हेमंत सोरेन की वापसी झारखंड में भाजपा के लिए क्यों मुश्किलें खड़ी कर सकती है? | इंडिया न्यूज़

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता हेमंत सोरेन कथित भूमि घोटाले मामले में जमानत पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब वे झारखंड की सत्ता पर फिर से काबिज होने के लिए तैयार हैं, हालांकि राज्य में विधानसभा चुनाव में बस कुछ ही महीने बचे हैं। उनकी रिहाई के बाद चर्चा थी कि चुनाव तक चंपई सोरेन मुख्यमंत्री बने रहेंगे जबकि हेमंत पार्टी के काम पर ध्यान देंगे। हालांकि, हेमंत के मुख्यमंत्री बनने के कदम ने इन अटकलों को खत्म कर दिया है।

बुधवार को राजधानी रांची में हुई बैठक में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी ने सर्वसम्मति से हेमंत सोरेन को फिर से मुख्यमंत्री बनाने पर सहमति जताई। पार्टी के फैसले के बाद चंपई सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और हेमंत सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चंपई सोरेन कथित तौर पर अपने पद से हटाए जाने से नाखुश हैं, हालांकि अभी तक उनकी ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।

अहम सवाल यह है कि चंपई सोरेन को अपना कार्यकाल पूरा क्यों नहीं करने दिया गया और हेमंत सोरेन को जेल से रिहा होते ही सीएम की कुर्सी संभालने की इतनी जल्दी क्यों थी। यह लेख हेमंत सोरेन के सत्ता वापस पाने के लिए जल्दबाजी करने के पीछे के कारणों पर प्रकाश डालता है।

पार्टी के भीतर गुटबाजी का दौर

जेल से रिहा होने के पांच दिन बाद ही हेमंत सोरेन ने झारखंड की सत्ता संभाल ली। जेएमएम से जुड़े सूत्र बताते हैं कि विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही पार्टी में दो गुट उभर रहे थे। इससे पार्टी की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता था। इसे रोकने के लिए हेमंत ने खुद सीएम की कुर्सी पर कब्जा करने का फैसला किया।

पार्टी में मजबूत पकड़

लोकसभा चुनाव के नतीजों और हेमंत सोरेन की रिहाई के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा में जोश भर गया है। पार्टी का मानना ​​है कि हेमंत के नेतृत्व में वे आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के सारे रिकॉर्ड तोड़ देंगे। चुनाव से पहले किसी भी तरह की गलती से बचने के लिए हेमंत का सीएम बनने का कदम पार्टी के भीतर साफ संदेश देता है कि सत्ता की बागडोर उनके हाथ में है।

सहानुभूति वोट

लोकसभा चुनाव के दौरान गिरफ्तारी के कारण चुनाव प्रचार से दूर रहने वाले हेमंत सोरेन का लक्ष्य विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बनना है। महागठबंधन के अन्य दल इस कदम का समर्थन करते हैं, उनका मानना ​​है कि हेमंत के नेतृत्व में सहानुभूति वोट मिल सकते हैं। यही कारण है कि उनकी रिहाई के तुरंत बाद उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी तेजी से की गई। अगर हेमंत को फिर से जेल जाना पड़ता है, तो वह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह ही काम कर सकते हैं, जो जेल से ही शासन करते रहे।

उनकी पत्नी द्वारा संभावित उत्तराधिकार

हेमंत सोरेन को पता है कि चल रहे मामलों के कारण उन्हें फिर से जेल जाना पड़ सकता है। अगर ऐसा होता है, तो वे सीएम के रूप में अपनी शक्ति का उपयोग करके अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर सकते हैं। कल्पना ने पार्टी के भीतर खुद को एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया है, विधानसभा उपचुनाव जीता है और हेमंत की अनुपस्थिति में जेएमएम के लोकसभा अभियान का प्रभावी ढंग से नेतृत्व किया है। अगर हेमंत को फिर से पद छोड़ना पड़ा, तो कल्पना मुख्यमंत्री की भूमिका संभालने के लिए उनकी पसंद हो सकती हैं ताकि पार्टी का नियंत्रण परिवार के पास ही रहे।

हेमंत पर गठबंधन का भरोसा

इंडिया ब्लॉक में जेएमएम के सहयोगी दलों का मानना ​​है कि राज्य विधानसभा में बहुमत केवल हेमंत सोरेन पर भरोसा करके ही हासिल किया जा सकता है। उनके नेतृत्व में इस भरोसे ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने के फैसले में अहम भूमिका निभाई है।

भाजपा से मुकाबला करने की रणनीति

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने 14 लोकसभा सीटों में से 9 पर जीत हासिल की है। 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने 12 सीटें जीती थीं। माना जा रहा है कि इस बार हेमंत सोरेन के जेल जाने से जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन को सहानुभूति वोट मिले हैं, क्योंकि इसने 2019 के मुकाबले तीन सीटें ज़्यादा जीती हैं। हेमंत सोरेन की वापसी और कल्पना सोरेन की वाकपटुता से आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ गठबंधन की संभावनाओं को बल मिलने की संभावना है और भाजपा के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी।

Keep Up to Date with the Most Important News

By pressing the Subscribe button, you confirm that you have read and are agreeing to our Privacy Policy and Terms of Use