नईदुनिया न्यूज, बिलासपुर। एशिया महाद्वीप की और देश का पहला आदर्श औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आइटीआइ) बिलासपुर के कोनी में स्थित है। यह संस्थान अंग्रेजों के जमाने की विरासत को संजोए हुए है। यहां आज भी अंग्रेजों के दौर की मशीनें, अस्पताल, बैरक और पानी की टंकी मौजूद हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के दौरान, अंग्रेजों ने घायल सैनिकों के इलाज और उनके पुनर्वास के लिए कोनी की करीब 100 एकड़ भूमि का चयन किया। इस क्षेत्र को वर्कशाप और ट्रेनिंग सेंटर के रूप में विकसित किया गया, ताकि घायल सैनिकों को मशीनों के जरिए काम दिया जा सके और उनकी कलाओं का उपयोग कर विभिन्न उत्पाद तैयार किए जा सकें। अंग्रेजों के कोनी को चुनने का मुख्य कारण यहां की रणनीतिक स्थिति थी। बिलासपुर रेल लाइन मुंबई से हावड़ा (कोलकाता) को जोड़ती थी, जिससे सामान और कच्चे माल की आपूर्ति सुगम होती थी। साथ ही, कोयला, लोहा और बिजली जैसे संसाधन नजदीकी क्षेत्रों से आसानी से उपलब्ध थे। यह क्षेत्र प्राकृतिक सुंदरता और शासकीय भूमि की प्रचुरता के कारण भी उपयुक्त था।
फर्नेस की मदद से तरल पदर्थों की ढलाई कर बनाए जाते थे विभिन्न पार्टस
अंग्रेजों द्वारा घायल सौनिकों का उपचार करने के बाद जो सौनिक भाग दौड़ करने की स्थिति में नहीं होते थे। उनके लिए यहां विभिन्न प्रकार की मशीन स्थिापित की गई, जिसमें फर्नेस भी शामिल था। इसकी मदद से लोहा व धातुओं को कास्टिंग (ढलाई) करके तकनीक जटिल आकृतियों का निर्माण करके विभिन्न प्रकार के पार्टस बनाये जाते थे। जिसे अंग्रेज अलग-अलग महा नगर में लेकर जाकर बिक्री करते थे। इससे युद्ध में घायल सौनिकों को रोजगार भी उपलब्ध हो जाता था।
स्वतंत्रता के बाद का विकास
देश की आजादी के बाद, इस स्थान को सीआइटीएस (सेंट्रल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट फार इंस्ट्रक्टर) के तहत प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण संस्थान में बदला गया। हालांकि, सीआइटीएस का टीक से मेंटेनेंस नहीं किए जाने की वजह से यह अधिक समय तक संचालित नहीं हो सका। 1961 से यह संस्थान माडल आइटीआइ के रूप में संचालित हो रहा है, जहां 32 विभिन्न व्यवसायों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
अंग्रेजों के युग की मशीनें आज भी हैं मौजूद
आइटीआइ कोनी में आज भी अंग्रेजों के समय की अमेरिका और रूस की बनी मशीनें मौजूद हैं। इनमें कैरेट लैथ मशीन और रूसी शेपर मशीन प्रमुख हैं। ये मशीनें लोहे व धातुओं को पिघलाक को अलग-अलग आकार देने के लिए उपयोग की जाती थीं। कच्चे लोहे व धालुओं को पिघलाकर उन्हें नई आकृति देने के लिए चिमनी भी बनाई गई थी, जो अब भी मौजूद है। हालांकि, अब ये मशीनें चालू स्थिति में नहीं हैं, लेकिन ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित हैं।
विरासत और प्रशिक्षण का संगम
आइटीआइ कोनी न केवल तकनीकी प्रशिक्षण का केंद्र है, बल्कि यह औद्योगिक और ऐतिहासिक महत्व का प्रतीक भी है। यहां की विरासत आज भी इस संस्थान की गौरवशाली कहानी बयां करती है।
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