Shruti prakash singh
Ranchi: झारखंड से प्रवासी मजदूर और महिलाओं का पलायन आम बात है. मगर आश्चर्य तो तब होता है कि सरकार के लाख प्रयास के बाद भी इसपर लगाम नहीं लग पाया है. मां-बहनें और बच्चे अब भी काम की तलाश में मानव तस्करों के शिकार हो रहे हैं. झारखंड के कई ऐसी महिलाएं एवं बच्चे हैं जो लापता हो गए और उसका सुराग नहीं मिला.
पुलिस की निष्क्रियता से बढ़ी परेशानी
कई मामलों में थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई. लेकिन न तो उसे खोजा जा सका और ना ही उसके बारे में पता करने की पुलिस ने कोशिश की. अगर आंकड़ों की बात की जाए तो झारखंड में प्रतिदिन 2 लोग लापता हो रहे हैं. अब सवाल उठता है कि इसके पीछे कौन है? बच्चे और महिलाएं आखिर कहां गायब कर दी जा रही हैं? यह एक बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है.
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लापता महिला और बच्चे के आंकड़े
-पिछले तीन सालों में एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2,525 बच्चे और महिलाएं
-एनसीआरबी के अनुसार वर्ष 2016 में 479 बच्चे और 501 महिलाएं लापत हुए
-वर्ष 2017 में 420 बच्चे और 361 महिलाएं लापता हुए
-वर्ष 2018 में 359 बच्चे और 399 महिलाएं लापता हुए
राज्य से रोजाना 2 लोग हो रहे लापता
पुलिस इसे घर से भाग जाने का मामला बताकर फाइल बंद कर दे रही है. घर से लोगों के लापता होने का मामला लगातार बढ़ता ही जा रहा हैं. झारखंड पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य से रोजाना औसतन 2 लोग लापता हो रहे हैं. इनमें पुरुष, महिला और बच्चे शामिल है. लापता हुए व्यक्तियों में कई ऐसे व्यक्ति भी शामिल हैं जिसकी मौत हो चुकी. पुलिस इसे लापता हो जाने या फिर घर से बिना बताए कहीं भाग जाने का मामला बता कर पल्ला झाड़ लेती है.
उठ रहे कई सवाल ?
इस बीच सवाल यह उठ रहा है कि आखिर बच्चे और महिलाएं जा कहां रहे है? क्या इसके पीछे कोई तस्कर गिरोह का हाथ है ? क्या दूसरे प्रदेशों में भेज कर उनका शारीरिक एवं मानसिक शोषण किया जाता है? क्या इससे मानव तस्कर अपनी झोली भर रहे हैं? वे वाकई घर वापस नहीं लौटना चाहते या उनके साथ अनहोनी हो रही है?
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तस्करों के निशाने पर बच्चियां और महिलाएं
झारखंड से गायब बच्चे और महिलाएं देश के बड़े शहरों में फंसे हैं. कई तो कारखानों में कैद होकर बंधुआ मजदूरी कर रहे हैं. कई बच्चियां घरेलू काम में लगा दी गयी हैं, जहां उनका शोषण हो रहा है. कईयों को गलत धंधों में भी ढकेल दिया गया हैं. ज्यादातर बच्चे और महिला को नौकरी लगाने का झांसा देकर मानव तस्कर बड़े शहरों में ले जाते हैं. वहां उसका सौदा कर देते हैं. सुदूर जंगलों में बसे गांवों की लड़कियां और बच्चों की तस्करी मामले में एफआईआर दर्ज नहीं हो पाती. क्योंकि लोग अशिक्षित हैं और जागरूकता का अभाव है. मानव तस्करों के निशाने पर ज्यादातर नाबालिग बच्चियां और महिलाएं होती हैं.
बाहर जाने के लिए निबंधन जरूरी
इस मामले में झारखंड सरकार ने कड़ा रूख अपनाया है. झारखंड से बाहर जाने वाले प्रवासी मजदूरों और कामकाजी महिलाओं को अब निबंधन कराना जरूरी है. श्रम, निबंधन विभाग ने निबंधन करना अनिवार्य कर दिया है. राज्य के बाहर जो भी जाएंगे, उनका पूरा विवरण प्रवासी नियंत्रण कक्ष के पास जमा करना जरूरी है. इतना ही नहीं प्रवासी नियंत्रण कक्ष दूसरों राज्य या फिर विदेशों से भी संपर्क में रहते हैं ताकि कोई घटना या दुर्घटना हो जाने पर तुरंत इनका रेस्क्यू किया जा सके. इसके बावजूद अभी भी पूर्ण से रूप से पलायन या मानव तस्करी पर प्रतिबंध नहीं लग पाया है.
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