चकाचौंध भरी जिंदगी में पारंपरिक दीये आज भी दिवाली को खास बना देते हैं। रांची से लगभग 10 किलोमीटर दूर बोड़ेया का सरपंच टोली एक ऐसा गांव है जहां दर्जनों परिवार कई दशकों से मिट्टी के दीये बनाकर अपनी जीविका चला रहा हैं। यह काम सालों भर होता है, लेकिन दिवाली का समय इनके लिए खास है।
दिवाली का समय आते ही पूरा परिवार मिट्टी के दीये बनाने में जुट जाता है। घर के मर्द दूर खेतों से मिट्टी लाते हैं, उसे सानते हैं और उनसे विभिन्न प्रकार के दिए बनाए जाते हैं। वहीं महिलाएं और बच्चे इसे सुखाने, रंगने और पकाने जैसे काम में मदद करते हैं।
सरपंच टोली के सभी परिवारों के आय का एक मात्र साधन दीया बनाना ही है। इसके अलावा वे कोई और काम नहीं करते हैं। रमेश प्रजापति बताते हैं कि यह उनके पूर्वजों का पेशा है, जिसे उन लोगों ने जिंदा रखा है। गांव वाले चाहते हैं कि दीये के उपयोग तथा इसे बनाने की परंपरा कभी खत्म न हो।
आमतौर पर बाजार में इस गांव में तैयार एक दीया की कीमत 2 रुपये के आसपास होती है। लेकिन जहां इन दीयों का निर्माण होता है, वहां से ये 50 पैसे में खरीदे जाते हैं। यह दीयों की थोक कीमत है। लोगों को 1000 दीयों के लिए ₹500 देने होते हैं। बाजार आते-आते ट्रांसपोर्ट और मार्जिन की वजह से इसकी कीमत बढ़ जाती है।
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