ऐसा लगता है कि पूरी दुनिया तानाशाही और साम्राज्यवाद को जवाब देने के लिए एक साथ हो गई है। ऐसा देखने को जल्दी नहीं मिलता है, लेकिन चीन के अत्याचार और भ्रष्टाचार के साथ उसके साम्राज्यवादी रवैये को देखते हुए दुनिया चीन को सबक सिखाने के लिए तैयार है! अगले साल चीन की राजधानी बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक होना है। यह आयोजन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काफी अहम है। असल में वर्ष 2022 के बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के सफल आयोजन को एक प्रमुख मुद्दा माना जा रहा है, क्योंकि इसके साथ शी जिनपिंग अगले शरद ऋतु में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में पुनर्चयन चाहते हैं और परिणामस्वरूप एक अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल के लिए चीन का राष्ट्रपति बनना चाहते हैं।
लेकिन लोकतांत्रिक दुनिया शी जिनपिंग पर इस तरह की कृपा करने को तैयार नहीं है। कम से कम 19 प्रमुख देशों ने अगले साल होने वाले शीतकालीन ओलंपिक से पहले चीन के साथ समझौता नहीं करने का फैसला किया है। भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, कनाडा और यहां तक कि तुर्की जैसे कई अन्य देश ऐसे हैं, जिन्होंने चीन के साथ ‘ओलंपिक ट्रूसÓ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। ओलंपिक ट्रूस एक प्राचीन परंपरा है, जो खेल में युद्धरत पक्षों के बीच शत्रुता को समाप्त करने के लिए है, ताकि खेलों का सुचारू संचालन सुनिश्चित किया जा सके।
आपको बताते चलें कि 2 दिसंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76 वें सत्र में 173 सदस्य राज्यों द्वारा सह-प्रायोजित “खेल और ओलंपिक आदर्श के माध्यम से एक शांतिपूर्ण और बेहतर दुनिया का निर्माण” नामक एक प्रस्ताव को अपनाया गया था। इस प्रस्ताव में ओलंपिक खेलों की शुरुआत से सात दिन पहले, 4 फरवरी 2022 को बीजिंग में होने वाले ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों के लिए ओलंपिक ट्रूस पालन का आह्वान किया गया था।
प्रस्ताव में सभी सदस्य देशों द्वारा “शांति, विकास, सहिष्णुता और समझ के माहौल को बढ़ावा देकर दुनिया को आगे बढ़ाने के लिए खेल की शक्ति का उपयोग करने” का आह्वान किया गया था। ओलंपिक ट्रूस पर हस्ताक्षर न करके- भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों ने चीन को प्रभावी रूप से संकेत दे दिया है कि वे बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों में भाग लेने में कोई रुचि नहीं रखते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार पर विचार कर रहे हैं। इन दोनों देशों ने राजनयिक बहिष्कार में फरवरी में शीतकालीन ओलंपिक में अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल को नहीं भेजना शामिल है, लेकिन एथलीटों को भाग लेने की अनुमति होगी। यह पूछे जाने पर कि क्या ऑस्ट्रेलिया खेलों का राजनयिक बहिष्कार करेगा, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा था कि “हम इस समय उन मामलों पर विचार कर रहे हैं और उन मुद्दों पर काम कर रहे हैं।”
जिन देशों ने ओलंपिक ट्रूस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, उनमें से प्रत्येक ने किसी भी समय अपनी पसंद के खेलों के बहिष्कार के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। इसके अलावा ये देश किसी भी दस्तावेज से बंधे नही हैं। बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक का भाग्य अब अधर में लटक गया है। सभी प्रमुख देशों ने ओलंपिक ट्रूस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है और शी जिनपिंग तब तक पसीना बहाते रहेंगे, जब तक इन देशों के दल खेल के लिए चीन नहीं पहुंच जाते। यह अपने आप में एक क्रूर तानाशाह के लिए किसी क्रूर सजा से कम नहीं है! ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पहले से ही कई मामलों में बेनकाब हो चुका चीन वैश्विक स्तर पर हंसी का पात्र बन गया है।
राजनयिक बहिष्कार पर भी विचार कर रहे हैं देश
संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया पहले से ही बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार पर विचार कर रहे हैं। इन दोनों देशों ने राजनयिक बहिष्कार में फरवरी में शीतकालीन ओलंपिक में अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल को नहीं भेजना शामिल है, लेकिन एथलीटों को भाग लेने की अनुमति होगी। यह पूछे जाने पर कि क्या ऑस्ट्रेलिया खेलों का राजनयिक बहिष्कार करेगा, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा था कि “हम इस समय उन मामलों पर विचार कर रहे हैं और उन मुद्दों पर काम कर रहे हैं।”
जिन देशों ने ओलंपिक ट्रूस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, उनमें से प्रत्येक ने किसी भी समय अपनी पसंद के खेलों के बहिष्कार के लिए दरवाजे खुले रखे हैं। इसके अलावा ये देश किसी भी दस्तावेज से बंधे नही हैं। बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक का भाग्य अब अधर में लटक गया है। सभी प्रमुख देशों ने ओलंपिक ट्रूस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है और शी जिनपिंग तब तक पसीना बहाते रहेंगे, जब तक इन देशों के दल खेल के लिए चीन नहीं पहुंच जाते। यह अपने आप में एक क्रूर तानाशाह के लिए किसी क्रूर सजा से कम नहीं है! ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पहले से ही कई मामलों में बेनकाब हो चुका चीन वैश्विक स्तर पर हंसी का पात्र बन गया है।
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