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सोरेन की तरह जेल से सरकार चलाना केजरीवाल को पड़ा महंगा

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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की तरह केजरीवाल जनता की सहानुभूति हासिल नहीं कर सके इसका कारण जेल से सरकार चलाने की उनकी जिद को माना जा रहा है। इसी वजह से दिल्ली में महापौर का चुनाव सहित कई जरूरी काम नहीं हो सके। भाजपा आक्रामक तरीके से उठाकर जनता को यह बताने में सफल रही कि मुख्यमंत्री को दिल्लीवासियों की चिंता नहीं है

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी इस लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा था। आम आदमी पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों ने ही अपने-अपने नेताओं की गिरफ्तारी को गलत बताते हुए जनता से सहानुभूति लेने की भरसक कोशिश की। इस प्रयास में सोरेन की पार्टी बहुत हद तक सफल रही, लेकिन केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को निराशा ही हाथ लगी।

राजनीति के जानकार इसके लिए केजरीवाल का गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री पद न छोड़ने और अंतरिम जमानत पर चुनाव प्रचार के लिए जेल से बाहर आने को एक बड़ी वजह मानते हैं। हेमंत सोरेन के पक्ष में सहानुभूति लहर का नतीजा रहा कि झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित लोकसभा की सभी पांच सीटों पर आइएनडीआइए प्रत्याशियों को जीत मिली।

केजरीवाल का मुख्यमंत्री का पद पर रहना पड़ा भारी 

सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी विधानसभा उपचुनाव जीत गईं। वहीं, आप को न ही दिल्ली में कोई सीट मिली और न ही प्रदर्शन में कोई सुधार हुआ। चुनाव की घोषणा से पहले फरवरी माह में ही सोरेन को भ्रष्टाचार के आरोप में ईडी ने गिरफ्तार किया था। उन्होंने लोकतांत्रिक मर्यादा का पालन करते हुए गिरफ्तारी से पहले अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। उनकी गिरफ्तारी के अगले माह ही चुनाव की घोषणा के बाद केजरीवाल को आबकारी घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में ईडी ने गिरफ्तार कर लिया, लेकिन केजरीवाल ने मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा।

केजरीवाल को नहीं मिली गिरफ्तारी से सहानुभूति

पार्टी ने भी घोषणा कर दी कि केजरीवाल जेल से सरकार चलाएंगे। केजरीवाल की गिरफ्तारी को सहानुभूति में बदलने के लिए आप ने अपना चुनाव प्रचार जेल का जवाब वोट से नारे पर केंद्रित रखा। सलाखों के पीछे कैद केजरीवाल की प्रतीकात्मक तस्वीर के साथ पार्टी ने चुनाव प्रचार किया। सहानुभूति मिले, इसके लिए उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल को भी चुनाव प्रचार में उतारा गया। इससे दिल्लीवासियों में उनके प्रति सहानुभूति दिखने भी लगी थी।

पंजाब में भी AAP का प्रदर्शन नहीं रहा संतोषजनक

इस बीच, अरविंद केजरीवाल को चुनाव प्रचार के लिए सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई। 21 दिनों तक जेल में न्यायिक हिरासत में रहने के बाद बाहर आने पर केजरीवाल ने दिल्ली में आप और कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए कई रोड शो व चुनावी कार्यक्रम किए। वह चुनाव प्रचार में यह कहकर वोट मांग रहे थे कि यदि दिल्लीवासियों ने उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान किया तो उन्हें वापस जेल नहीं जाना पड़ेगा। पंजाब में भी उन्होंने आप प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया, लेकिन नतीजे आए तो उनके पक्ष में सहानुभूति दिखाई नहीं दी। दिल्ली में न तो उनकी पार्टी को कोई सीट मिली और न ही गठबंधन सहयोगी कांग्रेस को कोई लाभ हुआ। पंजाब में भी आप का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा।

‘मुख्यमंत्री को दिल्लीवासियों की चिंता नहीं’

वहां सरकार रहने के बावजूद आप 13 में से मात्र तीन सीटें ही जीत सकी। सोरेन की तरह केजरीवाल जनता की सहानुभूति हासिल नहीं कर सके, इसका कारण जेल से सरकार चलाने की उनकी जिद को माना जा रहा है। इसी वजह से दिल्ली में महापौर का चुनाव सहित कई जरूरी काम नहीं हो सके। भाजपा आक्रामक तरीके से उठाकर जनता को यह बताने में सफल रही कि मुख्यमंत्री को दिल्लीवासियों की चिंता नहीं है। अंतरिम जमानत मिलने के बाद जनता के बीच उनके पहुंचने से सहानुभूति और कम होती चली गई। वहीं, सोरेन को अंतरिम जमानत नहीं मिलने से झारखंड के लोगों, विशेषकर आदिवासियों में उनके प्रति सहानुभूति और बढ़ गई।