छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में 80 साल के किसान बाघेला यादव ने 12 नवंबर को अपने गांव कुठरी में वोट डाला. यह राज्य के विधानसभा चुनाव का पहला चरण था. यादव इससे पहले हुए तकरीबन हर चुनाव में भी वोट दे चुके हैं. हालांकि, यह पूछे जाने पर कि ‘आपने किन मुद्दों पर वोट दिया’, वह चुप होकर इधर-उधर देखने लगे.
राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह के निर्वाचन क्षेत्र में मौजूद इस गांव में अपने पड़ोसियों से घिरे यादव ने शर्माते हुए स्वीकार किया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर उनका इरादा पहला बटन दबाने का था, लेकिन उन्होंने गलती से उम्मीदवारों की सूची में मौजूद आखिर नाम पर बटन दबाकर उसे वोट कर दिया. उनके मुंह से यह बात सुनकर वहां मौजूद तमाम लोग हंसने लगे.
वोटरों में अब भी बड़े पैमाने पर जागरूकता का अभाव
सामाजिक कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक रमाकांत बंजारे ने इस स्थिति को एक विशेष नजरिए के जरिए पेश करते हैं. उन्होंने बताया, ‘ग्रामीण इलाकों में पुरानी पीढ़ी के ज्यादातर लोग वाकई में यह नहीं सोचते कि किसे वोट देना है.’
उनका कहना था, ‘इस प्रक्रिया के व्यापक मायने को लेकर जागरूकता की भारी की कमी है. कई लोग तात्कालिक आधार पर वोट कर देते हैं या चुनाव से पहले किए गए वादों पर झुक जाते हैं या सिर्फ वोट देने के लिए वोट कर देते हैं.’
उदयराम साहू (61 साल) की राय भी बंजारे के इस तर्क का समर्थन करती है. उन्होंने बताया, ‘सभी पार्टियां चुनावों से पहले कई तरह के वादे करती हैं, जिसके आधार पर लोग हमेशा अपनी पसंद बदलते हैं. मिसाल के तौर पर जब तक मैं ईवीएम पर उम्मीदवार के लोगो का चुनाव नहीं करता, तब तक वोट देने के बारे में मेरा फैसला तय नहीं रहता है.’
रुहेला साहू (72 साल) ने बताया कि पार्टियों के घोषणापत्र और कैंपेन के बारे में जो दूसरे लोगों ने उन्हें बताया, उन्होंने उसी आधार पर वोट दिया, जबकि पेंडरी गांव के धानेराम खरे का कहना था कि उन्होंने इसलिए कांग्रेस पार्टी को वोट दिया, क्योंकि उनके परिवार में ‘पंजा’ (कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह) पर मुहर लगाने की परंपरा रही है. उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता ने हमेशा इस पार्टी के लिए वोट दिया, इसलिए हमारा पूरा परिवार भी ऐसा करता है. हालांकि, मैं नहीं जानता ऐसा क्यों है.’
निरक्षरता और कुठेरी और पेंडरी जैसे छोटे गांवों को लेकर राजनीतिक पार्टियों के उदासीन रवैये के कारण स्थितियां और जटिल हो जाती हैं. तीन गांवों में मैंने जिन लोगों से बात की, उनमें से सिर्फ तीन वोटरों ने दोनों प्रमुख पार्टियों-कांग्रेस और बीजेपी का घोषणापत्र पढ़ा था. साथ ही, सिर्फ आधे लोगों ने इन पार्टियों के चुनाव प्रचार के आधार पर वोटिंग की थी. कांग्रेस पार्टी ने 9 नवंबर को छत्तीसगढ़ चुनाव के लिए घोषणापत्र जारी किया, जबकि राज्य की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी ने चुनाव से महज एक दिन पहले यानी 10 नवंबर को अपना घोषणापत्र पेश किया.
बंजारे ने कहा, ‘बीजेपी द्वारा घोषणापत्र जारी करने में देरी की यह वजह हो सकती है कि लोग 2013 में पार्टी की तरफ से किए गए कई वादों को पूरा नहीं करने लेकर को नाराज हों. मुमकिन है कि पार्टी चावल का अधिकतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2,100 रुपए प्रति क्विंटल करने के वादे से संबंधित सवालों को लेकर दिक्कत में नहीं पड़ना चाहती हो, जबकि इसका मूल्य अब तक सिर्फ 1,750 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचा है.’ हालांकि, इन मुद्दों के बावजूद लोगों ने दोनों पार्टियों के लिए जमकर वोट किया, चाहे वे जागरूकत रहे हों या नहीं.
निवर्तमान सरकार के लिए भारी पड़ सकती है किसानों की नाराजगी
कुठेरी में मैंने वोटरों के जिस पहले समूह से मुलाकात ही, उनमें महिला किसान भी शामिल थीं. जब इन महिला किसानों से सामान्य सवाल पूछे गए, तो उन्होंने जोरदार आवाज में शिकायतों का पिटारा खोल दिया. इसमें सबसे मुखर आवाज प्रतिमा मेशराम की थी.
उन्होंने कहा, ‘मैंने सरकार में बदलाव के लिए वोट दिया है. महिलाएं जिस एक बेहद अहम मुद्दे की बात कर रही हैं, वह शराबबंदी को लागू करने में हो रही देरी है. घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए शराब की बिक्री पर पाबंदी को तत्काल लागू किए जाने की जरूरत है.’
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