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नियोजन नीति : क्या सरकार के पास 2016 से पहले का ही बचा

रघुवर दास सरकार का 1985 का प्रस्ताव ‘स्थानीय नीति’ थी न कि ‘नियोजन नीति’
रघुवर सरकार की 13/11 जिलों की नियोजन नीति को सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर चुका है रद्द
हेमंत सरकार की नियोजन नीति-2021 को भी हाईकोर्ट ने रद्द किया है

Ranchi :  झारखंड की राजनीति में इन दिनों नियोजन नीति को लेकर लगातार चर्चा हो रही है. वहीं, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थी राज्य सरकार से जल्द से जल्द रोजगार देने की मांग कर रहे हैं. सरकार भी इसपर मंथन कर रही है कि क्या करें कि युवाओं को रोजगार मिले. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसके लिए अब युवाओं से ही सुझाव लेने का फैसला किया है, जानकारों की मानें, तो सरकार के पास तत्काल रूप से केवल 2016 से पहले की नीति ही विकल्प के रुप में दिख रही है. पूर्ववर्ती रघुवर सरकार की 2016 और हेमंत सरकार की 2021 की नीति को पहले कोर्ट खारिज कर चुका है. सीएम के मांगे सुझाव से अलग कई अभ्यर्थी 1985 की नीति के आधार पर भी रोजगार देने की मांग कर रहे हैं, जो किसी तरह से तर्कसंगत या सही नहीं है. जानकारों की मानें, तो सरकार के पास अभी केवल एक ही नीति के तहत रोजगार देने का विकल्प बचता है. वह नीति है 2016 से पहले की नीति.

1985 की नीति नियोजन नहीं, स्थानीय नीति थी

रघुवर दास सरकार में 1985 को आधार बनाकर जो नीति बनी थी, वह नियोजन नहीं बल्कि स्थानीय नीति थी. इसके तहत 1985 से राज्य में रहने वालों को स्थानीय माना गया था. थर्ड ग्रेड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में इसके दायरे में आने वालों को लाभ देने का फैसला हुआ था.

रघुवर की नियोजन नीति को कोर्ट ने रद्द कर दी थी

रघुवर सरकार के समय 14 जुलाई, 2016 को एक अधिसूचना जारी कर नियोजन नीति लागू की गई थी. नीति के तहत सभी 24 जिलों में 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित किया गया. निर्णय हुआ था कि अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए वही अभ्यर्थी फॉर्म भर कर नियुक्ति पा सकेंगे, जो इन जिलों के निवासी थे. गैर अनुसूचित जिलों की नौकरियों के लिए हर कोई फॉर्म भर सकता था. इस नीति को भी सुप्रीम कोर्ट पहले ही रद्द कर चुका है.

हेमंत सरकार की नियोजन नीति भी हो चुकी है रद्द

हेमंत सरकार की नियोजन नीति-2021 को भी हाईकोर्ट रद्द कर चुका है. नीति में प्रावधान था कि थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों में जनरल वर्ग के उन्हीं लोगों की नियुक्ति हो सकेगी, जिन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा झारखंड से पास की हो. कोर्ट ने इसे असंवैधानिक माना था और कहा था कि यह नीति समानता के अधिकार के खिलाफ है.

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सीएम ले रहे सुझाव, विकल्प केवल दूसरा ही

सभी तरह की नीति के खारिज होने और युवाओं को जल्द से जल्द रोजगार देने के लिए मुख्यमंत्री अब युवाओं से ही दो तरह के सुझाव ले रहे हैं.

पहला – क्या 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति को नौंवी अनुसूची में शामिल होने तक इंतजार करें.

दूसरा – 2016 से पहले की नीति के तहत रोजगार देने की पहल करें.

पहली वाली नीति का तत्काल लागू होना संभव नहीं दिखता. विधानसभा से पारित 1932 के खतियान आधारित नीति विधेयक को राजभवन पहले ही सरकार को लौटा चुका है. इसे फिर से विधानसभा से पारित करा सरकार को भेजना होगा. वहीं, नीति का लागू होना पूरी तरह से केंद्र पर निर्भर करता है. ऐसे में सरकार के पास अब केवल दूसरा सुझाव यानी 2016 से पहले की नीति ही विकल्प बचता है. बता दें कि इस विकल्प में अभ्यर्थियों से पूछा जाता था कि “क्या वे झारखंड राज्य के निवासी है या नहीं”:

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