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29 दिसंबर को हेमंत सरकार के होंगे 4 साल पूरे, 23 वर्षों में प्रदेश की पहली गैर भाजपा सरकार का इतना लंबा कार्यकाल

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम-कांग्रेस-राजद की गठबंधन सरकार 29 दिसंबर को अपने चार साल पूरे कर रही है. झारखंड के 23 वर्षों के इतिहास में किसी गैर भाजपा सरकार का यह अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है.

23 Dec 2023

रांची : झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली जेएमएम-कांग्रेस-राजद की गठबंधन सरकार 29 दिसंबर को अपने चार साल पूरे कर रही है. झारखंड के 23 वर्षों के इतिहास में किसी गैर भाजपा सरकार का यह अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल है. पांचवां साल यानी 2024, सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के लिए कानूनी और चुनावी इम्तिहानों का बेहद चुनौतीपूर्ण साल होगा.

सोरेन केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी के रडार पर हैं. खनन घोटाले में उनसे एक दफा पूछताछ हो चुकी है. अब जमीन घोटाले से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए उन्हें एजेंसी ने छह बार समन किया है. सोरेन इनमें से किसी समन पर ईडी के सामने पूछताछ के लिए हाजिर नहीं हुए. उन्होंने ईडी के खिलाफ हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का रुख किया, लेकिन उन्हें खास राहत नहीं मिली. सोरेन खुद कई बार कह चुके हैं कि उन्हें जेल भेजने की साजिश की जा रही है. वह चुनौती के लहजे में कह चुके हैं कि विपक्षी यह समझ लें कि उनके जैसा झारखंडी कभी जेल से नहीं डरता. 

अब चर्चा 2024 में सोरेन और उनकी पार्टी की चुनावी चुनौतियों की, जिसके लिए उन्होंने खुद को काफी हद तक तैयार कर लिया है. आदिवासियों और झारखंड के मूलवासियों से जुड़े मुद्दे जेएमएम की राजनीति के केंद्र में रहे हैं और 2024 में ऐसे मुद्दों को और धार देने की कोशिश में जुटी है. सरकार के कई फैसलों में उसका यह फोकस साफ तौर पर दिखता है. मसलन बीते बुधवार को सरकार ने झारखंड विधानसभा से डोमिसाइल पॉलिसी का बिल बगैर किसी संशोधन के दूसरी बार पारित कराया. इस बिल के अनुसार राज्य में स्थानीयता यानी डोमिसाइल तय करने का आधार 1932 का खतियान (भूमि सर्वे रिकॉर्ड) होगा और राज्य में थर्ड एवं फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में झारखंड के डोमिसाइल यानी स्थानीय लोगों को शत-प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. 

इसके पहले यह बिल बीते वर्ष 11 नवंबर को झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में भी पारित किया गया था, लेकिन राज्यपाल ने अटॉर्नी जनरल की राय के साथ इसे लौटाते हुए पुनर्विचार करने को कहा था. सरकार ने अटॉर्नी जनरल की राय और उस पर आधारित आपत्तियों को खारिज करते हुए बिल को दोबारा हू-ब-हू पारित कराया. दरअसल, इसके जरिए हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह झारखंडी पहचान के अपने एजेंडे से पीछे नहीं हटेगी. हालांकि यह बिल केंद्र सरकार की हरी झंडी के बगैर कानून के तौर पर धरातल पर नहीं उतर पाएगा, क्योंकि राज्य सरकार ने इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है और इसे राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजने का आग्रह किया है. केंद्र सरकार जब तक इसे संसद से पारित नहीं कराती, तब तक यह कानून की शक्ल नहीं ले सकता. 

केंद्र सरकार इस बिल पर सहमत नहीं होती है तो झारखंड की झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन सरकार चुनावी अभियान के दौरान भाजपा पर सीधे-सीधे तोहमत मढ़ेगी कि वह झारखंड के मूलवासियों-आदिवासियों को उनके हक से वंचित रखना चाहती है. आने वाले चुनावी अभियानों के दौरान भाजपा को हेमंत सोरेन सरकार की इस सियासी दांव की मजबूत काट ढूंढनी होगी. 

हेमंत सोरेन 2024 की चुनावी चुनौतियों के मद्देनजर पब्लिक कनेक्ट के कार्यक्रमों में पूरी ऊर्जा झोंक रहे हैं. सरकार की चौथी वर्षगांठ के पूर्व “आपकी सरकार आपके द्वार” अभियान के तहत राज्य की 4300 से ज्यादा पंचायतों और सभी नगर निकायों में 24 नवंबर से लेकर 29 दिसंबर तक कैंप लगाए जा रहे हैं. इस अभियान के तहत सीएम हेमंत सोरेन खुद सभी जिलों में जा रहे हैं और लोगों से सीधे कनेक्ट हो रहे हैं. पिछले 26 दिनों में उन्होंने राज्य के 24 में से 20 जिलों का दौरा किया है और दो दर्जन से भी ज्यादा जनसभाओं को संबोधित किया है. 

पब्लिक कनेक्ट के इस अभियान को सोरेन कितनी शिद्दत के साथ ले रहे हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि इसमें अपनी व्यस्तता का हवाला देकर वे बीते 6 दिसंबर और 18 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की कोर कमेटी की बैठकों तक में शामिल नहीं हुए. हेमंत सोरेन सीएम के साथ-साथ जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. चुनावी वर्ष की दस्तक के पहले ही उन्होंने जिला, ब्लॉक और पंचायत लेवल के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बांडिंग मजबूत करने की मुहिम भी शुरू कर दी है.