जैसी करनी वैसी भरनी, भारत न कभी युद्ध या दुश्मनी का पक्षधर रहा है और न ही उसने पहले कभी शस्त्र उठाये हैं। यह उसके पड़ोसी देश ही हैं जो अपने कुकर्मों के बाद भी भारत से यह अपेक्षा रखते हैं कि भारत क्षमा तो कर ही देगा और संसाधनों की आपूर्ति में कोई कमी नहीं करेगा। इसी क्रम में भारत ने अपने पड़ोसी देश और उसके शत्रु पक्ष पाकिस्तान को पानी के लिए मोहताज बना देने के लिए एक्शन प्लान बना लिया है जिसके बाद पाकिस्तान पानी के लिए बिलखता तरसता रह जाएगा।
निश्चित रूप से हर देश को अपनी शक्तियों और कमजोरियों के बारे में पता होना चाहिए, इसी क्रम में भारत ने इस बार आत्ममंथन करते हुए मुख्य दस्तावेजों की छानबीन की और उनमें सबसे अहम निकला “सिंधु जल संधि।” मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में 10 जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर काम कर रही है। काम पूरा होने के बाद ये परियोजनाएं संयुक्त रूप से राष्ट्र को 6.8 गीगावाट अक्षय ऊर्जा प्रदान करेंगी। यह परियोजना वर्ष 2030 के अंत तक 500 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा आधारित बिजली का उत्पादन करने के मोदी सरकार के लक्ष्य को हासिल करेगी।
“सिंधु जल संधि” के आधार पर यह पता चला है कि कैसे, भारत विरोधी होने के कारण इसमें पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति में कटौती करने के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं। अब जब संधि में लिखा ही है तो एक्शन मोड़ पर आना स्वाभाविक ही था। तो चलिए अविलंब आरंभ करते हैं।ज्ञात हो कि, पाकिस्तान भारत में रखी जा रही परियोजनाओं पर भी आपत्ति कर सकता है, वो निस्संदेह यह कहेगा कि संधि कितनी त्रुटियों से भरी हुई है। ढ्ढङ्खञ्ज के अनुसार, भारत की तीन पूर्वी नदियों- ब्यास, रावी और सतलुज नदियों में बहने वाले पानी पर नियंत्रण 33 मिलियन एकड़ फुट (रू्रस्न) के औसत प्रवाह के साथ भारत को दिया गया था
पानी पर नियंत्रण सिंधु, चिनाब और झेलम नदियों में बहने वाली 80 एमएएफ के औसत प्रवाह के साथ पाकिस्तान को दिया गया था। भारत सिंधु नदी प्रणाली द्वारा लाए गए कुल पानी का केवल 20 प्रतिशत गैर-उपभोग्य तरीके से उपयोग कर सकता है जबकि पाकिस्तान शेष 80 प्रतिशत का उपयोग करता है। हालांकि, पिछली भारतीय सरकारों ने कभी भी उस 20 प्रतिशत हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया और पाकिस्तान को इसका पूरा उपयोग करने की अनुमति दी। इन सरकारों से और क्या ही उम्मीद की जा सकती है
जो लद्दाख की उस भूमि को केवल इसलिए छोडऩे को तैयार थे क्योंकि सरकारों के मालिकों के अनुसार वो भूमि बंजर थी ऐसे में अपने हिस्से का 20 प्रतिशत पानी भी उपयोग न करना इसका साक्ष्य है कि कैसे पूर्व की सरकारें अपने हिस्से को लावारिश छोड़ दिया करती थीं फिर चाहे जमीन हो या पानी।
More Stories
186 साल पुराना राष्ट्रपति भवन आगंतुकों के लिए खुलेगा
संभल जामा मस्जिद सर्वेक्षण: यूपी के संभल में जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान भारी तूफान…संभल, पत्थर बाजी, तूफान गैस छोड़ी
Maharashtra Election Result 2024: Full List Of Winners And Their Constituencies | India News