राँभ : मकर संक्रांति का सूर्योदय होते ही हर उम्र के लोगों में पतंगबाज़ी का खुमार चढ़ जाता है। बाजार में भी रंग-बिरंगा पतंग से सजा नजर आ रही है जो, लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। रांची के कर्बला चौक में 50 साल से भी पुराना पतंग बाजार है। इस बाज़ार में आस-पास के क्षेत्र से लेकर ग्रामीण पतंगों की खरीदारी करने आते हैं। यहां दो रुपये से लेकर 600 रुपये तक की पतंग, लटाई और घूंघट मिल रहे हैं। ऑनलाइन शॉपिंग के लिए लोगों की भीड़ जुटती है। हालाँकि, लोगों के बीच सबसे अधिक कागज से बनी पतंग आज की तरह बिखरी हुई है। इसके अलावा फाइल से बने पतंग की भी खूब बिक्री हो रही है। बच्चों से लेकर साथियों के बीच पतंगबाजी न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह लोगों को एकजुट करने का काम करती है।
पतंगों और लताओं का बाज़ार
मकर संक्रांति के अवसर पर पतंग और लता का बाजार भी पूरी तरह से बिकता है। बाजार में विभिन्न प्रकार की पतंगें, मांझे और अन्य सामग्रियां उपलब्ध हैं। बाज, बटर फ़्लैटाई, एयरोप्लेन, कोरिया कैट, पैराशूट, बैलून कैट, पेपर और कार्टून डिज़ाइन की पतंगों की सबसे अधिक मांग रहती है। हाल ही में बड़े आकार की पतंगें लोगों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रही हैं, कीमत 100 रुपये से लेकर 600 रुपये तक है। आमतौर पर पतंगों की कीमत 2 रुपये से लेकर 600 रुपये तक होती है। सबसे ज्यादा बिकने वाली पतंग की कीमत 6 रुपए है। वहीं, लता की कीमत 20 रुपये से लेकर 1300 रुपये तक है। प्लास्टिक और लकड़ी की होती हैं, जो छोटी, महंगी और बड़े आकार की होती हैं।
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अधिकतर पतंगें बनाई जाती हैं
देखिए की बात तो दूसरी लंबाई 100 मीटर से लेकर 10,000 मीटर तक होती है। अधिकांश कागज़ात बनाए जाते हैं. मूल्य 5 रुपये से शुरू 1200 रुपये तक है. आमतौर पर 100 मीटर गेज की कीमत 10 रुपये तक होती है, जबकि 10,000 मीटर गेज की कीमत 300 से 400 रुपये तक होती है. थोक सामान से लेकर फुटकर विक्रेताओं को पतंगें से भी कम लार्वा में शामिल किया गया है। फ़ुटकर विक्रेता उदाहरण डुगने दाम पर बेचकर रिवाइवल कमाते हैं।
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किट निर्माण की क्या प्रक्रिया है
पतंग के निर्माण के लिए उपयोग में आने वाला प्लास्टिक माइनस्वीप से सिंगापुर जाता है, जबकि पतंग की कमानी कोलकाता में निर्मित होती है। इनमें पारंपरिक कारीगरी और पतंगें तैयार की जाती हैं। तैयार पतंगों को बाजार में खरीदा जाता है। पतंग का व्यापार मकर संक्रांति जैसे त्योहारों के दौरान आपका शबाब होता है, जब बच्चों और बड़े दोनों में उत्साह का माहौल रहता है। यात्रियों के लिए यह एक अच्छा अवसर है, खासकर जब वे थोक में खरीदारी कर सीजन के हिसाब से कीमत तय करते हैं। छोटे और प्लास्टिक पतंगों की अधिक मांग है, और अनुरोध की गुणवत्ता भी बिक्री को प्रभावित करती है। यदि सही समय पर, ग्राहक की पसंद और बाज़ार की ज़रूरतों को ख़त्म किया जाए, तो यह एक और सफल व्यवसाय साबित हो सकता है।
पतंगबाज़ी की मकर संक्रांति के मौसम में जबरदस्त कमाई
थोक विक्रेता तालिब ने बताया, “पतंगों का सीज़न जनवरी तक रहता है। इस दौरान हमारी कमाई 8 से 10 लाख रुपये तक है। वहीं, पूरे साल में हम 20 लाख रुपये की पतंगें बजाते हैं। हमारे यहाँ से कई फुटकर विक्रेता पतंग टेम्पलेट हैं और आज तक पतंग को लेकर कोई शिकायत नहीं आई है।”
हरमू में पतंगों का भारी बाज़ार
हरमू के राहुल कुमार पिछले 10 वर्षों से पतंगों का व्यवसाय कर रहे हैं। इस बार उन्होंने 300 रुपये का माल खरीदा, जिसमें एक पतंग उन्हें थोक में 2 रुपये में मिला। उनका कहना है कि प्लास्टिक की पतंगों की मांग कागज की पतंगों से ज्यादा है। छोटी-छोटी पतंगों की बिक्री सबसे ज्यादा हो रही है, जो इश्यूज के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं।
कंकाल को काबिले तारीफ है
कस्टमर दस्तावेज़ हैं कि उन्हें कैट कैद में बहुत मजा आता है। वह पांडा के विज का इस्तेमाल करते हैं और आज से पतंग उड़ाना शुरू कर रहे हैं। मार्जिन ने यह भी कहा कि वह मकर संक्रांति के बाद पतंगबाजी का पूरा आनंद लेने का मन बना चुके हैं।
चुटिया में रवि चंद्रा की किराना दुकान और पतंग व्यापार
चुटिया में स्थित पूजा रवि चंद्रा की किराना दुकान में सामग्री, सब्जी और अन्य सामग्री के साथ कीट भी बिकती हैं। इस बार उन्होंने 100 पतंगें पेश कीं, कुल कीमत 500 रुपये रखी। वह इन पतंगों को अपने 600-650 रुपये में बेचने की योजना बना रहे हैं। रवि का कहना है कि पतंग के ग्राहक बच्चों के साथ-साथ बड़े भी होते हैं, और उनकी दुकान में पतंग की बिक्री मुख्य रूप से सीज़न में ही होती है।
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