बस्तर के हाट-बाजार में साल में बमुश्किल तीन महीने ही बिकने वाले बरमसी पताल (छोटा देसी टमाटर) की मांग महानगरों में खूब रहती है। इसकी चटनी काफी स्वादिष्ट होती है। बाजार में इन दिनों बिक रहे टमाटर और इसके स्वाद में जमीन-आसमान का अंतर होता है। यही वजह है कि लोग इसकी तलाश में रहते हैं।
बाजार में बिकने वाले हाईब्रिड टमाटर को लोग सब्जी में मिलाने के लिए खरीदते हैं। इसकी मिर्च और धनिया के साथ चटनी भी बनाकर खाते हैं, लेकिन बरमसी पताल की बात ही कुछ और होती है। आदिवासी इलाकों के ग्रामीण टोकरियों में इसे लेकर हाट-बाजार में पहुंचते हैं। वहां कोचिया सभी से औने-पौने दाम पर खरीद लेता है। फिर उसे आर्डर के हिसाब से गंतव्य के लिए रवाना कर देता है। शहरी इलाकों में इस टमाटर की काफी मांग रहती है। ग्रामीण इसे बरमसी पताल भले ही कहते हैं, लेकिन यह बारहों माह नहीं फलता। लिहाजा फसल आते ही बाजार में इसकी कीमत भी अधिक रहती है।
बरमसी पताल हर साल नवंबर से जनवरी महीने में ही बिकने को आता है। इसकी मात्रा कम होती है जबकि मांग अधिक है। बस्तर के हाट-बाजार में हाईब्रिड टमाटर की दर किलो के हिसाब से तय रहती है, जबकि बरमसी पताल दोने में भरकर बेचा जाता है। इसकी कीमत भी दोना के हिसाब से ही तय रहती है। कोचियों के मुताबिक इसका उत्पादन सालभर नहीं होने के कारण ही यह जब बाजार में आता है तो इसकी काफी मांग रहती है। चूंकि यह ज्यादा दिनों तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता, इसीलिए इसका व्यावसायिक उत्पादन भी नहीं किया जाता। विशेषकर ग्रामीण अंचल की बाड़ियों में इसका उत्पादन लिया जाता है। हाईब्रिड टमाटर से करीब दो से तीन गुना इसका रेट रहता है।
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