आगामी लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सामान्य वर्ग को शिक्षा और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने का महत्वपूर्ण दांव चला। सरकार के हर कदम का विरोध करने वाले विपक्ष के लिए भी इसकी खिलाफत करना कठिन होगा क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती से लेकर टीडीपी सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू तक आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को आरक्षण देने की मांग करते रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती कई बार अगड़ी जातियों के गरीबों को आरक्षण देने की मांग कर चुकी हैं। वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में मायावती ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग की थी।
उन्होंने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद नौ में संशोधन कर आर्थिक आधार पर पिछड़े सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने को कहा था ताकि इसे अदालत में भी चुनौती न दी जा सके। 2009 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो अगड़ी जाति को आरक्षण देगी। उन्होंने 2015 और 2017 में भी इसकी मांग की थी।
2014 के लोकसभा चुनाव से पहले सपा ने सवर्ण आयोग या उच्च जाति आयोग का गठन करने का वादा किया था। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू ने भी 2016 में संकेत दिए थे कि उनकी सरकार भी अगड़ी जाति के गरीब लोगों को भी आरक्षण के दायरे में ला सकती है।
पिछले दिनों माकपा नेता और केरल सरकार में मंत्री के. सुरेंद्रन ने भी कहा था कि आरक्षण की व्यवस्था जाति के बजाय आर्थिक आधार पर होनी चाहिए। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने कहा कि गरीबी की एक ही जाति होती है। हम लोग 15 फीसदी की मांग कर रहे थे, लेकिन 10 फीसदी दिया गया। हम इस फैसले का स्वागत करते हैं।
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