ऐसे समय में जब नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) के बारे में भ्रामक प्रचार किया
जा रहा है और कुछ लोगों की शय पर इसे वापस लेने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है,
नरेन्द्र मोदी सरकार पूर्वोत्तर में अल्पसंख्यकों और जातीय विवादों से जुड़े लम्बित मुद्दों
के समाधान के लिए शांतिपूर्वक अपना कार्य कर रही है।
हालांकि, सीएए सुर्खियों में है, केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने 50 वर्ष पुरानी बोडो
समस्या और त्रिपुरा में ब्रू-रियांगों के पुनर्वास के 23 वर्ष पुराने मुद्दे को समाप्त करने के
लिए दो महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर करने का संचालन किया।
बोडो से जुड़ा जातीय विवाद अब तक 4000 से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है,
लेकिन हाल ही के समझौते के साथ, समस्या का एक स्थायी समाधान ढूंढ़ लिया गया है।
भारत सरकार, असम सरकार और बोडो उग्रवादियों के बीच हुए एक ऐतिहासिक समझौते के
अंतर्गत, केन्द्र ने बोडो इलाकों में कुछ विशेष परियोजनाओं के विकास के लिए 1500 करोड़
रुपये का विकास पैकेज देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। बदले में, करीब 1500
सशस्त्र कैडर हिंसा त्याग देंगे और मुख्यधारा में शामिल हो जाएंगे। समझौते के बाद
सरकार ने कहा कि बोडो द्वारा रखी गई मांगों के लिए एक विस्तृत और अंतिम समाधान
ढूंढ़ लिया गया है। अब, अनेक वर्षों के विवाद के बाद, बोडो गुट हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे,
हथियार डाल देंगे और अपने संगठनों को बंद कर देंगे। केन्द्र और असम सरकार इन कैडरों
में से 1500 के पुनर्वास के लिए कदम उठाएगी।
इस ऐतिहासिक बोडो समझौते से कुछ दिन पूर्व, गृह मंत्री श्री अमित शाह ने इन
शरणार्थियों के 23 वर्ष पुराने संकट को समाप्त करने के लिए केन्द्र सरकार और त्रिपुरा
तथा मिजोरम की सरकारों और ब्रू-रियांग के प्रतिनिधियों के बीच नई दिल्ली में समझौते
पर हस्ताक्षर के दौरान उसका संचालन किया था। इस समझौते से त्रिपुरा में ब्रू-रियांग
स्थायी रूप से बस सकेंगे और पुनर्वास पैकेज में 600 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
ब्रू-रियांग शरणार्थियों की 23 वर्ष पुरानी समस्या नासुर बन गई थी। मिजोरम में
1997 में उत्पन्न जातीय तनाव के बीच उस वक्त इसकी उत्पत्ति हुई, जब करीब करीब
30,000 सदस्यों के साथ 5000 परिवार राज्य से भाग गए और उन्होंने त्रिपुरा में शरण
ले ली। इन लोगों को उत्तरी त्रिपुरा में अस्थायी शिविरों में रखा गया। चूंकि विस्थापित
जनजातियों की समस्या बनी हुई थी, 2010 के बाद ब्रू-रियांग के पुनर्वास के लिए कुछ
प्रयास किए गए। 5000 परिवारों में से, करीब 1600 परिवारों को मिजोरम वापस भेज दिया
गया और केन्द्र सरकार ने त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों की सहायता की पहल की। मोदी
सरकार की पहली प्रमुख पहल जुलाई, 2018 में देखने को मिली, जब सरकार ने एक
समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसके परिणामस्वरूप इन परिवारों को दी जाने वाली सहायता
बढ़ा दी गई। इसके बाद 1369 सदस्यों के साथ 328 परिवार मिजोरम लौट आए, लेकिन
