रांची, सुनील कुमार झा: झारखंड में शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीइ) की नियमावली में संशोधन किया जायेगा. इसके तहत निजी स्कूलों को मान्यता लेने के लिए नियमावली में तय भूमि की शर्त में बदलाव हो सकता है. इसे लेकर स्कूली शिक्षा और साक्षरता मंत्री रामदास सोरेन ने विभाग के अधिकारियों को प्रस्ताव तैयार करने का निर्देश दिया है. विभागीय मंत्री के निर्देश के अनुरूप शिक्षा विभाग ने इस संबंध में आवश्यक प्रक्रिया शुरू की है.
जमीन की कमी से स्कूलों को नहीं मिल रही मान्यता
झारखंड में वर्तमान में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत स्कूलों की मान्यता के लिए शहरी क्षेत्र में 75 डिसमिल और ग्रामीण क्षेत्र में एक एकड़ जमीन की आवश्यकता होती है. विभाग के कार्यों की समीक्षा के दौरान शिक्षा मंत्री के समक्ष राज्य में बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों का मामला रखा गया. शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन को स्कूलों की मान्यता को लेकर आवश्यक शर्त की जानकारी दी गयी.
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75 डिसमिल जमीन की रखी गयी थी शर्त
बैठक में कहा गया कि निजी विद्यालयों को मान्यता देने के लिए शहरी क्षेत्र में 75 डिसमिल जमीन की शर्त रखी गयी है, जिसकी पूर्ति शहरी क्षेत्रों में संभव नहीं हो पा रही है. ग्रामीण क्षेत्र में भी जमीन को लेकर परेशानी हो रही है. ऐसे में शिक्षा मंत्री ने स्कूलों की मान्यता को लेकर आवश्यक जमीन की अहर्ता कम करने को लेकर कैबिनेट के समक्ष प्रस्ताव रखने का निर्देश दिया. राज्य में वर्ष 2011 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ था. फिर वर्ष 2019 में नियमावली में पहला संशोधन हुआ और अब दूसरा संशोधन हो सकता है.
झारखंड में बिना मान्यता के पांच हजार सेअधिक स्कूल
झारखंड में बिना मान्यता के सबसे अधिक 5879 विद्यालय संचालित हैं. इन स्कूलों में 837879 बच्चे नामांकित हैं, जबकि 46421 शिक्षक कार्यरत हैं. देश में बिना मान्यता के सबसे अधिक निजी स्कूल झारखंड में संचालित किये जा रहे हैं. ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष देश भर में बिना मान्यता के चल रहे स्कूलों की संख्या जारी की थी. जिसके बाद झारखंड में स्कूलों की मान्यता को लेकर पत्र जारी किया गया था.
स्कूल संचालक कर रहे शर्त में बदलाव की मांग
झारखंड के निजी स्कूल संचालक काफी दिनों से जमीन की शर्त में बदलाव की मांग कर रहे हैं. इस संबंध में स्कूल संचालकों का कहना था कि इस शहरी क्षेत्र में 75 डिसमिल जमीन मिलना काफी मुश्किल है. स्कूलों का कहना है कि जमीन नहीं होने के कारण ही मान्यता नहीं मिल पाती है.
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