आज़ादी के दीवाने: कसमार (बोकारो), दीपक प्रश्न-ब्रिटिश शासन से मुक्ति यानि देश की आजादी की लड़ाई को परवान तक ले जाने में झारखंड के बोकारो जिले के कई स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका अहम रही है, लेकिन ये है कि भारत के लिए मर-मिटने और अपना सब-कुछ न्योछावर कर देनेवाले अनेक स्वतंत्रता सेनानी आज भी बेरोजगार हैं। बोकारो के कसमार खंड के ओरमो गांव के निवासी सोनाराम करमाली नी कोका कमर करमाली भी ऐसे ही हैं, जो कि स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं। उलगुलान के महानायक बिरसामुंडा के समय बंधक के खिलाफ लड़ाई में अपना योगदान दिया था, लेकिन इतिहासकारों ने उन्हें वह जगह नहीं दी, जहां उन्हें नामित किया गया था। जब बिरसा मुंडा के नेतृत्व में झारखंड के आदिवासी ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए गोलबंद किए गए थे, उसी वक्त कोका कमर करमाली के नेतृत्व में झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोहारा करमाली आदिवासी स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभा रही थी। कोका कमर करमाली हमेशा अपने साथ टांगी रखती थीं। उसी से उन्होंने कई बरातियों की जान ले ली थी।
कोका कमर को टाँगी, तलवारें और भाला बनाने में सफलता मिली
बिरसा मुंडा से प्रभावित सभी लोहरा करमाली जनजाति के लोग स्वतंत्रता आंदोलन में बाली आयरन का हथियार बंगाल क्षेत्र में स्वतंत्रता सेनानियों को प्रदान करते थे। चित्रा पत्थर से लोहा लोहार वे बाली लोहा (शुद्ध लोहा) को तोड़ते थे और एक ही प्रकार की विभिन्न प्रकार की तलवारें, भाला, टांगी, फरसा, तीर की नोंक आदि तोड़ते थे। ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ उन हथियारों की आज़ादी की लड़ाई में काफी मदद मिली थी। कोकर कमार इसके नेतृत्व में दिवालियापन में थे. वे इस क्षेत्र में बिजनेसमैन के दिशानिर्देश नीचे दिए गए थे। उनके वंशजों के अनुसार, वह युद्ध कौशल के विशेषज्ञ थे तथा टाँगी, तलवारें तथा भाला विक्रय में उन्हें सफलता मिली थी। बाली लोहे से स्वनिर्मित एक टाँगी सदैव अपने पास ही रखी रहती थी और उसी से ब्रिटिश युद्ध पोत थे।
ब्रांड के पास आज भी है वह टांगी
वंशजों का दावा है कि टांगी से कई बंधुओं और उनके हुक्मरान जमींदारों को मार डाला गया था। इससे पहले बौखलाए बांग्लादेश ने उन्हें कैद करने या मारने के लिए ओरमो में उनके घर पर लगातार छापीमारी अभियान भी चलाया था, लेकिन हर बार वह बांग्लादेश को चकमा से बच गए और आंदोलन में अपनी भूमिका निभाते रहे। वह टांगी परिवार के पास आज भी मौजूद हैं। बिहार सरकार के कल्याण विभाग (बिहार जन कल्याण अनुसंधान संस्थान) द्वारा प्रकाशित प्रो सहयोगी नौमानी की पुस्तक ‘लोहरा’ में कोका कमार करमाली के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान की चर्चाएँ हैं।
आज़म 35 साल की उम्र में ही निधन
कोकर काम करमाली का जन्म 21 नवंबर 1861 को हुआ और 35 वर्ष की आयु में 8 जनवरी 1896 को उनका निधन हो गया। वंशजों का मानना है कि उनका स्वभाव मृत नहीं था। वह छोटी उम्र में ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो गए थे। 22 नवंबर 2022 को कमर-करमाली लोहरा समाज ने अपने पुराने गांव में एक भव्य समारोह का आयोजन कर अनोखे आदमकद प्रतिमा कसमार-पेटरवार मुख्य पथ में मधुकरपुर चौक के पास स्थापित किया है। वर्तमान में कोका कमर के घर में उनके पोटा-परपोटा सहित अन्य हैं। एक-दो सदस्यों को सीसीएल में नौकरी मिली थी। बाकी सदस्य मेहनत-मजदूरी कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं। कोका कमार के वंशज बोधनराम करमाली, सीसी करमाली, शत्रुघ्न, गोलक, खोमा, बाबूलाल, रामाधार, धनलाल कहते हैं कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वह कोका कमार जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानी के वंशज हैं, लेकिन इस बात का भी दुख:ख है उनका कहना है कि वह सरकार के स्तर पर उनका सम्मान नहीं करते हैं, जिसका उन्होंने उल्लेख किया है।
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