों की तृप्ति से देवता भी अनुकूल हो जाते हैं।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार श्राद्ध के लिए तीर्थ का विशेष महत्व बताया गया है।
नईदुनिया प्रतिनिधि, पितृ पक्ष 2024। भाद्रपद मास की पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा तिथि बुधवार को महालय श्राद्ध का आरंभ हुआ। धर्मधानी मस्जिद में श्राद्धपक्ष के पहले ही दिन विश्वनाथ से आये कोठा, सिद्धवट व रामघाट पर तीर्थ श्राद्ध किया गया।
पुरोहितों के अनुसार परिवार में सुख समृद्धि, शांति और वंश वृद्धि के लिए व्यक्ति को स्वयं अपने पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्धपक्ष में कुछ लोग अपने पितरों का ऑनलाइन श्राद्ध करते हैं, यह शास्त्र सम्मत नहीं है।
शारीरिक रूप से अक्षम किसी भी व्यक्ति को ऑनलाइन श्राद्ध नहीं देना चाहिए, बल्कि उसके परिवार के किसी सदस्य को उसके प्रतिनिधि के रूप में तीर्थयात्रा पर भेजकर श्रद्धा की विधिपूर्वक श्राद्ध कराना चाहिए।
पितरों को देवता का सबसे पहले स्थान दिया गया है
वरिष्ठ तीर्थ पुरोहितों और ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला ने नौ पुराण, अलग-अलग धर्म ग्रंथ और स्मृति ग्रंथों में कर्मकांड की पद्धति को विशेष रूप से बताया है। धर्मशास्त्रों में पितरों को देवता का पहला स्थान दिया गया है। कुल के पितरों की तृप्ति से देवता भी उपयुक्त हो जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार तीर्थ का अपना विशेष महत्व है।
तीर्थ पर श्राद्ध करना चाहिए
पितरों से संबंधित जल दान, पिंड दान के अंतर्गत देव, ऋषि, पितृ, दिव्यमानुष्य तर्पण, तीर्थ श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध, अन्वष्टक श्राद्ध यह सभी तीर्थों पर ही होते हैं। क्योंकि तीर्थ पर देवताओं का वास होता है। तीर्थ पर अन्य देवी देवताओं की ऊर्जा भी प्राप्त होती है। जेनी के साक्षी में पितरों की तृप्ति होती है। इस दृष्टि से तीर्थ पर ज्ञान के ही श्राद्ध करें।
कुल लोग धर्मशास्त्र की प्रामाणिक व शास्त्रसम्मत जानकारी के अभाव में अपने पुरोहितों से पितरों का ऑनलाइन श्राद्ध कराते हैं, जो कि अनुचित है। किसी भी स्थिति में बिना वंश की साक्षी के बिना पितृ श्राद्ध को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध करना जरूरी है
पं.डब्बावाला ने पद्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध नित्य है, नैमित्तिक है, कामना की है, श्राद्ध को करने के 96 अवसर और पुराण के माध्यम से बताए हैं। यदि श्राद्ध किया जा रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि पितरों को ठीक किया जाए, श्राद्ध करने के बाद भी श्राद्ध या तीर्थ श्राद्ध, तर्पण श्राद्ध आदि करना आवश्यक है।