कर्नाटक से शुरू होकर हिजाब पर प्रतिबंध एक बहुत ही विवादित मुद्दा बन गया है, जो अब मुंबई तक भी पहुंच गया है। कॉलेज को हिजाब पर प्रतिबंध न लगाने के लिए कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेज से पूछा कि क्या वह बिंदी या टोपी लगाने वाली लड़कियों पर भी प्रतिबंध लगाएगा। जस्टिस संजीव खन्ना और पीवी संजय कुमार की पीठ ने प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका के संबंध में नोटिस जारी किया और हिजाब और टोपी पर प्रतिबंध को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया।
न्यायमूर्ति कुमार ने यह भी टिप्पणी की कि कॉलेजों को ऐसे नियम बनाने बंद करने चाहिए। न्यायालय ने सवाल किया कि क्या तिलक या बिंदी लगाने वाले व्यक्तियों को भी कॉलेज में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
पीठ ने कॉलेज का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से कहा, “यह निर्देश का हिस्सा ही नहीं है। आपने ऐसा नहीं कहा है।”
कॉलेज ने तर्क दिया कि मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति देने से वे हिंदू छात्राओं को भगवा शॉल पहनने से नहीं रोक पाएंगे, जिससे राजनीतिक तत्वों द्वारा विवाद को बढ़ावा मिल सकता है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ‘बुर्का और हिजाब’ पर उसके अंतरिम आदेश की गलत व्याख्या या दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए, और मुंबई कॉलेज को इस तरह का दुरुपयोग होने पर अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार दिया।
न्यायालय ने कहा कि कॉलेज का निर्णय महिलाओं को सशक्त बनाने के प्रयासों में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, “आप महिलाओं को यह बताकर कैसे सशक्त बना रहे हैं कि उन्हें क्या पहनना है? जितना कम कहा जाए उतना अच्छा है। महिलाओं के पास विकल्प कहां है? आप अचानक इस तथ्य से जाग गए हैं कि वे क्या पहन रही हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के इतने वर्षों बाद ये सब कहा जा रहा है और आप कहते हैं कि इस देश में धर्म है।”
बेंच बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें चेंबूर (मुंबई) के एक कॉलेज द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था, जिसमें छात्रों को कैंपस में बुर्का, हिजाब या नकाब पहनने से मना किया गया था। याचिका का मसौदा अधिवक्ता हमजा लकड़वाला ने तैयार किया था और अधिवक्ता अबीहा जैदी ने दायर किया था।