‘पानी-टेल’
सरकार, सरकार होती है और पार्टी, पार्टी। सरकार में पार्टी की आम तौर पर कोई जगह नहीं होती. पार्टी से चुने हुए नेता सरकार पसंद करते हैं। ऑर्गेनाइजेशन का कंसल्टेंसी फर्म के पीछे जरूर हो सकता है। मगर किशोर ने कहा कि सरकार से संगठन यीस्ट पार्टी को अलग एडाने की गलती करना बड़ी गलती होगी। ऑर्गनाइजेशन ने सरकार के कुछ फैसलों में बिल्कुल देरी नहीं की। नतीज़ा यह हो रहा है कि सरकार भी अब फ़ुट कर चल रही है। पिछले दिनों एक मंत्री के निजी आवास में एक पीए को बंधक बनाने का मामला सामने आया था। संगठन के एक बड़े नेता के समर्थक पीए बनने की ख्वाहिश के लिए एक प्रमुख मंत्री के पास पहुंचे। पहली बार किसी कार्यकारी में ही मंत्री पद मिला था। ओहदे का भार ना गया। पीए के रूप में एक विशेष व्यक्ति को रखने पर मंत्री ने यह कहा, दो टुकड़े मना कर दिया कि वह उन्हें पसंद नहीं करते। बात संगठन के नेताओं तक की। नेताओं ने कहा- मिश्रण में कई लोगों को शामिल करना भी उन्हें पसंद नहीं था, लेकिन सामंजस्य बनाना जारी रखा गया है। चर्चा है कि इस मामले की जानकारी दिल्ली तक जायें। दिल्ली से मंत्री को तलब किया गया. बताया गया है कि ऑर्गनाइजेशन के समर्थक मंत्री ने उस स्पेसिफिक को ही पीए के तौर पर रखा है, जिसे नेता ने भेजा था। असलियत यही है कि पानी में तेल कितना ही मिल जाए, फिर भी अलग ही रहता है। इसे मिलाने की कोशिश नहीं की जा सकती. व्यवस्था में सरकार पानी की जगह है, संगठन तेल की जगह है।
‘अंगद का जिक्र’
एक वस्तु का यंत्र अंगद के पैर की तरह हो गया है। पिछली सरकार ने पोस्टप्लेसमेंट पोस्टिंग दी थी। सेंचुरी में नई सरकार आई, तो चर्चा कचरा की अब टैब हटा दी जाएगी। मगर दो महीने बीत गए. डिलीट तो दूर की कोई सुगबुगाहट तक दिखाई नहीं दे रही है। यह हाल तक है जब तक पूरे राज्य से साजो-सामान के सामान को निकालने की मांग पकड़ में नहीं आ जाती। सब्सक्रिप्शन में लोग शामिल हैं कि वस्तु ना वाले अंगद के टुकड़े हो गए हैं। एक खबर फूट पुट में कुछ माता-पिता की चर्चा। सुना है कि किसी भी जिले में एक पोस्टिंग के एवज़ में 15 लाख रुपये का सामान मिला। पोस्टिंग के दरकार जिला रजिस्ट्रार को था, मगर जब यह बात उन तक पहुंची, तो वह भी भड़क गया। अब पूरी तरह से प्रयोगशाला में यह बात मच गई है।
‘राहुल की एंट्री’
सेंट्रल डेपुटेशन के दिनों में विष्णुदेव साय के केंद्रीय मंत्री के साथ उनके सहयोगी राहुल गांधी भगत की सीएम सचिवालय में एंट्री हुई। विष्णुदेव साय के शपथ ग्रहण के बाद से यह चर्चा चल रही थी कि साय उन्हें अपने सचिवालय में बेच रहे हैं। भगत 2005 के अपराधी हैं। अनुभवी है. दिल्ली में रहते हुए वहां के नियम कायदों से वाक़िफ़ाई रह रहे हैं, ज़ाहिर है, कहने को मदद मिलती है। राहुल भगत के प्रवेश के बाद सचिवालय में अब तीन सचिव हो गये। 2006 में बैचलर पी दयानंद और 2007 में बैचलर बसव उमर से पहले सेक्रेटरी सेक्रेटरी एसोसिएशन रहे। राज्य गठन के बाद यह पहला मौका है, जब किसी फर्जीवाड़े में सीएम सचिवालय का हिस्सा बनाया गया है। ब्यूरोसीक्रे में अब कहा जाने लगा है कि एफ़आईएफ़ लैबी रिटेलर के बराबर हिस्सेदारी हो रही है। 2006 में कमिश्नर कमिश्नर के रूप में बैचलर कमिश्नर के रूप में काम कर रहे थे।
‘लौट रहे अमरेश’
