इस बार सावन की धूम कुछ खास होने वाली है। सावन की शुरुआत ही सोमवार से हो रही है, जो प्रीति योग के साथ मिलकर इस पर्व को और भी शुभ बना रहा है। ऐसा माना जाता है कि प्रीति योग के दौरान की गई पूजा का फल शीघ्र प्राप्त होता है।
बारिश की रिमझिम और ठंडी हवाओं के साथ, भगवान शिव के अनन्य भक्तों का प्रतिक्षित पर्व सावन में एक बार फिर हमारे द्वार पर प्रसन्न होने को तैयार होता है। इस 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त तक चलने वाला यह पवित्र महीना न सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों का समय है, बल्कि आनंददायक और आध्यात्मिक जागरण का भी अवसर है।
सावन का पवित्र महीना भगवान शिव की आराधना का विशेष समय माना जाता है। इस दौरान भक्त कठोर नियमों का पालन और पूजा-अनुष्ठान करते हैं। यह मान्य है कि ऐसा करने से वैवाहिक जीवन में खुशी आती है और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यद्यपि सिर्फ पूजा ही काफी नहीं है, बल्कि कुछ खास नियमों का पालन करना भी जरूरी होता है।
ऐसा माना जाता है कि इन नियमों को तोड़ने से महादेव नाराज हो सकते हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण नियम है सावन में साग और खीर का त्याग करना। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण मौजूद हैं। आइए जानते हैं वो कारण.
धार्मिक मान्यताएँ
सावन में भगवान शिव को कच्चा दूध चढ़ाना शुभ माना जाता है। दूध से बनी चीजों का सेवन इस दौरान वर्जित होता है, क्योंकि माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान शिव को पवित्र दूध की पवित्रता भंग हो सकती है। चूंकि कढ़ी बनाने में दही का प्रयोग होता है, जो दूध से ही बनता है, इसलिए सावन में कढ़ी का सेवन वर्जित माना जाता है। भगवान शिव को प्रकृति से गहरा लगाव है। सावन के महीनों में पेड़ों को काटने या तोड़ने से परहेज किया जाता है। कढ़ी में इस्तेमाल होने वाली पत्तेदार संगीत जैसे पालक या मेथी भी इसी दायरे में आती हैं। इसलिए, इनका सेवन वर्जित माना जाता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
सावन का समय अनुकूल ऋतु से संबंधित होता है। इस दौरान वातावरण में आद्रता की मात्रा अधिक होती है, जिससे पाचन क्रिया धीमी हो जाती है। कढ़ी एक पौष्टिक भारी भोजन है, जिसे पचाने में शरीर को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इससे पेट फूलना, अपच और एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सावन में हल्का और सदा भोजन करने से पाचन क्रिया दुरुस्त रहती है। सावन का समय आमतौर पर गर्मी के अंत या खुशी की शुरुआत से घटित होता है। कढ़ी में अक्सर तेल और पूरक का प्रयोग किया जाता है, जो गर्मी के मौसम में शरीर के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। हल्का और सदा भोजन शरीर को मौसम के अनुकूल बनाए रखने में सहायक होता है।