स्थानीय मान्यता के अनुसार परशुराम ऋषि ने स्वयं फरसा को यहां जमीन में धंसाया था। इस त्रिशूल की खास बात यह भी है कि प्राचीन काल से स्थापित होने के बाद भी इसमें जंग नहीं लगी है। झारखंड के गुमला में स्थित प्राचीन टांगीनाथ धाम में स्थापित परशुराम ऋषि के फरसे का एक हिस्सा छत्तीसगढ़ के जशपुर के पास डाकाईभट्टा गांव में मिला है।
झारखंड के गुमला में स्थित प्राचीन टांगीनाथ धाम में स्थापित परशुराम ऋषि के फरसे का एक हिस्सा छत्तीसगढ़ के जशपुर के पास डाकाईभट्टा गांव में मिला है। इसकी जानकारी मिलने पर दोनों जगह के ग्रामीणों ने आस्था का परिचय देते हुए इसी हफ्ते फरसे के उक्त टुकड़े को वापस टांगीनाथ धाम लाकर स्थापित कर दिया।
लोग मिलकर मंदिर का निर्माण कराएंगे
साथ ही यह भी निर्णय लिया कि छत्तीसगढ़ में जिस स्थान पर फरसे का टुकड़ा मिला, वहां भी दोनों जगह के लोग मिलकर मंदिर का निर्माण कराएंगे। शताब्दियों पुराने भगवान शिव के इस मंदिर में शिवलिंग के साथ ही जमीन में आधे धंसे त्रिशूल के आकार के लोहे के फरसे की भी पूजा होती है। इसमें ऊपरी भाग में त्रिशूल और किनारे के हिस्से में फरसा बना हुआ है।
त्रिशूल के कुछ हिस्से गुम हो गए थे
स्थानीय मान्यता के अनुसार, यह परशुराम ऋषि का फरसा है, जिसे स्वयं उन्होंने ही यहां जमीन में धंसाया था। इस त्रिशूल की खास बात यह भी है कि प्राचीन काल से स्थापित होने के बाद भी इसमें जंग नहीं लगी है। लगभग पांच दशक पहले इस त्रिशूल के कुछ हिस्से गुम हो गए थे।
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की सन्ना तहसील के दरबारी टोला निवासी रामप्रकाश पांडेय ने इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट के माध्यम से जानकारी दी कि वहां के डाकाईभट्टा गांव के कोटा पहाड़ में परशुराम के त्रिशूलाकार फरसे का ऊपरी हिस्सा बेल के एक पेड़ के नीचे रखा हुआ है।
गांव की धरोहर को वापस लाने का प्रयास
त्रिशूल के टुकड़े को 50 वर्ष पूर्व किसी भक्त ने यहां लाकर स्थापित कर दिया था। इसके बाद इसे गुमला वापस लाने के प्रयास शुरू हुए। जशपुर की उकई पंचायत के सरपंच सुशील राम ने कहा कि जब बाबा टांगीनाथ धाम समिति के लोगों ने हमारे गांव में आकर त्रिशूल के खंडित अवशेष के बारे में बताया तब हम लोगों ने भी इस पर विचार-विमर्श कर सहमति बनाई कि इस अमूल्य धरोहर को उनके मूल स्थान में स्थापित करना चाहिए।