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Jamshedpur: झारखंड में भाषा विवाद के बीच पूर्व सांसद शैलेंद्र महतो की टिप्पणी से आहत पूर्व मंत्री एवं विधायक सरयू राय ने सधा जवाब दिया है. अतिक्रमणकारी दिकू संबंधी शैलेंद्र के बयान के बाद बुधवार को जारी बयान में सरयू राय ने कहा कि पूर्व सांसद शैलेन्द्र महतो उनके शुभचिंतक हैं. मौका-बेमौका वे जो भी बोलते हैं, उसमें उनकी भलाई की भावना निहित रहती है. आज भी उन्होंने प्रेस वक्तव्य के माध्यम से जो अर्द्धसत्य कहा है वह उन्होंने मेरे फायदे के लिए कहा है. लगता है मुझे फायदा पहुंचाने का अवसर वे ढूंढते रहते हैं.
सरयू ने आगे कहा है कि दो वर्ष पहले जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा क्षेत्र के चुनाव में उन्होंने उनका जमकर विरोध किया था. इसका मुझे बड़ा फायदा हुआ था. मैं कठिन चुनाव जीत गया था. मेरे चुनाव जीत जाने के बाद लगता है उनके मन में कोई ग्रंथि बैठ गई है. इस ग्रंथि से ग्रस्त होकर वे मेरे बारे में जहां -तहां बोलते रहते हैं. वे जब कभी मेरे बारे में बोलते हैं उसका लाभ मुझे मिल जाता है. इसलिए मेरे विरोध में उनके द्वारा बोलने का मैं कभी बुरा नहीं मानता. आज भी उन्होंने जो कुछ कहा है उसके लिये उन्हें धन्यवाद देता हूं और उम्मीद करता हूं कि उनके मन में व्याप्त आक्रोश आज नहीं तो कल अवश्य समाप्त हो जायेगा. वस्तुस्थिति उनकी समझ में आ जायेगी. मन में बैठी ग्रंथि दूर हो जायेगी. एक अंतर्मुखी स्वघोषित बुद्धिजीवी की तरह ऐसे विषयों पर मेरे संबंध में वे जो भी बोलते-लिखते हैं, उसका स्वाभाविक लाभ मुझे यह मिलता है कि मैं ऐसे विषयों पर गहराई से सोचता-विचारता हूं. आत्मचिंतन और आत्ममंथन करता हूं. उन्होंने मुझे दिकू कहा है. इसका मुझे मलाल नहीं है. मुझे जानने वाले उनका यह प्रमाण पत्र खारिज कर देते हैं.
चित्त स्थिर रखने की सलाह
विधायक ने कहा कि शैलेन्द्र महतो यह नहीं जानते कि झारखंड अलग राज्य बनने और राज्य के आगे बढ़ने के बार में मेरे विचार पहले क्या रहे हैं और आज क्या हैं. मैं उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के सिवाय और क्या कर सकता हूं. उन्हें बता दूं कि इस बारे में मेरे विचार पूर्ववत हैं. उनके विचार तो सुबह-शाम बदलते रहते हैं. उन्हें बता दूं कि कई उपयुक्त मौकों पर मैं जाहिर कर चुका हूं कि स्थानीयता के लिये 1932 के खतियान से मेरा कोई विरोध नहीं है. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल के समय से इस बारे में मेरे विचार जगजाहिर हैं. मैं इतना ही कहता हूं कि इसके साथ-साथ देश के संविधान द्वारा तय की गई सीमा मर्यादा को भी ध्यान में रखा जायेगा तभी इसे लागू किया जा सकता है. शैलेंद्र महतो से मेरी एक ही अपेक्षा रहती है कि वे चित्त स्थिर रखें. समय के साथ अपने राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक विचार नहीं बदलें. वे बुद्धिजीवी हैं तो संवाद की मानसिकता रखें. विवाद की नहीं.
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