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जिन्हें दी 180 घंटे की ट्रेनिंग, उन्हें काम से हटाया, अब अकुशल के हाथों में मरीजों की सांस

Sourav Shukla

Ranchi: केंद्र सरकार के आदेश के बाद राज्य के सभी जिलों में कोविड की आपात स्थिति से निपटने के लिए तमाम व्यवस्था का मॉक ड्रिल किया गया. इसमें मरीजों को भर्ती करने से लेकर उन्हें ऑक्सीजन देने तक का मॉक ड्रिल किया गया. मंगलवार को मॉक ड्रिल के बाद सदर अस्पताल में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि डरने की जरूरत नहीं है. कोरोना के हर परिस्थिति से निपटने के लिए झारखंड पूरी तरह से तैयार है. कोविड के पुराने लक्षणों के अनुसार, सबसे अधिक लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. इसके लिए राज्य भर में पीएम केयर फंड, सीएसआर फंड और राज्य सरकार के मद से 138 पीएसए प्लांट का निर्माण किया गया. प्लांट बनकर तैयार हो चुका है, लेकिन इससे मरीजों तक सही से ऑक्सीजन पहुंच पाएगा यह दुविधा है. पीएसए प्लांट को संचालित करने के लिए आईटीआई, बीटेक पास युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया था. प्रशिक्षण के बाद परीक्षा के जरिए चयनित किया गया था. ताकि बिना किसी व्यवधान के मरीजों तक निर्बाध रूप से ऑक्सीजन पहुंच सके. पर, बहाली के तीन महीने के बाद ही उन्हें हटा दिया गया. वहीं कोरोना का संक्रमण कम होते ही इनकी जरुरत नहीं समझी गयी. अब मरीजों को सांस पहुंचाने की जिम्मेवारी पूरी तरह से अप्रशिक्षित लोगों के पास है. रिम्स सहित अधिकतर जिलों में संचालित ऑक्सीजन प्लांट विशेषकर पीएसए के लिए कहीं पर भी प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं. बता दें कि केंद्र सरकार की ओर से ही कुल 180 घंटे की ट्रेनिंग दी गई थी.

पीएसए प्लांट की मॉनिटरिंग डिस्प्लेहर महीने मॉक ड्रिल कर केंद्र को भेजनी थी रिपोर्ट

10 मई 2022 के पत्र के अनुसार, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन झारखंड के अभियान निदेशक ने सभी जिलों के सिविल सर्जन, मेडिकल कॉलेज, एम्स और सभी निजी अस्पतालों के प्रबंधन को निर्देशित किया था कि पीएसए प्लांट को संचालित रखने के लिए हर महीने 15 से 18 तारीख तक मॉक ड्रिल कर रिपोर्ट सौंपेंगे. जिसके बाद रिपोर्ट 20 तारीख को केंद्र सरकार को भेजनी थी. उस पत्र के बाद भी पहली बार ही मॉक ड्रिल किया गया. जिन अभ्यर्थियों ने ट्रेनिंग ली थी उनका कहना है कि हमने ट्रेनिंग ली थी और हमें काम से हटा दिया गया. अब वैसे लोगों के भरोसे पीएसए का मॉक ड्रिल किया गया जो टेक्निकली प्रशिक्षित नहीं हैं.

टेक्नीशियन को मानदेय के लिए नहीं है कोई मद

मध्यप्रदेश सहित अन्य कुछ राज्यों में 12 हजार प्रतिमाह के हिसाब से काम करने वालों को मानदेय मिलना था. पर झारखंड में स्वास्थ्य विभाग की ओर से इसपर कोई पहल नहीं की गयी है. इससे पहले भी जिन्हें झारखंड में बहाल किया गया था, उन्हें अपने पैसे के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी थी. अंत में श्रम नियोजन के नियम के अनुसार, 405 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मानदेय दिया गया. वहीं दर्जनों ऐसे भी कर्मी थे जिन्हें अभी तक पैसे का भुगतान नहीं किया गया. राज्य में 138 पीएसए प्लांट होने के बाद भी इसके संचालन के लिए टेक्नीशियनों को किसी तरह का मद नहीं दिया जाता. इसका संचालन या तो अस्पतालों में पहले से मौजूद कर्मियों से ही कराया जा रहा है, या फिर आउटसोर्सिंग वाले संचालन कर रहे हैं.

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ट्रेनिंग में दी गई थी प्लांट के संचालन की संपूर्ण जानकारी, अप्रशिक्षित फंसा सकते हैं सांस

ट्रेनिंग प्राप्त युवाओं ने बताया कि प्लांट ऑन करने की प्रक्रिया में वोल्टेज देखना पड़ता है. कितनी वोल्टेज की जरूरत है, उस हिसाब से वोल्टेज कम या ज्यादा होने पर की स्थिति में क्या करना चाहिए, जिससे मशीन बंद ना पड़े. साथ ये ये भी देखना जरारू है कंप्रेशर चालू है कि नहीं. वहीं एयर ड्रायर पर भी निगरानी सबसे जरूरी होती है. एयर ड्रायर से कंप्रेशर हवा को अपनी ओर खींचकर, एयरड्रायर में हवा को फिल्टर कर नमी को सोखने का काम करता है. इसको डिजिटली देखना पड़ता है. ड्रेन वॉल्व से नमी बाहर निकलता है. यहां देखना पड़ता था कि डस्ट पार्टिकल ऑक्सीजन में तो नहीं भर जा रहा है. डस्ट पार्टिकल जाने से मरीजों की सांस पर आफत आ सकती है. वहीं प्रशिक्षित लोगों को बताया गया था कि ऑक्सीजन की प्यूरिटी कैसे मेंटेन करना है. इसके अलावा जियो लाइट मॉलिक्यूलर को सही से समझना भी अप्रशिक्षित लोगों के बस की चीज नहीं है. उन्होंने बताया कि एक कंप्रेशर में कितनी बार ऑक्सीजन जाएगा. इसकी गिनती ट्रेंड लोगों को ही है. मशीन के संचालन के लिए ट्रेंड लोग होने चाहिए.

रिम्स में आउटसोर्सिंग एजेंसी के कर्मचारी करते हैं पीएसए प्लांट का संचालन

वहीं राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान रिम्स में 6 अक्टूबर 2021 को 1085 एलपीएम के पीएसए प्लांट की शुरूआत हुई. पीएम केयर्स फंड से लगाए गए इस पीएसए प्लांट को करीब 9 करोड़ की लागत से बनाया गया है. निर्माण करने वाली कंपनी महाराष्ट्र के औरंगाबाद की आयरॉक्स टेक्नोलॉजी है. कंपनी के द्वारा 7 साल तक प्लांट का मेंटेनेंस किया जाएगा. वहीं प्लांट के ऑपरेटर के विषय में जब जानकारी ली गई तब पता चला कि रिम्स में आउटसोर्सिंग एजेंसी सन फैसिलिटी के कर्मी द्वरा मशीन का संचालन किया जाता है.

क्या कहते हैं अपर मुख्य सचिव

वहीं इस मामले पर स्वास्थ विभाग के अपर मुख्य सचिव अरूण कुमार सिंह ने कहा कि जल्द ही मामले का निपटारा किया जाएगा. जो कमी होगी उसे दूर कर लिया जाएगा.

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