झारखंड की राजनीति :- छत्तीसगढ़ के वैधानिक नतीजों का हवा झारखंड की राजनीति पर भी असर डालेगी। हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में जीत के बाद झारखंड में भाजपा को जोश की एक नई खुराक मिली है। दूसरी तरफ राज्य में झामुमो-कांग्रेस-पापा गठबंधन को भी इस बात का एहसास है कि वह बीजेपी की ओर से सेलेब्रिटी चैलेंज मीटिंग वाली है। झारखंड के भाजपाई, छत्तीसगढ़ के समाजवादी विचारधारा से सबसे अधिक इच्छुक हैं।
झारखंड और छत्तीसगढ़ के राज्य शामिल हैं और दोनों राज्यों के सैंडविच में काफी प्रतिकूल स्थिति है। दोनों राज्यों में पासपोर्ट की आबादी है। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की आबादी जहां 33 प्रतिशत है, वहीं झारखंड में 26-27 प्रतिशत है। 23 साल पहले दोनों राज्यों का गठन एक ही साथ हुआ। बौद्धवाद की समस्या दोनों राज्यों में कमोबेश एक समान है। छत्तीसगढ़ की जीत से भाजपा को जनता वोटर्स को साधने का मंत्र मिल गया है। पिछले चुनाव में भाजपा झारखंड की 28 युवाओं में से 26 पर हरण की वजह से सत्ता से बाहर हो गई थी। इस बार पार्टी का फोकस जज़बान पर है। इसके लिए विशेष रणनीति पर काम भी शुरू हो चुका है।
सनद रहे कि छत्तीसगढ़ में दूसरे चरण के चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के खूंटी क्षेत्र में बिरसा जयंती के मौके पर विकास और कल्याण के लिए 24,000 करोड़ रुपए की घोषणा की थी। प्रशांत एलायंस के सबसे बड़े नेता एलायंस सोरेन के गुट भाजपा की ओर से बाबूलाल मरांडी को प्रमुख रूप से जदयू नेता के तौर पर पेश किया जा रहा है। बाबूलाल छत्तीसगढ़ में चुनावी मैदान में उतरे, बीजेपी के स्टार प्रचारक बने थे। उन्होंने राज्य के दस जिलों में चुनावी सभाओं की मेजबानी की, जिनमें से आठ में भाजपा को जीत मिली है। बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में झारखंड में बीजेपी के 47 नेताओं को शामिल किया था. इन नेताओं के छत्तीसगढ़ के अनुभव झारखंड में भी दिखेंगे। छत्तीसगढ़ की जीत के बाद झारखंड में मुख्यमंत्री मिशेल सोरेन पर भाजपा के राजनीतिक हमले बढ़ेंगे। पीएचडी और असोसिएट की दुकान में भी बढ़ोतरी हो सकती है।
विशेष रूप से क़ीमती सामान, खुद और परिवार के करीबी लोगों को पट्टे पर देने के मामले में भी उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। अब तक पांच बार समन जारी हो चुकी है। चार राज्यों के इलिनोइस से प्रशांत झामुमो, कांग्रेस और राजद के गठबंधन के इनुनी अनुपात भी प्रभावित हुए। विपक्ष से पहले तक 2024 के चुनाव में कांग्रेस “बैठक साझीदार” के रूप में उम्मीदवारी पेश कर रही थी, अब सीट में कांग्रेस गठबंधन के अंदर झामुमो के ऊपर बहुमत दबाव की स्थिति में नहीं होगी। अविश्वासियों ने कांग्रेस और झामुमो को भी छोड़ दिया है कि उन्हें विशेष रूप से और विधानसभाओं के लिए चुना जाएगा और बहुमत से प्रयास करना होगा और सीखने की बेहतर समझ के साथ बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करना होगा। (आईएएनएस)
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