आप जानते होंगे कुछ लोग या समूह बड़े अजीब किस्म के होते हैं स्वयं चाहे दूसरों के जीवन को नारकीय बना दे, परंतु खुद को खरोंच भी आ जाए तो त्राहिमाम कर उठते हैं। हाल ही में भारत ने गेहूं की आपूर्ति पर रोक क्या लगा दी, सम्पूर्ण पाश्चात्य जगत के काटो तो मानो खून नहीं। सब के सब भारत पर मानो एक साथ टूट पड़े, और जमकर भारत को कोसने लगे।बता दें कि गेहूं की बढ़ती मांग और फलस्वरूप उसके बढ़ते दामों को देखते हुए भारत ने अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए केवल पड़ोसी देशों के लिए गेहूं के निर्यात को खुला रखा है।
अन्य देश इस प्रकार की कोई सुविधा का लाभ नहीं ले सकते। इस पर ब्लूमबर्ग जैसे वैश्विक मीडिया पोर्टल्स ने ट्वीट करते हुए लिखा, “भारत ने तत्काल प्रभाव से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। यूक्रेन से उत्पन्न संकट को देखते हुए विश्व के कई भारत की ओर आशातीत नेत्रों से देख रहे थे” परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। भारत के इस निर्णय से त्र7 समूह भी काफी क्रुद्ध है। त्र7 देशों ने भारत सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर लगाई रोक की आलोचना की है.। मेजबान देश जर्मनी के कृषि मंत्री केम ओजडेमिर ने स्टटगार्ट में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “अगर हर कोई निर्यात प्रतिबंध या बाजार बंद करना शुरू कर देगा, तो इससे संकट और खराब हो जाएगा।”
ब्रिटेन, कनाडा, फ्र ांस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका शामिल है।त्र7 औद्योगिक राष्ट्रों के मंत्रियों ने दुनिया भर के देशों से प्रतिबंधात्मक कार्रवाई नहीं करने का आग्रह किया जिससे उपज बाजारों पर और दबाव बढ़ सकता है। ओजडेमिर ने कहा, “हम भारत से त्र20 सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारी संभालने का आह्वान करते हैं।” कृषि मंत्री जून में जर्मनी में शिखर सम्मेलन में इस विषय को संबोधित करने की “सिफारिश” करेंगे।“सिफारिश करेंगे”, हैं? इसी को कहते हैं, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। जिन लोगों ने जमकर हमारे संसाधन लूटे, हमें भुखमरी, अकाल, सूखा का अनुभव कराया, हमें दाने दाने को तरसाया, वह अब हमें नैतिकता का ज्ञान दे रहे हैं,
इससे हास्यास्पद भला कुछ हो सकता है क्या? ये वही पाश्चात्य जगत है, जिसके कारण एक पर हम सुई तक अपने देश में बनाने योग्य नहीं बचे थे, और उसे भी बाहर से आयात कराना पड़ता था।इसमें बिना भारत की स्वीकृति के उसे युद्ध में ब्रिटेन की ओर से सम्मिलित करा लिया गया, और लगभग पच्चीस लाख भारतीय योद्धाओं को युद्ध में झोंक दिया गया। इसी समय बंगाल में एक भीषण सूखा पड़ा था, जिसमें कम से कम 20 से 40 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी, परंतु एक निष्ठुर और क्रूर प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था, “गांधी तो नहीं मरा ना?”लेकिन ये निष्ठुरता केवल स्वतंत्रता पूर्व तक ही सीमित नहीं थी। जब कोविड का संकट समक्ष आया, तो पश्चिमी जगत ने भारत की सहायता करना तो बहुत दूर की बात, वैक्सीन की तकनीक तक साझा करने में काफी नाक भौं सिकोड़ा। भारत को अमेरिका से लेकर बड़े से बड़े देशों ने वैक्सीन तकनीक से लेकर आवश्यक डिस्काउंट तक देने से मना कर दिया, परंतु भारत ने हार नहीं मानी, और आज परिणाम यह कि आज लोग चाहे सार्वजनिक तौर पर या छुप-छुप के ही सही, परंतु इस बात को मानते हैं कि भारतीय वैक्सीन जैसे कोविशील्ड और ष्टह्रङ्क्रङ्गढ्ढहृ असरदार भी है और दमदार भी। वहीं चीन के स्ढ्ढहृह्रङ्क्रष्ट और अमेरिका के क्कद्घद्ब5द्गह्म् वैक्सीन के बारे में जितना कम बोलें, उतना ही अच्छा।
ऐसे में जब पाश्चात्य जगत इस बात पर रोता है कि भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है, तो हमें क्रोध कम और हंसी अधिक आती है, क्योंकि ये वही वेस्ट है, जिसने एक समय हमारे दवाइयों से लेकर हमारे हर आवश्यक संसाधन पर रोक लगा दी थी। अब जब उन्ही की भाषा में जवाब दिया गया, तो उन्हे जबर्दस्त मिर्ची लग रही है। पर क्या करें, अब भारत अपना हर निर्णय गोरों से परमीसन लेकर तो अब बिल्कुल नहीं लेगा।
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