भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी नई मुश्किल में फंस गए हैं। वीर सावरकर के जिस माफीनामे को उन्होंने मुद्दा बनाना चाहा अब वही माफीनामा उनके गले की हड्डी बन रही है। इसकी वजह यह है कि इसी तरह का माफीनामा महात्मा गांधी से लेकर जवाहरलाल नेहरू भी लिख चुके हैं। यह अलग बात है कि राहुल गांधी, कांग्रेस और लेफ्ट लिबरल गैंग सावरकर के माफीनामे पर शोर मचाता आया है लेकिन वह नेहरू के माफीनामे पर एकदम चुप्पी साध लेता है। ऐसे में सवाल उठता है कि सावरकर जैसे महान क्रांतिकारी को कायर और अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने वाला साबित करने की साजिश क्यों रची गई? इसे एक गहरी साजिश के तहत वामपंथी इतिहासकारों द्वारा अंजाम दिया गया। भारत के इतिहास लेखन की ये बहुत बड़ी विंडबना है कि जिन क्रांतिकारियों ने सेल्युलर और मांडला जेल में यातनाएं झेली उनपर गुमनामी की चादर डाल दी गई जबकि जो क्रांतिकारी सारी सुख सुविधाओं के बीच देहरादून की जेल में जाते थे वो आजादी के मसीहा करार दिए गए। जबकि सावरकर के मामले में सच्चाई यह है कि काले पानी की सजा काट रहे सावरकर को इस बात का अंदाजा हो गया था कि सेल्युलर जेल की चारदीवारी में 50 साल की लंबी जिंदगी काटने से पहले की उनकी मौत हो जाएगी। ऐसे में देश को आजाद कराने का उनका सपना जेल में ही दम तोड़ देगा। लिहाजा एक रणनीति के तहत उन्होंने अंग्रेजों से रिहाई के लिए माफीनामा लिखा। और इसी माफीनामे को आधार बनाकर सावरकर को कायर साबित करने की कोशिश राहुल गांधी, कांग्रेस एवं लेफ्ट लिबरल गैंग लगातार करता आया है जबकि सावरकर के अलावा महात्मा गांधी और नेहरू से लेकर बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने ये काम किया था लेकिन चूंकि उन सेनानियों की विचारधारा उनके के लिए अनुकूल है इसीलिए वे उन पर आपराधिक चुप्पी साधे रहते हैं। यह राहुल गांधी, कांग्रेस और लेफ्ट लिबरल गैंग के दोमुंहेपन को उजागर करता है।
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