सिंचाई, निस्तार के साथ-साथ आवागमन की भी सुविधा मिलने से ग्रामीणो को होगा तिहरा लाभ*राज्य के विकास में जल संसाधनो का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण योगदान है, जल के बिना कृषि विकास एवं समृद्धि की कल्पना नही की जा सकती। समग्र आर्थिक विकास में जितना योगदान कृषि का है वहीं कृषि में उतना ही योगदान सिंचाई एवं जल प्रबंधन का भी है।यूं तो जिला कोण्डागांव के भीतरी ईलाको के अधिकतर नदी नाले बारहमासी नही है। इन नदियों नालो में मानसूनी सीजन के पश्चात जल स्तर घटने लगता है और कई नदी नाले जनवरी फरवरी तक पूरी तरह सूख जाते है। यही वजह रही है कि किसानो को रबी फसलो में सिंचाई के लिए पूरी तरह ट्यूबवेल जैसे भूमिगत जल स्रोतो पर निर्भर रहना पड़ता है और ग्रीष्म काल में निस्तारी की असुविधायें अलग से आती है जिनसे ग्रामीणो के साथ-साथ ढ़ोर डंगर भी प्रभावित होते है। वास्तव में जिले में सिंचाई सुविधाओ की आवश्यकताओं को देखते हुए छोटे एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता देना जरूरी है और विगत दो वर्षो में जल संसाधन विभाग द्वारा स्टापडेम, चेकडेम, शूटफाल, नाहरों के जीर्णोद्धार एवं लाईनिंग कार्यो को अमली जामा पहनाया गया है। इस क्रम में विकासखण्ड माकड़ी अंतर्गत टेण्डमूण्डा सलना स्टापडेम में सह पुलिया निर्माण इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसके निर्माण से सिंचाई, निस्तार के अलावा आवागमन की सुविधा भी सुलभ होगी। क्योंकि पूल ना होने के कारण ग्रामीणो को मजबूरन घुमावदार रास्तो को चुनना पड़ता था। लगभग 387.90 लाख रूपये लागत वाले इस स्टापडेम सह पुलिया निर्माण इसी वर्ष जून माह में ही पूर्ण हुआ। जिसकी सिंचित क्षमता 100 हेक्टैयर बताई जा रही है। इससे ग्राम सलना सहित आस-पास के ग्रामो को ग्रीष्म ऋतु में भी निस्तार की सुविधा प्राप्त होगी। इसके अलावा पुलिया निर्माण से ग्राम पल्ली, शामपुर, केरावाही, टेण्डमूण्डा के बीच सीधे सड़क संपर्क निर्मित होेने से यह मार्ग विकासखण्ड फरसगांव को जोड़ेगा। स्थानीय ग्रामीणो की माने तो उनके द्वारा सदैव एक स्टापडेम और पुलिया निर्माण की मांग सदैव की जाती रही है क्योकि उनका मानना था कि स्टापडेम के निर्माण से सब्जियों के खेती के अलावा रबी फसलें जैसे मक्का, ग्रीष्मकालीन धान की फसले भी ली जा सकती है और अब इस वर्ष उनकी यह मांग पूरी होने से उनके चेहरों में चमक है। किसान यह भी मानतें है की आगामी वर्षौ में इस स्टापडेम के बदौलत अधिक से अधिक किसान वर्ष में एक अधिक फसल अवश्य लेंगे। इतना तो तय है कि 100 एकड़ सिंचित होने से भुजल स्तर में भी वृद्धि होगी और इसी प्रकार भूमिगत जल स्रोतो संरक्षण से इस क्षेत्र की बसाहटों को शुष्क दिवसों में पेयजल संबंधी दिक्कतो का सामना भी नही करना पड़ेगा। वर्षा कालीन व्यर्थ बहने वाले जल को छोटेे नदी नालो में रोक कर उसमें स्टापडेम, चेकडेम जैसे जल संरचनाओं के निर्माण से हम आनी वाली पीढ़ियों को सुखद भविष्य दे पायेंगे और शासन की नरवा योजना का मूल सदेंश भी यही है कि जल है तो कल है।
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