डूबते जहाज की सवारी वैसे भी कोई पसंद नहीं करता। चूहे तक उससे निकलकर भाग जाते हैं। ऐसे में पंजाब में केजरीवाल की टूटी नाव की सवारी भला कौन करता। केजरीवाल ने जहां-जहां हाथ जोड़े, वहां-वहां से हाथ जोड़कर इनकार आ गया कि भई और कुछ भी करा लो, लेकिन आप की सवारी नहीं करेंगे। हारकर केजरीवाल ने न चाहते हुए भी भरे मन से भगवंत मान को ही पंजाब में सीएम का चेहरा घोषित करना पड़ा। दरअसल, कोई और ऑप्शन न होने के कारण भगवंत मान ही केजरीवाल की मजबूरी बन गए। यही कारण रहा कि अकाली नेताओं द्वारा मान पर ‘शराबीÓ के टैग लगाने के बावजूद मान को ही सीएम चेहरा बनाना पड़ा।
वैसे इन दिनों दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के दिल में शराब के लिए जिस तरह से प्रेम उमड़ रहा है। दिल्ली में मोहल्ले-मोहल्ले पाठशाला तो नहीं खुल पाईं, अलबत्ता मधुशाला जरूर बेहताशा खुल रही हैं। ऐसे में यदि ‘शराबी के टैग के बावजूद मान को सीएम चेहरा बना दिया है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति भी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि किसी बड़े चेहरे की तलाश में पूरी जोड़तोड़ के बाद भी अंत में सांसद भगवंत मान आम आदमी के सीएमकैंडिडेट बन गए। केजरीवाल सबसे पहले नवजोत सिद्धू को पार्टी में लाना चाहते थे।
केजरीवाल ने सिद्धू से निराश होने के बाद फिल्म अभिनेता सोनू सूद पर डोरे डाले। सूद की पार्टी में शामिल होने के लिए खूब मन्नत की, लेकिन सूद की बहन ने कांग्रेस का दामन थाम लिया और खुद सूद ने आप में जाने से मना कर दिया। इसके बाद केजरीवाल ने दुबई के होटल कारोबारी एसपीएस ओबेरॉय से लेकर किसान नेता बलबीर राजेवाल तक दस्तक दी। केजरीवाल को लगा कि किसान आंदोलन के चलते किसान नेता को सीएम चेहरा बनाना फिट बैठ सकता है। लेकिन टूटी नाव में सवारी को ये भी तैयार नहीं हुए।
आप के सीएम चेहरे के लिए सबसे बहले केजरीवाल ने कांग्रेस के पंजाब प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू पर डोरे डाले। दरअसल, आप के इस ऑफर के कारण ही सिद्धू कांग्रेस में मनचाहा घमासान मचाते रहे। जब चाहा सोनिया गांधी की मुखालफत कर दी। जब चाहा कांग्रेस प्रधानी से इस्तीफा दे दिया। उनकी जेब में केजरीवाल का ऑफर था। यदि कांग्रेस कोई एक्शन लेती तो तत्काल बाउंड्री फांदकर आप के पाले में चले जाते और सीएम का चेहरा बन जाते, लेकिन केजरीवाल और सिद्धू दोनों के सपने पूरे नहीं हुए। सिद्धू आप में नहीं गए और कांग्रेस ने सिद्धू को सीएम चेहरा घोषित नहीं किया।
दरअसल, पंजाब का सीएम बनने की ख्वाहिश दिल्ली वाले नेताओं की भी चर्चा में रही, लेकिन पंजाबी किसी बाहरी नेता को कबूल नहीं करते। इसलिए यह विकल्प पिट गया। तमाम कोशिश के बीच चुनाव सिर पर आ गए तो अरविंद केजरीवाल की मजबूरी बन गई और भगवंत मान के नाम की घोषणा करनी पड़ी। इसके लिए केजरीवाल ने एक फर्जी रायशुमारी करा डाली। इस रायशुमारी के बहाने केजरीवाल ने मान के चयन की जिम्मेदारी पंजाब की जनता पर डाल दी। इसके जरिए उन्होंने वोटरों पर भी दबाव बनाने की कोशिश की है।
वैसे पंजाब में एक चर्चा और भी है। आप नेता मान रहे हैं कि भगवंत मान ने अपना चुनाव कराकर केजरी को पटखनी दे दी। ऐसा इसलिए क्योंकि भगवंत मान पंजाब में आप के चेहरे तो हैं, लेकिन सीएम के दावेदार होंगे, ऐसा पार्टी के भीतर माहौल नहीं था। हालांकि चुनाव नजदीक आते भगवंत मान ने माहौल बनाना शुरू कर दिया। जब बाहर के किसी दूसरे दिग्गज की बात न बनी तो मान ने दिल्ली जाकर दावा ठोक दिया। उससे पहले करीबी विधायकों को भी भरोसे में लिया। केजरीवाल ने बात न सुनी तो नाराज होकर घर बैठ गए।
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