Ranchi: झारखंड राज्य सूचना आयोग में पिछले दो वर्षों से सन्नाटा पसरा है. यहां ना तो मुख्य सूचना आयुक्त हैं और ना ही एक भी सूचना आयुक्त. स्थिति यह है कि सूचना पाने की आस में आवेदक द्वितीय अपील और शिकायतवाद लेकर आयोग के दरवाजे से निराश लौट रहे हैं. आयोग में अपील और शिकायत के 20 हजार से अधिक आवेदन पहुंच चुके हैं, जो सुनवाई के अभाव में लंबित पड़े हैं. प्रदेश भाजपा ने इसे लेकर फिर से अपनी चिंता जताई है. यहां तक कि विधानसभा के जारी बजट सत्र के दौरान भी बोकारो विधायक बिरंची नारायण इस विषय पर कार्य स्थगन प्रस्ताव लाने की मांग की थी. कहा था कि जनहित के इस अहम मुद्दे पर चर्चा सदन में जरूरी है.
आरटीआई कानून की परवाह नहीं
बिरंची नारायण के मुताबिक आरटीआई 2005 के तहत राज्य पारदर्शी और जवाबदेह शासन के लिए कृत संकल्पित है. इसे देखते हुए ही राज्य सूचना आयोग का गठन किया गया था. यहां 1 मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा 10 आयुक्त के पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभीतक आयोग में एक आयुक्त नहीं है. स्थिति अब ऐसी बन गयी है कि लोक सूचना अधिकारी और प्रथम अपीलीय पदाधिकारी निरंकुश होते जा रहे हैं. ना तो 30 दिनों की नियत अवधि में आवेदकों को सूचना मिल रही है और ना ही ससमय प्रथम अपील में सुनवाई हो रही है.
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आरटीआई 2005 की धारा 4 (1) (ख) के तहत राज्य के सभी लोक प्राधिकारों को अधिनियम के लागू होने के 120 दिनों के अंदर स्वत: 17 बिंदुओं पर सूचनाएं सार्वजनिक कर देनी चाहिए थीं. इसका पालन अब तक नहीं हो सका है. 2 सालों से आयोग के निष्क्रिय रहने से आवेदकों में निराशा है. लालफीताशाही और करप्शन को बढ़ावा मिल रहा है.
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