LagatarDesk : शारदीय नवरात्र हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन से शुरू होता है. इस बार नवरात्रि 15 अक्टूबर यानी आज से शुरू हो रहा है. जिसका समापन 24 अक्टूबर को विजयदशमी के साथ होगा. नवरात्रि का शुभारंभ प्रतिपदा तिथि पर घटस्थापना के साथ होता है. घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 41 मिनट से लेकर 11 बजकर 56 मिनट तक है. वहीं अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना करना और भी शुभ माना जाता है. अभिजीत मुहूर्त 15 अक्टूबर यानी आज सुबह 11 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक है.
30 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग
ज्योतिष गणना के अनुसार, शारदीय नवरात्रि इस वर्ष बेहद खास रहने वाले हैं. दरअसल शारदीय नवरात्रि में 30 साल बाद एक बड़ा ही दुर्लभ संयोग बन रहा है. शारदीय नवरात्रि पर बुधादित्य योग, शश राजयोग और भद्र राजयोग एकसाथ बन रहे हैं. ऐसे में देवी के स्वरूपों की उपासना कहीं ज्यादा मंगलकारी और फलदायी हो सकती है.
इस बार हाथी में आ रही हैं मां
शारदीय नवरात्र में मां हाथी पर आयी हैं. मां का हाथी में आना और जाना काफी शुभ माना जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि जब मां दुर्गा हाथी में आती और जाती हैं तो भारी वर्षा होती है. अच्छी बारिश होने से खेती भी अच्छी होगी. देश में अन्न धन का भंडार बढ़ता है. बता दें कि मां दुर्गा के आने और जाने के वाहन अलग-अलग होते हैं. मां दुर्गा जब हाथी पर सवार होकर आती हैं तो ज्यादा पानी बरसता है. नौका पर सवार होकर माता रानी आती हैं तो शुभ फलदायी होता है. अगर मां डोली पर सवार होकर आती हैं तो महामारी का अंदेशा होता है. इसी तरह मां दुर्गा मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं तो जनता में दुख और कष्ट बढ़ता है. हाथी पर सवार होकर प्रस्थान करने से बारिश ज्यादा होती है. मां दुर्गा अगर मनुष्य की सवारी करके जाती हैं तो सुख-शांति बनी रहती है.
कलश स्थापना विधि
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र पहनें.
फिर मंदिर की साफ-सफाई करके गंगाजल छिड़कें.
इसके बाद लाल कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें. मिट्टी के एक पात्र में जौ बो दें.
साथ ही इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश में चारों ओर आम या अशोक के पत्ते लगाएं और स्वास्तिक बनायें.
फिर इसमे साबुत सुपारी, सिक्का और अक्षत डालें.
एक नारियल पर चुनरी लपेटकर कलावा से बांधें और इस नारियल को कलश के ऊपर पर रखते हुए मां जगदंबे का आह्वान करें.
फिर दीप जलाकर कलश की पूजा करें.
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान
नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. मां के इन नौ स्वरूपों में नवग्रहों को नियंत्रित करने की शक्ति होती है. मान्यता है कि नौ दिन तक देवी दुर्गा के 9 रूपों की पूजा करने से अलग-अलग विशेष लाभ मिलते हैं. शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी अश्विन प्रतिपदा तिथि पर मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है. हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. मां शैलपुत्री का प्रिय रंग सफेद है. इसलिए पूजा में सफेद रंग की वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए. देवी को सफेद रंग की पुष्प, सफेद मिठाई जैसे रसगुल्ला भोग लगाएं. पहले दिन मां का प्रिय भोग गाय के घी से बने मिष्ठान उन्हें अर्पित करें.
स्नेह, करूणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक है मां शैलपुत्री
मार्केण्डय पुराण के अनुसार, पर्वतराज यानी शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. साथ ही माता का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है. इसके अलावा शैलपुत्री को सती, हेमवती और उमा के नाम से भी जाना जाता है. घोर मां शैलपुत्री के दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल सुशोभित है. मां शैलपुत्री को स्नेह, करूणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक माना जाता है.
मां शैलपुत्री पूजा विधि
कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री को धूप, दीप दिखाकर अक्षत, सफेद फूल, सिंदूर, फल चढ़ायें.
मां के मंत्र का उच्चारण करें और कथा पढ़ें। भोग में आप जो भी दूध, घी से बनी चीजें लाएं हैं वो चढ़ायें.
फिर हाथ जोड़कर मां की आरती उतारें.
आखिर में अनजाने में हुई गलतियों की माफी मांगे और हमेशा आशीर्वाद बनाए रखने की माता रानी से प्रार्थना करें.
मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिका कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया गया. राजा दक्ष ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए शिव जी को यज्ञ में नहीं बुलाया. देवी सती यज्ञ में जाना चाहती लेकिन शिव जी ने वहां जाना उचित नहीं समझा. सती के प्रबल आग्रहर पर उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी. यहां सती ने जब पिता द्वारा भगवान शंकर के लिए अपशब्द सुने तो वह पति का निरादर सहन नहीं कर पाईं और यज्ञ की वेदी में कूदकर देह त्याग दी.इसके बाद मां सती ने पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया. देवी शैलपुत्री अर्थात पार्वती का विवाह भी भोलेनाथ के साथ हुआ.
शारदीय नवरात्रि 2023 की तिथियां
– रविवार, 15 अक्टूबर 2023- मां शैलपुत्री (पहला दिन) प्रतिपदा तिथि
– सोमवार, 16 अक्टूबर 2023- मां ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन) द्वितीया तिथि
– मंगलवार, 17 अक्टूबर 2023- मां चंद्रघंटा (तीसरा दिन) तृतीया तिथि
– बुधवार, 18 अक्टूबर 2023- मां कुष्मांडा (चौथा दिन) चतुर्थी तिथि
– गुरुवार, 19 अक्टूबर 2023- मां स्कंदमाता (पांचवा दिन) पंचमी तिथि
– शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023- मां कात्यायनी (छठा दिन) षष्ठी तिथि
– शनिवार, 21 अक्टूबर 2023- मां कालरात्रि (सातवां दिन) सप्तमी तिथि
– रविवार, 22 अक्टूबर 2023- मां महागौरी (आठवां दिन) दुर्गा अष्टमी
– सोमवार, 23 अक्टूबर 2023- महानवमी, (नौवां दिन) शरद नवरात्र व्रत पारण
– मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023- मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी तिथि (दशहरा)
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