भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने शुक्रवार को कहा कि चुनावी वादों में कृषि कर्जमाफी की घोषणा नहीं करनी चाहिए। राजन ने कहा कि उन्होंने इस बारे में निर्वाचन आयोग को खत लिखकर कहा है कि ऐसे मुद्दे चुनावी वादों में शामिल नहीं होने चाहिए। रघुराम राजन ने कहा कि कृषि ऋण माफी से न केवल कृषि क्षेत्र में निवेश को नुकसान पहुंचता है, बल्कि ऐसा करने वाले राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी दबाव पड़ता है।
बीते पांच वर्षों में जिन-जिन राज्यों में चुनाव हुए हैं, किसी न किसी पार्टी द्वारा कृषि कर्ज माफी की घोषणा की गई है। हाल में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं, वहां भी कुछ पार्टियों के चुनावी घोषणा पत्रों में कृषि कर्ज माफी और दलहन की न्यूनतम समर्थन कीमतों (एमएसपी) में बढ़ोतरी का जिक्र किया गया था।
उन्होंने कहा, ‘मैं यह बात हमेशा से कहता आ रहा हूं, यहां तक कि निर्वाचन आयोग को इस बारे में पत्र भी लिखा है। मेरे कहने का मतल है कि कृषि क्षेत्र के संकट के कारणों के बारे में सोचना निश्चित तौर पर जरूरी है, लेकिन सवाल यह उठता है कि कृषि कर्ज माफी से क्या उनका भला होने वाला है? क्योंकि किसानों का एक छोटा सा समूह ही इस तरह का कर्ज लेता है।’
‘ऐन इकनॉमिक स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया’ नामक रिपोर्ट जारी करते हुए राजन ने कहा, ‘कृषि कर्ज माफी का लाभ बेहतर ताल्लुकात वाले लोगों को ही मिलता है, न कि किसी गरीब किसान को। दूसरी बात, कृषि कर्ज माफी राज्यों की अर्थव्यवस्था के लिए भारी परेशानी का सबब बन जाती है और इससे कृषि क्षेत्र में निवेश पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है।’
उन्होंने कहा, ‘हमें एक ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है, जिसमें किसान एक वाइब्रेंट फोर्स हो सकते हैं और इसके लिए अधिक से अधिक संसाधनों की जरूरत है।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि इस पर सभी दलों द्वारा सहमति जताने से यह राष्ट्रहित में होगा।
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