विलुप्ति के कागार पर पहुंच चुकी संस्कृत भाषा को संरक्षित करने की दिशा में कर्नाटक की बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय निर्माण करने का प्रस्ताव पेश किया। राज्य सरकार जहां इस विश्वविद्यालय से संस्कृत भाषा को संरक्षित करना चाहती थी, तो वहीं दूसरी तरफ युवाओं में इस भाषा के प्रति रूची बढ़ाना चाहती है। राज्य सरकार की योजना है कि आगामी दिनों में संस्कृत को रोजगारपरक भाषा का स्वरूप प्रदान किया जाए, ताकि युवाओं के मध्य इस भाषा को लेकर आकर्षण पैदा हो, जैसा कि वर्तमान में हिंदी या किसी दूसरी विलायती भाषा को लेकर आकर्षण युवाओं के जेहन में हिलोरे मारता है,
लेकिन अब आप ही बताइए कि इसे विपक्षी कुनबों का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या कहेंगे कि ये सभी लोग एकजुट होकर अब प्रदेश सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं। प्रदेश सरकार राज्य में संस्कृत विश्वविद्यालय निर्माण का विरोध करने के लिए कांग्रेस, पीएफआई समेत सभी दलों ने राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम अनुपयोगी है।इसी क्रम में कर्नाटक कांग्रेस के प्रवक्ता नटराज गौड़ा ने प्रदेश सरकार के इस कदम के संदर्भ में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य को इस विश्वविद्यालय की जरूरत नहीं है।
प्रदेश सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम अनुपयोगी है। कांग्रेस प्रवक्ता ने सरकार के इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, ‘हम कन्नड बच्चों को संस्कृति पढ़ाने की कट्टरतापूर्ण साजिश को भलीभांति देख रहे हैं। पर्यटन उद्योग के संवर्धन की दिशा में ध्यान देने की जगह यह सरकार संस्कृत विश्वविद्यालय के निर्माण के लिए भूमि आवंटित करने सरीखा अनुपयोगी कदम उठा रही है’। विदित हो कि प्रदेश सरकार के इस कदम का विरोध करने के लिए प्रदेश के सभी विपक्षी दल एकजुट होकर ट्विटर पर ‘#SayNotoSanskrit करवा रहे हैं।
मीडिया से बातचीत के दौरान उक्त कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि वर्तमान में प्रदेश का पर्यटन उद्योग विभिन्न प्रकार की दुश्वारियों से होकर गुजर रहा है।सरकार को इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, लेकिन अफसोस सरकार इन सभी चीजों पर ध्यान देने की बजाय संस्कृत विश्वविद्यालय निर्माण करने जैसा अनुपोयगी कदम उठा रही है। कांग्रेस प्रवक्ता ने आगे कहा कि हमें और हमारे राज्य को कौशल युक्त विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है न की संस्कृत विश्वविद्यालय की। सरकार का यह कदम अस्वीकार्य है। मौजूदा सरकार महज हिंदी और संस्कृत सरीखी भाषाओं के संवर्धन की दिशा में ही कदम उठा रही है। बता दें कि वर्तमान में सरकार के इस कदम को लेकर प्रदेश में भूचाल मच चुका है।
विभिन्न सियासी दलों के बीच जुबानी जंग अपने चरम पर पहुंच चुकी है। प्रदेश सरकार पर चौतरफा दबाव है। अब ऐसे में सरकार आगे चलकर क्या कुछ कदम उठाती है। यह तो देखने वाली बात होगी। आपको बताते चले कि, कर्नाटक सरकार द्वारा कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय के स्थायी परिसर के निर्माण के लिए 100 एकड़ भूमि आवंटित करने के निर्णय के बाद राज्य में विपक्ष अब इस फैसले के खिलाफ आ गया है। कांग्रेस नेताओं और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सदस्यों ने इस कदम की आलोचना कर रही है। संस्कृत को विदेशी भाषा मानने वाले कन्नड़ क्षेत्रवादियों के अधीन कई समूह भी विपक्ष में शामिल हो गए हैं। बता दें कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पीएफआई एक मुस्लिम संगठन है। ये संगठन आतंकी माना जाता है। दिल्ली में हुई सीएए विरोधी हिंसा में भी पीएफआई का नाम आ चुका है। बीते दिनों संगठन के दफ्तरों पर छापे पड़े थे। इसमें पता चला था कि पीएफआई के अरब देशों से भी रिश्ते हैं। इस संगठन पर बैन लगाने की मांग मोदी सरकार से तमाम लोग कर चुके हैं। संगठन का मूल दफ्तर केरल में है और ये संगठन दक्षिण भारत के राज्यों में गतिविधियां चलाता है। दिल्ली के जिस शाहीनबाग में सीएए के खिलाफ मुसलमानों ने धरना दिया था, वहां भी पीएफआई का दफ्तर है।
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