इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल ने मंगलवार को राज्यपाल अनुसुईया उइके से मुलाकात की। चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों पर देशभर में हो रही हिंसक गतिविधियों के विरोध में अपनी मांगों से संबंधित ज्ञापन राज्यपाल को राजभवन में सौंपा। अपने अधिकारों की रक्षा, चिकित्सकों और चिकित्सा संस्थानों को उचित सुरक्षा देने के लिए और कोरोना की इस लड़ाई में अपनी जान गवा चुके चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों को शहीद का दर्जा दिला कर उनके परिवारों को उचित सहायता दिलवाने के लिए मंगलवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने डिमांड डे घोषित किया है। इसमें अपनी मांगों के बारे में ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राज्यपाल अनुसुइया उइके, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल,सभी सांसदों,गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव, डीजीपी डीएम अवस्थी और कलेक्टर रायपुर सौरभ कुमार को सौंपे गए।
डॉक्टर महेश सिन्हा अध्यक्ष इंडियन मेडिकल एसोसिएशन छत्तीसगढ़,डॉ राकेश गुप्ता चेयरमैन हॉस्पिटल बोर्ड इंडियन मेडिकल एसोसिएशन छत्तीसगढ़,डॉ विकास अग्रवाल अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर,डॉ आशा जैन सचिव इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर और डॉ. अनिल जैन चेयरमैन हॉस्पिटल बोर्ड इंडियन मेडिकल एसोसिएशन रायपुर ने संयुक्त बयान जारी किया है। सभी ने कहा है कि इन मांगों के अंतर्गत मुख्य रूप से सभी चिकित्सकों,चिकित्साकर्मियों और चिकित्सा संस्थानों को हिंसक कार्रवाइयों से बचाने के लिए और असामाजिक तत्वों को सख्त सजा दिलवाने के लिए एक केंद्रीय कानून और फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग की गई है। इससे सभी चिकित्सक निर्भय होकर पूर्ण निष्ठा के साथ जनहित में अपनी जिम्मेदारी निभा सकें। साथ ही यह भी मांग की गई है कि कोरोना महामारी से संघर्ष के दौरान अपनी जान गवा चुके चिकित्सकों को शहीद का दर्जा दिया जाए और उनके परिवारों को उचित सहायता प्रदान की जाए ।
इसी कार्यक्रम के अंतर्गत 18 जून को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने चिकित्सकों और चिकित्सा कर्मियों के साथ हो रही हिंसक घटनाओं के विरोध में राष्ट्रीय विरोध दिवस घोषित किया है । इस दिन सभी चिकित्सक कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अपने अपने परिसर में काला मास्क और काली पट्टी लगाकर विरोध प्रदर्शन करते हुए कार्य करेंगे।
उन्होंने कहा है कि देश पिछले डेढ़ साल से कोरोना महामारी से जूझ रहा है। देश की जनता की जान बचाने के लिए पूरा चिकित्सा समुदाय जी जान से जुटा हुआ है। अपने इस प्रयास में लाखों लोगों की जान बचाई और कई परिवारों को अनाथ होने से बचाया है। चिकित्सक भी इंसान हैं, भगवान नहीं। जनता की जान बचाने के प्रयास में 1400 से ज्यादा चिकित्सकों और हजारों अन्य चिकित्साकर्मियों ने अपनी जान गंवा दी। यहां तक कि बहुत से चिकित्सक दंपत्तियों के निधन की वजह से उनके बच्चे अनाथ हो गए।
कोरोना वायरस के खिलाफ युद्ध में अग्रिम योद्धा के रूप में अपने परिवारों को भुलाकर जान हथेली पर रखकर कार्य कर रहे चिकित्सकों और चिकित्साकर्मियों को देशभर में प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। बहुत सी जगहों पर हिंसक हमले हुए जिसमें बहुत से युवा चिकित्सकों के साथ साथ अनेक अनुभवी चिकित्सकों को भी अपनी जान गवानी पड़ी । कई चिकित्सक आज भी अस्पतालों में जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे हैं । बहुत सी महिला चिकित्सकों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है। बहुत से चिकित्सकों के साथ गाली गलौज की भाषा में बात की जा रही है।
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