नई दिल्ली . एम्स ने दिल्ली के साथ मिलकर दिव्यांगों के मिश्रण में इस्तेमाल होने वाला स्वदेशी इंप्लांट तैयार किया है। यह इंप्लांट भारतीय विस्थापितों की जरूरत है, उनके आकार पर ध्यान केंद्रित कर तैयार किया गया है। एम्स में इस प्लांट का परीक्षण परीक्षण के लिए भुगतान किया गया है। इंप्लांट का प्रयोग सफल होने पर परीक्षण शुरू हो जाएगा।
इसका कैडेवरिक ट्रायल पूरा हो चुका है। अब जल्द ही इसे जिंदा लोगों पर ट्रायल के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसकी सफलता के बाद इसे बिक्री में इस्तेमाल किया जाएगा। एम्स के डॉक्टर डॉ. मैडिशियल गर्ग ने बताया कि दांतों और पैरों के अलावा दांतों के लिए भी दांतों के इलाज की जरूरत होती है। एम्स में हर महीने 10 ऐसे यात्रियों को शामिल किया जाता है जिनमें कोहनी के सहारे की जरूरत होती है।
एम्स के आकाओं का कहना है कि विदेश से आने वाले इंप्लांट देश भर में देशों के आधार पर तैयार होते हैं। ऐसे में वह भारत के प्लांट में फिट होने में परेशानियां पैदा कर रही हैं। देशी तकनीक से तैयार करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। यह प्रत्यारोपण के लिए सबसे सुरक्षित और सर्वोत्तम धातु है। एम रिलीज़ के दौरान कोई समस्या नहीं आई।
अभी इस विकल्प के लिए कोहनी में जो इंप्लांट लगाया जाता है वह आर्टिस्टिक से मंगाया जाता है और यह काफी महंगा भी है। यह विदेशी पर्यटक पश्चिमी देशों के लिए खाते का खाता तैयार किया जाता है। इसे भारतीय यात्री फिट आने में भी परेशानी होती है।
दिल्ली के साथ मिलकर तैयार किए गए इंप्लांट के नतीजे बेहतर आए। विद्वानों का कहना है कि इस दौरान किए गए सामानों के नतीजे बेहतर निकले। इसमें क्वॉलिटी, वुल्फ, लैपटॉप सहित अन्य सभी का चयन किया गया है। इसके नतीजे बेहतर आये हैं. अब यूनिवर्सल एंबैट के लिए मिष्टी पर अमल किया जाएगा।
एम्स में होती है सर्जरी
एम्स में कोहनी के जोड़ और कूल्हे के जोड़ की सर्जरी होती है। विश्वासियों की माने तो यूनिवर्सिट में हर साल हजारों इंप्लांट की जरूरत होती है। भारत में समग्र निर्माण से न केवल दलितों को फायदा होगा, बल्कि गरीबों की खरीद और गुणवत्ता में भी सुधार होगा।