कोरोना ने विश्व की सभी धारणाओं को ध्वस्त कर दिया है, चाहे वो भारत की महत्ता हो या चीन का छलावा, पश्चिमी धारणा की नींव हिल चुकी है। भारत को ‘थर्ड वल्र्डÓ कहने से लेकर यूरोप और अमेरिका के विकास धारणा कोरोना के कारण आरंभ हुए मौत के तांडव के सामने धरे के धरे रह गए। जब यूरोप चिताओं को गिनने में व्यस्त था, तब भारत वैक्सीन बना रहा था। आज अपने वैक्सीन से भारत ने विश्व में एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि भारत विश्वगुरु क्यों है।
जिस भारत को पश्चिम द्वारा बनाए गए पोलियो के वैक्सीन के लिए पांच दशकों तक इंतज़ार करना पड़ा, उस भारत ने विश्व को वैक्सीन मैत्री के तहत जीवनदायनी वैक्सीन को उपहार में दिया। वर्षों तक पश्चिम ने भारत को ‘थर्ड वल्र्डÓ समझ पोलियो के वैक्सीन से वंचित रखा, आज वही भारत दुनिया की 70 फीसदी कोविड वैक्सीन आवश्यकताओं को पूरा करता है। यह विश्व गुरु की पहचान नहीं है तो क्या है। इतिहास के आरंभ से ही पश्चिम ने असुरक्षा की भावना के कारण भारत जैसे देश से अपने तकनीक और तत्वज्ञान को दूर रखने का प्रायास किया। बावजूद इसके भारत ने आज कोरोना से युद्ध में अपने भंडार और अपने ज्ञान के कपाट को खुला रखा है।
दरअसल, कोरोनो वायरस महामारी पर लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने चौंकाने वाले आंकड़े दिए। उन्होंने कहा, “मुझे हमारे वैक्सीन उद्योग पर गर्व है जो टीकों की वैश्विक आवश्यकता का 70 प्रतिशत आपूर्ति करता है, लेकिन आपको यह समझना होगा कि यह शोध हमारे (मोदी सरकार के) समय में किया गया था। ष्टश1ड्ड3द्बठ्ठ पूरी तरह से भारत में विकसित हैं और ष्टश1द्बह्यद्धद्बद्गद्यस्र का निर्माण भारत में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से किया जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि कोविड से पहले भारत एन-95 मास्क, पीपीई किट, वेंटिलेटर जैसे कई उपकरणों का आयात करता था, लेकिन अब देश इनका निर्यातक बन गया है। यह उपलब्धि महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत पहले वैक्सीन की खरीद में विदेशी देशों की दया पर निर्भर रहता था। इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के टीकाकरण इतिहास के बारे में भी बात की थी।
पीएम ने कहा था कि भारत जैसे गरीब देश को वैक्सीन आने के लिए दशकों इंतजार करना पड़ा। उन्होंने कहा था, “यदि आप भारत में टीकाकरण के इतिहास को देखें, चाहे वह चेचक, हेपेटाइटिस-बी या पोलियो का टीका हो, तो आप देखेंगे कि भारत को विदेशों से टीके प्राप्त करने के लिए दशकों तक इंतजार करना पड़ा था। जब अन्य देशों में टीकाकरण कार्यक्रम समाप्त हो गए, तो यह हमारे देश में शुरू भी नहीं हुआ था।”
और यह वास्तव में सच है, भारत को देश से पोलियो समाप्त करने में 50 साल से अधिक का समय लगा। यदि पश्चिम ने टीके की आपूर्ति में तत्परता दिखाई होती, तो इस बीमारी को बहुत पहले ही समाप्त किया जा सकता था। हालांकि, पश्चिमी देशों और बड़े फर्म का रवैया आज भी कुछ खास नहीं बदला है। जबकि भारत आत्मनिर्भर हो गया है, अफ्रीका के गरीब देश अभी भी अपनी आबादी को टीका लगाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान में अफ्रीका के 5 प्रतिशत से भी कम लोगों को पूरी तरह से टीका लगाया गया है और ह्रद्वद्बष्ह्म्शठ्ठ के उद्भव ने स्थिति को और बदतर कर दिया है।
इसमें कोई दो राय नही है कि अगर आज भारत के पास स्वदेशी वैक्सीन नहीं होती, तो शायद भारत को अब तक वैक्सीन मिल भी नहीं पाती। वैक्सीन ना होने के कारण कोरोना महामारी देश में और अधिक विकराल रूप धारण कर लेती और न जाने कितने मासूम लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती। पोलियो वैक्सीन के उदाहरण से इस स्थिति को समझा जा सकता है।
ञ्जस्नढ्ढ की एक रिपोर्ट के अनुसार, “अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों ने वर्ष 1955 में ही क्कशद्यद्बश 1ड्डष्ष्द्बठ्ठद्ग का उत्पादन कर उसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था। दूसरी ओर भारत जैसे देश इस बीमारी से जूझते रहे। वर्ष 1979 आते-आते अमेरिका ने अपने आप को पोलियो-मुक्त देश घोषित भी कर दिया और भारत में उस दौरान दुनिया में सबसे अधिक केस दर्ज किए जाते थे। इन सब के बाद 2 अक्टूबर 1994 में यानि अमेरिका की अपेक्षा, करीब 40 वर्षों बाद भारत में पोलियो वैक्सीनेशन का काम शुरू हो पाया था। उस वक्त की तुलना कीजिये और आज की तुलना कीजिये और देखिये कि भारत कहां से कहां पहुंच चुका है।”
यह तो स्पष्ट है कि अगर आज भारत अपना वैक्सीन नहीं बना पाता, तो वैक्सीन आयात ही करना पड़ता। अगर आयात करना होता तो किसी अन्य देश पर निर्भरता होती और आज कोरोना के बदलने स्वरूप को देखते हुए कौन सा देश भारत के मदद के लिए आगे आता? नि:संदेह कोई भी नहीं! जिस तरह पोलियो सहित अन्य वैक्सीन के लिए इंतज़ार करना पड़ा, ठीक वैसे ही कोरोना के वैक्सीन के लिए भी इंतजार करना पड़ता।
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