इसके बाद ब्रू आदिवासी एक ऐसा समाधान चाहते थे, जिससे वे त्रिपुरा में स्थायी रूप से
बस सकें। उनका मानना था कि वे राज्य में अधिक सुरक्षित रहेंगे।
नवीनतम समझौते से करीब 34,000 ब्रू-रियांग लाभान्वित होंगे, जो त्रिपुरा में छह
शिविरों में रह रहे हैं।
जनजातीय अनुसंधान और सांस्कृतिक संस्थान, त्रिपुरा के अनुसार त्रिपुरा में रियांग
दूसरा सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है और उसे भारत के 75 आदिम आदिवासियों में से
एक के रूप में मान्यता दी गई है। ऐसा कहा जाता है कि रियांग म्यांमार के शान राज्य
से आए, चटगांव पहाड़ी क्षेत्रों और उसके बाद त्रिपुरा चले गए। एक अन्य समूह था, जो
18वीं शताब्दी के दौरान असम और मिजोरम के रास्ते त्रिपुरा आया।
संस्थान का कहना है कि रियांगों की आबादी 1.88 लाख है और वे दो प्रमुख
कुटुम्बों – मेस्का और मोल्सोई में बंटे हुए हैं। ये अभी भी खानाबदोश आदिवासी हैं और
इनकी बड़ी संख्या पहाड़ की चोटियों में झूम खेती पर निर्भर करती है। इनकी भाषा कोबरू
के नाम से जानी जाती है। इनकी एक बड़ी आबादी वैष्णव सम्प्रदाय की अनुयायी है। रियांग
के लोक जीवन और संस्कृति में उत्कृष्ट सांस्कृतिक संघटक है। इनमें सबसे लोकप्रिय
होजागिरी नृत्य है, जिसे बांसुरी की मधुर धुन के साथ किया जाता है।
गृह मंत्री श्री अमित शाह के अलावा इस ऐतिहासिक हस्ताक्षर समारोह में त्रिपुरा के
मुख्यमंत्री बिप्लव कुमार देव, मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरम थंगा, पूर्वोत्तर लोकतांत्रिक
गठबंधन के अध्यक्ष हिमंत बिस्व सरमा, त्रिपुरा के शाही परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर
देव बर्मा और ब्रू प्रतिनिधि मौजूद थे।
समझौते के अनुसार त्रिपुरा में रह रहे ब्रू परिवार के प्रत्येक सदस्य को एक भूखंड,
चार लाख रुपये का फिक्स्ड डिपोजिट, दो वर्ष के लिए प्रति माह 5000 रुपये, दो वर्ष के
लिए मुफ्त राशन और अपना घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये दिये जाएंगे। भूखंड त्रिपुरा
सरकार द्वारा प्रदान किया जाएगा।
गृह मंत्रालय ने ब्रू आदिवासियों के सामने मौजूद समस्या को समाप्त करने के लिए
गंभीर प्रयास शुरू कर दिए थे। गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कुछ माह पूर्व दोनों राज्य
सरकारों और ब्रू लोगों को एकसाथ लाने का फैसला किया। उन्होंने ब्रू लोगों के मिजोरम में
पुनर्वास के प्रयासों की बजाय उन्हें त्रिपुरा में बसाने की पहल को समर्थन देने के लिए त्रिपुरा
के नरेश और विभिन्न आदिवासी समूहों से भी बातचीत की। जैसा कि श्री शाह ने हाल ही
में हस्ताक्षर किये गये समझौते के बाद कहा, यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘सबका साथ,
सबका विकास, सबका विश्वास’ नीति और पूर्वोत्तर के लम्बित विषयों के समाधान पर
उनके जोर देने का हिस्सा है।
दोनों समझौतों से नरेन्द्र मोदी सरकार की कुशाग्रता का पता लगता है, जो पूर्वोत्तर
के लम्बित विषयों का समाधान करना चाहती थी और इन राज्यों को विकास के ऊंचे रास्ते
पर ले जाना चाहती है।
फिर भी पूर्वोत्तर में इन सकारात्मक पहलों से बेखबर, कुछ असंतुष्ट
अल्पसंख्यक गैर-मुद्दों पर आंदोलन जारी रखे हुए हैं।