2005 में बैचलर ऑफ फेम अमरेश कुमार मिश्रा की होम कैडर में वापसी हो रही है। फिलवक्त अमरेश ऐसे इकलौते स्टूडियो होंगे, प्रोटोकाल प्रतियुक्ति अवधि पूरी होने के पहले ही केंद्र ने उन्हें राहत दे दी है। सरकार की मांग पर केंद्र सरकार ने अमरेश कुमार मिश्रा की प्रतिनियुक्ति को समाप्त करने की अनुमति दी है। पिछले दिनों गृह विभाग ने केंद्र सरकार की ओर से अमरेश मिश्रा को पदमुक्त कर दिया था। अमरेश दांते, कोरबा, दुर्ग और रायपुर जैसे दुकान में दुकान पर काम कर रहे हैं। 2019 में वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे. इस बीच उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का भी रुख किया था। छह महीने पहले वह हार्वर्ड से बंद थे। शाश्वत में नौकरानी काम कर रहे थे। अमरेश की पहचान तेजतर्रार और साक्षा छवि के रूप में होती है। राज्य की पसंद पर उनकी वापसी हो रही है, जाहिर तौर पर उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका में लाया जा सकता है। इस बात पर तेजी से चर्चा करें कि ईओडब्ल्यू-एसीबी में पोस्टकार्ड का प्रमाण पत्र दिया जा सकता है।
‘एक सामान और…’
ब्यूरोसीक्रेसी में अब ओपी फॉर्मूला जारी किया जा रहा है। 13 साल की लंबी पारी के बाद ओपी चौधरी ने भाजपा का आह्वान किया था। भाजपा आये ही उन्हें टिकटें मिल गयीं। चुनावी लड़ाई, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद जीत मिली। सरकार में मंत्री बन गये. राज्य भाजपा संगठन में सबसे मजबूत संगठन में एक चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई। ओ.पी. के बाद कई वास्तुशिल्पियों ने स्टॉक होल्डी, मगर होल्डमेंट के बाद। बिजनेस ब्यूरोक्रेसी में अब और हॉस्टल नौकरी छोड़ने की अपनी राजनीतिक पारी एक चुनौती की तैयारी में है। विदेशी राजनीति कब से शुरू हुई है? इसका गुणा भाग चल रहा है। पचा चला कि गुट ने अपनी परंपरा एक राजनीतिक दल के कई बड़े नेताओं के सामने जाहिर कर दी है। समाजिक गुणांक भी ऑब्जेक्ट के पक्ष में है। दुर्ग डिविजनल से आने वाले की राजनीतिक समझ अच्छी बनी हुई है। चुनाव के वक्ता का एक बड़ा वर्ग जब यह फिर से लिख रहा था कि 52 वें सत्र के साथ कांग्रेस की वापसी हो रही है, तो इस खंड में 55 वें सत्र के साथ भाजपा की सरकार बनने का दावा करते हुए कई अलग-अलग बैठकें की गईं। इंडस्ट्री तो नौकरी चल रही है. देखते हैं कब सिसायत की गली में चौका छक्का विकल्प दिखेंगे।
‘जुबानी जंग’
पिछले दिनों कांग्रेस की एक बड़ी बैठक में समाजवादी पार्टी की चुनावी रणनीति बनाने की अपील की गई। बैठक में प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट, पूर्व सीएम चंपारण, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज समेत तमाम बड़े नेता मौजूद रहे. इस बीच राजपूत के चेहरे का कचरा. कहा जा रहा है कि इस बीच एक बड़े नेता ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, ‘रामपुरूष में अब तक का सबसे कम अंतर से चुनाव हारे वाले नेताओं को टिकटें दे दिया जाए।’ इस टिप्पणी पर एक अन्य बड़े नेता ने तिरछी नजर से देखते हुए कहा, सभी वर्ग के लोग चुनाव लड़कर देख रहे हैं, मगर सफलता नहीं मिली. राजपूतों में कबीरपंथी की भी बड़ी संख्या है। इसलिए आपकी संभावना सबसे ज्यादा है. आपको ही चुनावी पैकेज चाहिए। बैठक में कुछ पाल की शांति छा गई, मगर जब खत्म हुई तो सभी बड़े नेताओं के बीच कूड़ा-कचरा जंगी जंग की चर्चा मशगूल रह गई…