उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की मुश्किलें दूर नहीं हो रही हैं। शराब घोटाले में सीबीआई जांच के घेरे में आने के बाद उनकी मुश्किल तब और बढ़ गई जब उनके एक सहयोगी और बिजनेसमैन दिनेश अरोड़ा सरकारी गवाह बन गए। पिछले महीने अरोड़ा को दिल्ली की एक अदालत से जमानत मिल गई थी। और अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व सरमा द्वारा उनके खिलाफ दायर किए गए एक आपराधिक मानहानि मामले में उनकी मुश्किलें और बढ़ गई है। सरमा ने सिसोदिया के खिलाफ 30 जून को ‘आधारहीन भ्रष्टाचार के आरोप’ लगाने का मामला दर्ज कराया था। दरअसल, सिसोदिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर असम के सीएम और उनकी पत्नी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा कि हिमंत बिस्वा सरमा ने कोरोना काल में पीपीई किट का ठेका अपनी पत्नी की कंपनी को दिया था। उस दौरान हिमंत स्वास्थ्य मंत्री थे, उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर पत्नी की कंपनी को पीपीई किट का ठेका दिलवाया। यही नहीं पीपीई किट के लिए कंपनी को ज्यादा भुगतान कराया था। जिन कंपनियों ने पीपीई किट की सप्लाई की थी उनमें एक जेसीबी इंडस्ट्रीज भी थी जो उनकी पत्नी रिंकी भुइयां के सह-स्वामित्व में है। वहीं सरमा के वकील ने कहा कि जेसीबी इंडस्ट्रीज ने एनएचएम, असम को पीपीई किट की आपूर्ति के लिए किसी भी बोली में भाग नहीं लिया और न ही उसने कोई बिल पेश किया। इसने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) गतिविधियों के तहत एनएचएम असम को लगभग 1500 पीपीई किट की आपूर्ति की थी। सिसोदिया इस मामले को गुवाहाटी हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक ले आए। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आप सार्वजनिक बहस को इस स्तर तक गिरा देंगे, तो आपको अंजाम भुगतने होंगे। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को पहले ही बेशर्त माफी मांग लेनी चाहिए थी, अब आपको मुकदमे का सामना करना पड़ेगा और कोर्ट में अपने आरोप को साबित करना होगा।
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