पर प्रकाश डाला गया
- मुंगेली नगर में वर्षों पुरानी परंपरा है
- यादव समाज के लोग लाठी से पीटकर वध करते हैं
- दशमी को सबसे पहले गोवर्धन परिवार के लोग रावण की पूजा करते हैं
नईदुनिया न्यूज, मुंगेली : नगर में मिट्टी के रावण की लाठियों से पीट-पीट कर वध करने की परंपरा वर्षों पुरानी है। इस कड़ी में गोवर्धन परिवार द्वारा मिट्टी के रावण का निर्माण किया जा रहा है।
दशमी को सबसे पहले गोवर्धन परिवार के लोग रावण की पूजा करते हैं। इसके बाद यादव समाज द्वारा मिट्टी से निर्मित रावण की लाठियों से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। ईसाई पुरातन परंपरा के आयोजन को लेकर तैयारी की जा रही है। वीर शहीद धनंजय सिंह स्टेडियम बीआर साव स्कूल में हर साल इस तरह की पूरी तैयारी की जा रही है। इस संबंध में बताया गया है कि सबसे पहले इसकी शुरुआत 1896 में हुई थी। इसमें आज भी राजा कुंभकार परिवार द्वारा इको फ्रेंडली रावण का निर्माण शुरू किया गया है और साथ ही यह परंपरा है कि पहली मिट्टी से बने रावण की गोवर्धन परिवार द्वारा पूजा की जाती है। सबसे पुरानी बात यह है कि रावण वध के बाद जो लोग उसे बचाते हैं, उसे लोग अन्न भंडार और नारियल में रख लेते हैं। पर्व को हर्षोलस के साथ साकी के लिए पुणे, नागपुर, बड़ोदरा गुजरात, रायपुर, बिलासपुर से गोवर्धन परिवार के लोग एकत्रित होते हैं। मिट्टी के रावण के वध का आयोजन कोटा राजस्थान, कांकेर, वैष्णव संप्रदाय के लोग करते हैं।
कन्तेली में राजा की सवारी होती है, रावण का दहन नहीं होता
जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत कन्तेली में सातवीं शताब्दी से चली आ रही एक अनोखी परंपरा है। यहां राजा की सवारी तो निकलती है लेकिन रावण का दहन नहीं होता। राजा के दर्शन के लिए 44 ग्रामीण समूह होते हैं। राजा कुलदेवी मां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पूजा कर पूरे क्षेत्र में खुशहाली की कामना करते हैं। छत्तीसगढ़ का पहला ऐसा गांव है जिस प्रकार केरल में वर्णित है कि दशहरे के दिन राजा बली अपने प्रजा का हाल देखने के लिए पाताल लोक से बाहर आते हैं और प्रजा उन्हें सोनपट्टी देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करती है। कुछ ऐसे ही पारंपरिक जिले के कन्तेली गांव में है, जो दशकों से चली आ रही है। 16वीं सदी से चली आ रही यह परंपरा दशहरे के दिन से है। यहां के राजा यशवंत सिंह के महल से एक राजा की सवारी छूटती है, जिसमें नाचते-गेट कुलदेवी के मंदिर तक शामिल लोग शामिल हैं। राजा यशवंत सिंह की कुल देवी मां महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पूजा कर पूरे क्षेत्र की खुशहाली की कामना की जाती है। इतना ही नहीं इसके बाद राजमहल में एक सभा का आयोजन किया जाता है, जहां पर सोनपट्टी के राजा द्वारा आद्योपांत के अध्यक्ष का आशीर्वाद लिया जाता है। कंतेली जमीदारी के प्रथम पुत्र गजराज सिंह द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व सन 1944 में राजा पोखराज सिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद मूर्ति राज माता पिनंक कुमारी देवी की मृत्यु के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यशवंत कुमार सिंह राजा को दत्तक पुत्र बनाया गया था तब से मंदिर की प्रस्तुति की जा रही थी। 30 वर्ष से अधिक उम्र के युवा विश्वनाथ कुमार सिंह के संरक्षण में मां महामाया समिति द्वारा संचालित ज्योति कलश एवं पूजन समारोह का आयोजन किया गया है।
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